बस्तर की प्रसिद्ध ढोकरा कला का तेलंगाना राज्य के कलाकार आसना स्थित बादल अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। ढोकरा कला से जुड़े हुए परिवार के सदस्य पुश्तैनी कला का प्रशिक्षण दे रहे हैं। पहली बार प्रशिक्षण लेने के लिए पहुंचे 19 प्रशिक्षणार्थियों को यह प्रशिक्षण 15 दिनों तक आसना स्थित बादल एकेडमी में दिया जाएगा। मास्टर प्रशिक्षक लुदुराम बघेल और मन्नूलाल राम कश्यप ने बताया कि यह प्रशिक्षण 2 जून से शुरु हो चुका है, जो 17 जून तक दिया जाएगा।
बता दें कि प्रशिक्षण के दौरान ढोकरा आर्ट की सभी तकनीकों और बारीकियों की जानकारी दी जा रही है। ढोकरा कला फिनिशिंग व मॉडल से मोम तकनीक कास्टिंग पर जानकारी व मिट्टी का मिश्रण, मिटटी मॉडल बनाने का अभ्यास, मॉडल मे चिकना मिटटी का लेपन, मॉडल को चमकदार बनाने के लिए पेपर से घिसाई का तरीका, मॉडल में मोम चढ़ाने का तरीका, मोम डिजाइन करने का तरीका, मोम पर मिट्टी की पहली व दूसरी परत छपाई का तरीका, पितल व मोम गलाने के लिए भट्टी बनाने की विधि, मिट्टी के चाडी में पितल डालने का तरीका, बने हुए समान का बफिंग और फिनिशिंग की जानकारी दी जा रही है।
इस कार्य के साथ-साथ ही तेलंगाना से आए प्रतिभागियों को ढोकरा आर्ट के कार्य से जुडे परिवारों के साथ एवं उनके गांवों मे भ्रमण करवाया जाएगा ताकि इन परिवारों से मिलकर कलाकारों के द्वारा किस प्रकार कार्य किया जाता है, उसकी भलीभांति जानकारी से अवगत हो सके।
आप भी जानिए… ढोकरा शिल्प के बारे में
ढोकरा शिल्प में पीतल धातु में विभिन्न जीव जन्तुओं की आकृतियों की ढाली जाती है। पीतल में ढलाई से पहले यह अपनी पारंपरिक मोम तकनीक से कलाकृति को बनाया जाता है। यह तकनीक हजारों वर्षों से अपनाकर आगे बढ़ाया गया है। ढोकरा शिल्पकला बस्तर के घढ़वा समुदाय द्वारा व्यापक रूप से प्रचलित है। पारंपरिक आभूषण, पशुओं, आदिवासी देवी-देवताओं मूर्तियां आदि शामिल हैं।