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आपातकाल के मौलिक कर्तव्यों को वापस ला रही है BJP सरकार -प्रेस रिव्यू




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मोदी सरकार संविधान के उन प्रावधानों को दोबारा वापस लाने की कोशिश कर रही है जो भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमर्जेंसी के दौरान शामिल किया था.

केंद्र सरकार संविधान में वर्णित मौलिक कर्तव्यों को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है. अख़बार लिखता है कि मंत्रियों को इस बारे में बाक़ायदा निर्देश दिए गए हैं कि वो जनता में मौलिक कर्तव्यों के बारे में जागरूकता बढ़ाए.

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान साल 1976 में भारतीय संविधान में 42वां संशोधन कराया था और इसी के तहत संविधान में 10 मौलिक कर्तव्यों को शामिल किया गया था.

इन्हें स्वर्ण सिंह समिति की सिफ़ारिशों पर आपातकालीन की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए लाया गया था.

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 51A के भाग 4(A) में भारत के नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्यों का वर्णन किया गया हैं.

इनमें संविधान और उसके आदर्शों के पालन, भारतीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करने, देश की एकता और अखंडता की रक्षा करने, आपसी भाईचारा और सद्भावना बढ़ाने, वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने और 6-14 वर्ष तक के बच्चों की शिक्षा सुनिश्चित कराने जैसी बातों को भारतीय नागरिकों का मूल कर्तव्य बताया गया है.

1942 में मौलिक कर्तव्यों की संख्या 10 ही थी लेकिन साल 2002 में वाजपेयी सरकार के समय 86वें संविधान संशोधन के तहत इसमें 6-14 वर्ष तक के बच्चों की शिक्षा वाला प्रावधान जोड़ा गया और इस तरह मौलिक कर्तव्यों की कुल संख्या 11 हो गई.

इस बार 26 नवंबर को संविधान दिवस की 70वीं वर्षगांठ को मोदी सरकार इन मौलिक कर्तव्यों का प्रचार-प्रसार करने की योजना बना रही है.

अलग-अलग मंत्रालयों को अलग-अलग मौलिक कर्तव्यों के प्रचार-प्रसार की ज़िम्मेदारी भी सौंप दी गई है.

अख़बार ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि इस महीने की शुरुआत में हुई मंत्रि परिषद् की एक बैठक में ये फ़ैसला लिया गया. आगामी 26 नवंबर यानी संविधान दिवस पर सरकारी कार्यालयों में संविधान की प्रस्तावना पढ़ी जाएगी.

‘अयोध्या मामला बड़ी कूटनीतिक जीत’

भारतीय विदेश मंत्रालय ने अयोध्या मामले को अपनी ‘बड़ी कूटनीतिक जीत’ बताया है.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा है कि भारत ने अयोध्या मामले पर अपने फ़ैसले को दूसरे देशों को संतोषजनक ढंग से समझाया है. उन्होंने कहा, ”जिससे भी हमारी इस मसले पर चर्चा हुई हमने कहा कि ये भारत का आतंरिक मामला है और सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला है.”

रवीश कुमार ने कहा कि भारत ने अयोध्या मसले पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को लेकर दिल्ली में अपने दूतावासों के जरिए कुछ देशों के साथ चर्चा की.

विदेश मंत्रालय के अनुसार अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आते ही भारत ने रूस, फ़्रांस, ईरान समेत दक्षिण पूर्व एशिया, अमरीका, अफ़्रीका, यूरोप और खाड़ी देशों के राजदूतों को फ़ैसले और उसके विस्तृत पक्ष की जानकारी दे दी थी.

9 नवंबर को भारतीय सुप्रीम कोर्ट की बेंत ने सर्वसम्मति से दिए अपने फ़ैसले में 2.77 एकड़ की पूरी विवादित ज़मीन हिंदू पक्ष को देने का फ़ैसला सुनाया था.

सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद बनाए जाने के लिए सुन्नी वक्फ़ बोर्ड को पांच एकड़ ज़मीन दूसरी जगह पर दिए जाने का निर्देश भी दिया था.

स्पाइवेयर से लगी थी 20 भारतीयों की प्राइवेसी में सेंध

वॉट्सऐप ने भारत सरकार को बताया है कि इसराइली कंपनी एनएसओ के स्पाइवेयर पेगासस के जरिए भारत में 121 लोगों के फ़ोन को निशाना बनाया गया था.

फ़ेसबुक के स्वामित्व वाले वॉट्सऐप ने ये भी बताया कि 121 में से 20 भारतीयों की निजता में सेंध भी लगाई गई थी.

पिछले महाने ख़बरें आई थी कि स्पाइवेयर के जरिए दुनियाभर में लगभग 1400 लोगों की जासूसी हुई है. इनमें कई भारतीय मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, लेखकों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों के नाम शामिल थे.

वॉट्सऐप ने ये भी बताया है कि दुनिया भर में जिन 1400 लोगों के फ़ोन हैक किए गए हैं उनमें एक बड़ी संख्या सामाजिक कार्यकर्ताओं की है.

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गुजरात की किताबों में गोधरा ट्रेन की आग ‘कांग्रेस की साज़िश’

गुजरात में राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित राजनीति विज्ञान की एक किताब में फ़रवरी, 2002 में साबरमती एक्सप्रेस में लगी आग को ‘कांग्रेस की साज़िश’ बताया गया है.

इस दुर्घटना में 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी और इसके बाद गुजरात में भयानक सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे.

राजनीति विज्ञान की यह किताब गुजराती भाषा में लिखी गई है और इसका नाम है : गुजरात नी राजकीय गाथा (गुजरात की राजकीय गाथा).

किताब साल 2008 में प्रकाशित किया है और इसका संपादन बीजेपी की पूर्व सांसद भावनाबेन दवे ने किया है. दवे से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इस किताब में कुछ भी तथ्यों से हटकर नहीं लिखा गया है.

वहीं, कांग्रेस का कहना है कि वो ‘तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करने’ के मामले में किताब के लेखकों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई के विकल्पों पर विचार करेगी.