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लापरवाही से गाड़ी चलाने पर IPC के तहत दर्ज हो सकता है केस, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला




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 ट्रैफिक नियम तोड़ने पर मोटर व्हीकल एक्ट के तहत भारी-भरकम जुर्माना वसूला जा रहा है। नए ट्रैफिक नियमों के मुताबिक, पहले के मुकाबले जुर्माने की राशि 10 गुना तक बढ़ा दी गई है। वहीं, अब ट्रैफिक नियम तोड़ने पर आईपीसी के तहत भी मामला दर्ज किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रैफिक नियम तोड़नेवालों पर सख्ती दिखाते हुए महत्वपूर्ण फैसला दिया है।सर्वोच्च अदालत
सड़क हादसों पर कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ट्रैफिक नियम तोड़ने, रैश ड्राइविंग से होने वाले हादसों में आईपीसी और मोटर व्हीकल एक्ट दोनों के तहत केस दर्ज किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि ट्रैफिक नियमों की अनदेखी या खतरनाक तरीके से गाड़ी चलाने से होने वाले हादसों में दोनों ही प्रावधानों के तहत केस दर्ज किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि तेजी से मोटरीकरण के बढ़ने के साथ ही देश रोड पर लोगों के जख्मी होने और जान गंवाने के बढ़ते बोझ का सामना कर रहा है। जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के 22 सितंबर, 2008 के आदेश को निरस्त कर दिया।

गुवाहाटी हाईकोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के आदेश को पलटा

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ मोटर वाहन अधिनियम के तहत तेज गति से गाड़ी चलाने, खतरनाक तरीके से वाहन चलाने और अन्य संबंधित अपराधों के लिए मामला दर्ज किया गया है तो उसके खिलाफ आईपीसी के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने हालिया आदेश में कहा कि हमारी सुविचारित राय में कानून की स्थिति स्थापित है। कोर्ट ने कहा कि जहां तक मोटर वाहनों का सवाल है, तो मोटर व्हीकल एक्ट, 1988 अपने आप में पूरी संहिता है।

मोटर व्हीकल एक्ट
आईपीसी और मोटर व्हीकल एक्ट के तहत चल सकता है केस

कोर्ट ने कहा कि ट्र्रैफिक नियमों के उल्लंघन का स्तर अलग-अलग होता है। अपराध की गंभीरता को देखते हुए दोषी के खिलाफ आईपीसी और मोटर व्हीकल एक्ट दोनों के तहत केस चल सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सड़क हादसे से संबंधित घटनाओं में किसी अपराध में दोषी करार दिए शख्स को आईपीसी और मोटर व्हीकल एक्ट दोनों के तहत सजा दी जा सकती है। जस्टिस मल्होत्रा ने कहा कि हमारी राय में आईपीसी और मोटर व्हीकल एक्ट प्रावधानों के बीच कोई विरोधाभास नहीं है। दोनों की स्वतंत्र कानून बिल्कुल अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते हैं और दोनों कानून के तहत अपराध अलग-अलग और एक-दूसरे से पृथक हैं। दोनों कानूनों के तहत दंड भी स्वतंत्र और एक-दूसरे से अलग हैं।