उस इमारत के ज़्यादातर कमरे बंद हैं और गलियारों में अंधेरा फैला रहता है. छत पर लगे बर्मा के पैनल चटक और उखड़ रहे हैं. नवाबों की तस्वीरें एक कमरे में पड़ी धूल खा रही हैं. बेल्जियन शीशों से बने झूमरों की चमक खो चुकी है. छज्जों पर चमगादड़ों का बसेरा हो गया है. डायनिंग हॉल के फर्श पर रखी एक फ्रेंच पेंटिंग के पास कोई कॉकरोच मरा पड़ा दिखता है. फर्श से तमाम कालीन उठ चुके हैं. ये रही रामपुर के नवाबी महल की उस इमारत की तस्वीर, जिसे देखकर कभी आखिरी वायसराय माउंटबैटन ने कहा था कि ‘ये तो न्यूयॉर्क के किसी होटल जैसी भव्य इमारत है’. इस इमारत के बाहर अरसे से बोर्ड टंगा है ‘यहां घूमना मना है’.
उत्तर प्रदेश के रामपुर की रियासत अरसे पहले ही उजड़ चुकी है, लेकिन नवाबी खानदान के कुछ लोग अब भी यहां आते जाते रहते हैं और उनमें से गिनती के यहां रहते भी हैं. नवाबी महल और उससे जुड़ी दूसरी इमारतों में नवाबी खानदान के कुछ लोगों के रहने की एक बड़ी वजह रही है, प्रॉपर्टी पर कब्ज़ा. जी हां, इसी प्रॉपर्टी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का फैसला बदलते हुए कहा है कि आखिरी नवाब के बाद जिसे गद्दी सौंपी गई थी, सिर्फ उसका ही नहीं बल्कि नवाब के सभी वंशजों का प्रॉपर्टी पर हक होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ‘ये राजा, सिर्फ नाम के राजा हैं. इनका कोई साम्राज्य रहा और न ही कोई प्रजा’. रामपुर के शाही खानदान में प्रॉपर्टी का क्या झगड़ा रहा? इसके साथ रामपुर के शाही खानदान के बारे में और दिलचस्प बातें भी जानिए.
आठ भाई बहनों ने किया था दावारामपुर के आखिरी नवाब रज़ा अली खान थे, जिनकी मृत्यु 1966 में हुई थी. रज़ा अली खान की पोती नगहत आबिदी काफी अरसे दिल्ली में रहीं. आबिदी के हवाले से मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ शाही खानदान में कायदा ये था कि नवाब का जो उत्तराधिकारी होगा, संपत्ति का मालिक वही होगा. रज़ा अली खान के बाद आबिदी के पिता मुर्तज़ा अली खान को नवाब की गद्दी सौंपी गई थी. लेकिन, हुआ ये कि 1971 में सरकार में प्रिवी पर्स खत्म कर दिए और रजवाड़ों के बचे-खुचे तमाम अधिकार छिन गए. वैसे भी आज़ादी के बाद रजवाड़े सिर्फ नाम के ही रह गए थे.
प्रिवी पर्स खत्म किए जाने के बाद मुर्तज़ा अली खान की नवाब की उपाधि भी खत्म की गई, लेकिन उनकी संपत्ति पर हक नहीं छीना गया. लेकिन, इस तरह के क़ानूनों के चलते मुर्तज़ा के आठ भाई बहनों ने संपत्ति पर हक मांगा. जब नवाबी नहीं रही, तो नवाबी कायदे क्यों रहें? आखिरी नवाब रज़ा अली खान की कोई वसीयत भी नहीं थी इसलिए आठ भाई बहनों ने मुकदमा ठोका और संपत्ति में हिस्सेदारी चाही. 2002 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुर्तज़ा के हक़ में फैसला दिया था कि जिसे गद्दी सौंपी गई थी, संपत्ति उसकी ही रहेगी. जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब संपत्ति का बंटवारा आठ से ज़्यादा हिस्सों में होने की संभावना है. ऐसे में, किसके हिस्से क्या आएगा, ये तो वक़्त की बात है, लेकिन नवाबी खानदान की वर्तमान पीढ़ी रामपुर की प्रॉपर्टी होल्ड करने के बारे में कितना सोच रही है, ये जानने लायक बात है. वर्तमान पीढ़ी के कई सदस्य बरसों से रामपुर छोड़ चुके हैं. आबिदी खुद दिल्ली में रहीं, उनके भाई मोहम्मद अली खान बरसों से गोवा में रहे.
मोहम्मद ने एक मीडिया इंटरव्यू में कहा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनके हक़ में गया यानी प्रॉपर्टी की हिस्सेदारी नहीं हुई तो इस प्रॉपर्टी के साथ बहुत कुछ किए जाने का इरादा था. लेकिन, अब चूंकि फैसला बदल गया है इसलिए इस प्रॉपर्टी को कितना सहेजा जाएगा, कितना इसे हैरिटेज टूरिज़्म में बदला जाएगा या बेच दिया जाएगा, ये अभी कहना जल्दबाज़ी होगी.
नवाबी खानदान के कई लोग देश की आज़ादी के बाद से ही राजनीति में जुड़े रहे हैं और अब भी जुड़े हैं. कोई मंत्री तो कोई विधायक रह चुका है. ऐसे में इस खानदान के कुछ लोग राजनीतिक प्रतिनिधित्व के कारणों से रामपुर में रुकने का मन बना सकते हैं. रही बात नवाबी खानदान की संपत्ति की, तो इमारतों, ज़मीनों, खेतों और ज्वैलरी के रूप में प्रॉपर्टी का बड़ा हिस्सा है.
2014 के लोकसभा चुनाव में इस खानदान के काज़िम अली खान बतौर प्रत्याशी मैदान में थे, तब उन्होंने जो हलफनामा दिया था, उसके हिसाब से वो तब 55 करोड़ की ज़मीनों और तकरीबन 76 लाख की ज्वैलरी के मालिक थे. गौरतलब है कि अदालत में चल रहे प्रॉपर्टी केस में काज़िम अली खान हिस्सा मांगने वाले पक्ष में शामिल हैं.
संक्षेप में जानें रामपुर नवाबों का इतिहास
रामपुर की नवाबी पश्तून से 18वीं सदी में भारत आए रोहिल्ला पठानों के नवाब फैज़ुल्लाह खान ने की थी. बाद में ये रामपुर एस्टेट कला, खानपान और नवाबों के दब्बू या हुकूमत के साथ सहयोगात्मक रवैये को लेकर चर्चाओं में बनी रही. मिर्ज़ा गालिब, बेग़म अख़्तर, तानसेन के वारिसों को यहां पनाह मिलती रही. इस रियासत के लिए दावा किया जाता है क्योंकि यहां भारत की गंगा जमुनी तहज़ीब को सहेजा गया. यहां हमेशा से हिंदुओं और मुसलमानों की तकरीबन बराबर आबादी रही लेकिन कभी कोई बहुत बड़ा दंगा फसाद नहीं हुआ.
मुर्तज़ा अली खान बहादुर और मुराद अली खान बहादुर इस खानदान के आखिरी दो वारिस थे, जिनसे 1971 में नवाबत छीनी गई थी. इसके बाद से ही 200 साल शानो-शौक़त से जगमगाए रामपुर के शाही खानदान के जलवे पर दिनोंदिन धुंधलका गहराने लगा. अब रामपुर के इस नवाबी खानदान के कई महल, इमारत तकरीबन उजड़े या वीरान हैं. नूर महल जैसी कुछ इमारतों में अब भी शाही खानदान के कुछ सदस्य रहते हैं, जिनमें मुर्तज़ा के भाई मरहूम ज़ुल्फिकार अली खान उर्फ मिक्की मियां की बीवी नूर बानो और उनके बेटे काज़िम अली खान शामिल हैं.