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शांति से धरना-प्रदर्शन पर भी रोक लगा सकती है सरकार, जानिए ये तगड़ी कानूनी ताकत…




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अभी नागरिकता कानून को लेकर देशभर में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। हालांकि कुछ जगहों पर ये प्रदर्शन बेहद हिंसक हो चुके हैं तो कई जगह फूल देकर और राष्ट्रगान गाकर कर प्रदर्शन किए जा रहे हैं। लेकिन यदि सरकार चाहे तो शांति से धरना-प्रदर्शन करने के संवैधानिक अधिकार पर भी रोक लगा सकती है। सरकार को यह शक्ति कुछ कानूनों के तहत प्राप्त जिनका वो प्रयोग कर सकती है। आपको बता दें कि भारत में कानून के दायरे में शांतिपूर्ण तरीके से धरना-प्रदर्शन की इजाजत है लेकिन वाजिब रोक का भी प्रावधान भी है। कानूनी जानकारों के मुताबिक कानून के दायरे में शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन का अधिकार लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार है लेकिन इससे दूसरे का अधिकार प्रभावित होता है तो सरकार उस पर रोक लगा सकती है। क्योंकि धरना-प्रदर्शन की आड़ में हिंसा की इजाजत नहीं।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कई फैसलों में कहा है कि लोकतांत्रिक देश में आवाज उठाने का अधिकार बेहद अहम है लेकिन जरूरत पड़ने पर सरकार इसमें वाजिब रोक भी लगा सकती है। संविधान के अनुच्छेद-14 से 32 के बीच मूल अधिकारों का प्रावधान किया गया है। इसके तहत राइट टु फ्रीडम’ का अधिकार है। इसके तहत कोई भी शख्स कानून के दायरे में धरना, प्रदर्शन या फिर भाषण आदि दे सकता है। अनुच्छेद-19 के तहत हर नागरिक को विचार और अभिव्यक्ति का अधिकार प्राप्त है।

हालांकि धरना-प्रदर्शन का अधिकार मौलिक अधिकार के तहत आता है लेकिन यह अधिकार पूर्ण नहीं है। यानी ऐसा करने से यदि किसी दूसरे के अधिकार प्रभावित होने लगे तो आपका अधिकार सीमित हो जाता है। कानून के दायरे में धरना-प्रदर्शन हो सकता है लेकिन इस दौरान कोई कानून अपने हाथ में नहीं ले सकता। उदाहरण के तौर पर यदि कोई रास्ता रोकता है तो दूसरे का अधिकार प्रभावित होता है।

इसके अलावा यदि कोई धरना प्रदर्शन के दौरान आगजनी या हिंसा करता है तो यह गैरकानूनी है। ऐसे शख्स पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। धरना-प्रदर्शन मौलिक अधिकार है लेकिन सरकार वाजिब रोक लगा सकती है। अगर कोई शख्स सोशल मीडिया या किसी और तरह से अफवाह फैलाता है, दो समुदाय में नफरत पैदा करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा-153 और 153-ए के तहत केस दर्ज किए जाने का प्रावधान है।

आपको बता दें कि मौलिक अधिकार के उल्लंघन के मामले में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में और अनुच्छेद-226 के तहत हाई कोर्ट में याचिका दायर करने का अधिकार है। हालांकि याचिकाकर्ता को अदालत को यह बताना होगा है कि उसके मूल अधिकार का कैसे उल्लंघन हो रहा है? अगर किसी अन्य व्यक्ति या समाज में लोगों के मूल अधिकार का उल्लंघन हो तो भी रिट दाखिल की जा सकती है।