रांची से 17 किलोमीटर दूर स्थित पिठोरिया का किला कभी जमींदार जगतपाल की शान हुआ करता था. लेकिन आज यह खंडहर में तब्दील हो गया है. आसपास के गांववाले इस किले के अंदर जाने से भी कतराते हैं. जमींदार का पूरा वंश खत्म हो चुका है. और वज्रपात ने इस किले की बर्बादी की पूरी कहानी लिख दी है. इलाके में जब भी आसमानी बिजली गिरती है. इसी किले पर गिरती है.
किले को लेकर प्रचलित हैं कई किवदंतियां
इलाके के लोग बताते हैं कि जमींदार जगतपाल को शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव का श्राप लग गया. उसी के कारण आज ये किला खंडहर में तब्दील हो गया है. बुजुर्ग रमेश ठाकुर का कहना है कि इलाके में जब भी वज्रपात होता है, इस किले पर ही होता है. तब किले से धुएं का गुबार उठता नजर आता है. गांववालों का ये भी कहना है कि जमींदार जगतपाल ने क्रांतिकारियों को अंग्रेजों के हाथों पकड़वा दिया था. उसी कर्म का फल आज ये किला भोग रहा है.
किले की देख रेख करने वाले शिक्षक उमेश का कहना है कि इस किला को बनाने वाले कारिगरों के हाथ जमींदार जगतपाल ने कटवा दिये थे. उनके श्राप का ही नतीजा है कि किले पर वज्रपात का कहर टूटता रहता है.
किले पर वज्रपात के कई कारण
हालांकि भू-गर्भ शास्त्री नीतीश प्रियदर्शी का कहना है कि किले में वज्रपात होने को लेकर लोककथाएं हो सकती हैं. लेकिन विज्ञान इसे नहीं मान सकता. उनके मुताबिक किले के ऊपर वज्रपात के कई कारण हो सकते हैं. मसलन वहां की मिट्टी, मौसम का मिजाज, ऊंचे जगह पर होना. इन वजहों से किले पर वज्रपात हो सकता है. खंडहर में तब्दील हुआ किला
कारण जो भी हो वज्रपात ने इस किले के वर्तमान को स्याह कर दिया है. जबकि इसमें मौजूद आकर्षक कलाकृतियां इसके समृध इतिहास की कहानी कहता है. लेकिन यह सब झाड़ियों, जहरीले सांपों और स्याह अंधेरे के राज में धूमिल होती जा रही हैं.