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श्याम प्रसाद मुखर्जी के नाम से जानी जाएगी देश की सबसे लंबी टनल, नितिन गडकरी ने दी जानकरी




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 भारत के सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने बुधवार को देश की सबसे लंबी चिनैनी-नाशरी टनल को जम्मू-कश्मीर के लिए बलिदान देने वाले डॉ. श्याम प्रसाद मुखर्जी को समर्पित किया है। गडकरी ने कहा, जम्मू कश्मीर में एक विधान, एक प्रधान, एक निशान की मांग को लेकर बलिदान देने वाले श्याम प्रसाद जी को ये हमारी विनम्र श्रद्धांजलि है। उन्होंने कश्मीर के लिए लड़ाई लड़ने के अलावा उनके ‘वन नेशन वन फ्लैग’ से राष्ट्रीय एकीकरण में बहुत योगदान दिया है। चिनैनी-नाशरी टनल को अब से श्याम प्रसाद मुखर्जी टनल के नाम से जाना जाएगा।

बता दें कि, मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने पर भी इसको अपनी तरफ से श्याम प्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि के तौर पर समर्पित किया था। अब चिनैनी-नाशरी टनल का नाम बदलकर उनके नाम पर रखने को भी सरकार ने उन्हें दूसरी बड़ी श्रद्धांजलि दी है। मालूम हो कि, देश की सबसे लंबी टनल (9.28 किलोमीटर) जम्मू-कश्मीर के रामबन जिले में है। टनल का नाम श्याम प्रसाद मुखर्जी के नाम पर रखने का प्रस्ताव सांसद जितेंद्र सिंह ने नितिन गडकरी के सामने रखा था जिसे अब उन्होंने मंजूरी दे दी है।

चिनैनी-नाशरी टनल (श्याम प्रसाद मुखर्जी टनल) का उद्घाटन पीएम मोदी ने 2 साल पहले किया था उस समय भी पीएम मोदी के सामने जितेंद्र ने यह प्रस्ताव रखा था। उस समय की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ति द्वारा इसका विरोध करने पर यह प्रस्ताव टल गया था। अब जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश हैं और वहां राष्ट्रपति सासन लगा हुआ है, लिहाजा केंद्र सरकार ने अब बिना बाधा टनल का नाम श्याम प्रसाद मुखर्जी के नाम पर रख दिया है। जितेंद्र ने बताया कि, लखनपुर में मुखर्जी को गिरफ्तार करने के बाद उन्हें चिनैनी-नाशरी मार्ग से ही श्रीनगर में की जेल में कैद करने के लिए लाया गया था। इसलिए यहां बने टलन का नाम उनके नाम पर रखना श्याम प्रसाद मुखर्जी के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजली होगी।

जम्मू-कश्मीर में राजनेता के नाम पर होगी यह दूसरी सुरंग

बेहद अत्याधुनिक माने जाने वाले इस सुरंग की खासियत यह है कि इसे हर मौसम में बिना बंद हुए चालू रहने के हिसाब से तैयार किया गया है। इस सुरंग के कारण चेनानी और नाशरी के बीच की यात्रा में लगने वाला समय कम से कम दो घंटे कम हो गया है। क्योंकि, ऊंचे बर्फीले रास्तों से गाड़ियों को पहले जो 41 किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता था, वह दूरी अब घटकर सिर्फ 9.2 किलोमीटर की रह गई है। यह भारी बर्फबारी में खुला रहने में सक्षम है।