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जनिए पुलिसवाला आधा वेतन पौधारोपण पर लगाता है, अब तक लगाए डेढ़ लाख से ज्यादा पौधे..




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धरती तप रही है और बदन जल रहा है। दूर-दूर तक राहत का नामोनिशान नही है। ऐसे में एक शख्स है जो पर्यावरण बचाने में जुटा है। वह पेड़ लगा रहा है ताकि पथिकों को ठंडी छाया और परिन्दों को आसरा मिले। वह पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरुक कर रहा है ताकि प्रकृति और पेड़-पौधों के साथ उन्हें जोड़ा जा सके।

देवेंदर सूरा चंडीगढ़ पुलिस में सेवारत हैं। वे हरियाणा के सोनीपत जिले में रहते हैं और पर्यावरण बचाओ अभियान के तहत 1.14 लाख पेड़ लगा चुके हैं। साथ ही पर्यावरण के प्रति जागरुकता अभियान भी चला रहे हैं। देवेंदर अपनी कमाई का 80 प्रतिशत हिस्सा पौधारोपण पर खर्च करते हैं। वे कहते हैं, मैं 2011 में चंडीगढ़ पुलिस में भर्ती के लिए गया था। मैंने वहाँ पूरे शहर में करीने से लगे बड़े-बड़े पेड़ देखे, जो न केवल राहगीरों को छाया देते हैं, बल्कि उनके कारण शहर में काफी संख्या में परिंदे भी हैं। खास बात यह है कि एक सड़क के किनारे एक तरह के पेड़ हैं तो दूसरी सड़क पर दूसरी तरह के पेड़ हैं। ऐसा सुन्दर दृश्य अमूमन किसी दूसरी जगह नहीं दिखता।

वेतन भी प्रकृति पर न्योछावर

बकौल देवेंदर, शुरुआत में घरवालों ने इसका विरोध किया, लेकिन बाद में पूरा परिवार उनके साथ इस अभियान में जुड़ गया। देवेंदर पहले केवल मानसून के दौरान सार्वजनिक स्थानों पर पौधे लगाते थे, पर चंडीगढ़ में हरियाली देखने के बाद उन्होंने ठान लिया कि वे अपना आधा वेतन पेड़-पौधे लगाने पर खर्च करेंगे। अपनी इस सोच को उन्होंने अभियान का रूप दिया और लोगों को पेड़ों का महत्व बताना शुरू किया। उनकी जागरुकता रंग लाई और आज उत्तर भारत में उन्होंने हजारों युवाओं की फौज खड़ी कर ली है, जो न केवल पौधे लगाते हैं, बल्कि लोगों को यह बताते हैं कि पेड़ क्यों जरूरी हैं। वे बताते हैं, 2012 में मैंने जनता नर्सरी बनाई, जो प्रकृति प्रेमियों के लिए 24 घंटे खुली है। कोई भी नर्सरी से पौधा ले जा सकता है। शर्त यह है कि उसके पेड़ बनने तक उसकी देखभाल करनी होगी। इसके अलावा, मैं मानसून के दौरान चार महीने के लिए पिकअप किराए पर लेता हूँ व उसमें पौधे रखकर गाँव-गाँव जाता हूँ। वहाँ पर अस्पताल, गोशाला, श्मशान आदि सार्वजनिक स्थानों पर पौधे लगाता हूँ। मेरे दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। मैं उनके घर में केवल एक हजार रुपए देता हूँ। की चाहे कितनी ही धन-सम्पत्ति क्यों न अर्जित कर लें, सुकून की नींद से बड़ा कुछ नहीं है। मुझे इस काम से बहुत सुकून मिलता है। खुद साइकिल से चलता हूँ। इसके लिए एक साइकिल चंडीगढ़ और दूसरी सोनीपत में रखी है। व्यक्तिगत तौर पर में अब तक 1,14,000 पौधे लगा चुका हूँ। जागरुकता के माध्यम से तो कई गुना अधिक पेड़-पौधे लगाए जा चुके हैं।

किसानों का विशेष ख्याल

वैसे तो देवेंदर अधिकतर, बरगद, पीपल और नीम के पेड़ ही लगाते हैं। लेकिन किसानों को जामुन, शहतूत और शीशम के पेड़ बांटते हैं। इसके पीछे उनका तर्क है कि जामुन से उनकी कमाई होगी, शहतूत से पशुओं को चारा मिलेगा, जबकि शीशम से उन्हें लकड़ी मिलेगी। इसके अलावा, 2015 में अभियान के तहत उन्होंने स्कूलों, अस्पताल जैसे सार्वजनिक स्थानों पर करीब 500 एकड़ भूमि में सिर्फ त्रिवेणी पौधे लगाए, जो अब 20-20 फिट के वृक्ष बन गए हैं। बरगद, पीपल और नीम के पेड़ों को त्रिवेणी कहा जाता है। मान्यता है कि इनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश वास करते हैं। देवेंदर दहेज के रूप में वर को फलदार पौधे देते हैं।

देवेंदर सूरा के परोपकार का दायरा बहुत बड़ा है। उन्होंने दिल्ली के कंझावला गाँव में श्रीकृष्ण गोशाला में काफी संख्या में पौधे लगाए थे, जो अब पेड़ बन गए हैं। इसके अलावा, उन्होंने सोनीपत के गोहान, मोहाली, डोराबस्सी गाँवों में वृक्ष मित्र तैयार किए हैं जो उनके अभियान को विस्तार दे रहे हैं। बीदल गाँव में उन्होंने पीपल के इतने पेड़ लगाए हैं, जितने शायद ही देश के किसी दूसरे गाँव में न हों। लोगों को प्रकृति से जोड़ने के लिए उन्होंने जन्मदिन पर पौधे लगाने के लिए भी एक अभियान चलाया। इसमें उन्होंने लोगों से अपील की कि वे अपने जन्मदिन पर एक पौधा जरूर लगाएँ। यह अभियान अत्यन्त सरल रहा। इसी तरह, 2016 में उन्होंने 2100 घरों में तुलसी का पौधा पहुँचाया।

देवेंदर कहते हैं, गोहाना रोड स्थित बड़वासनी गाँव की नर्सरी में अभी करीब 47,000 पौधे हैं। सेवा के तौर पर मेहसवाल के राजबीर मलिक ने नर्सरी के लिए चार एकड़ जमीन दी थी, लेकिन यह कम पड़ गई। इसलिए 60,000 रुपए सालाना किराए पर दो किल्ले जमीन ली। पौधों के लिए मैं खुद ही गोबर से खाद तैयार करता हूँ और केंचुआ खाद तैयार करता हूँ और केंचुआ खाद भी बना लेता हूँ। पैसे जुटाने के लिए दीवाली के अवसर पर मिठाइयाँ बनाता हूँ। इसके लिए किसी से 10,000 तो किसी से 20,000 रुपए उधार लेता हूँ। फिर शुद्ध देसी घी की मिठाइयां बनाकर बाजार से आधी कीमत पर बेचता हूँ। इससे जो लाभ प्राप्त होता है, उससे कर्ज चुकाता हूँ और शेष रकम किराए व पौधे पर खर्च करता हूँ। पिछले तीन साल से यह काम कर रहा हूँ।

लक्ष्य बड़ा

पहले देवेंदर से हर साल दूसरे राज्य दो-तीन गाड़ी पौधे मंगवाते थे। एक पौधे पर 100 रुपए लागत आती थी। बाद में वे खुद ही पौधे तैयार करने लगे। पिछले साल उन्होंने नीम के 18,000 पौधे तैयार किए। अब उनका लक्ष्य नीम से 50,000 पौधे तैयार करना है, क्योंकि इसकी माँग अधिक है। उन्हें चंडीगढ़ से बीज मुफ्त में मिल जाते हैं। इससे पौधों पर लागत बहुत कम आती है। वे बताते हैं, दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों से अधिक-से-अधिक संख्या में बड़, पीपल और नीम के पेड़ लगाने की अपील की थी। उनकी अपील पर मैंने पीपल के 21,000 पौधे तैयार कर लिए हैं।

देवेंदर अमूमन 4-5 फिट के पौधे ही लगाते हैं, क्योंकि छोटे पौधों को पशु नुकसान पहुँचाते हैं जिससे वे पनप नहीं पाते। पौधे लगाने से पहले वे इलाके का सर्वेक्षण करते हैं और वहाँ के युवाओं को पौधों की देखभाल के लिए तैयार करते हैं। वे ऐसे लोगों को तलाशते हैं, जिनकी रुचि पेड़ लगाने में हो। इस तरह उन्होंने करीब 150 वृक्ष मित्र तैयार किए हैं। अपने अभियान में उन्हें लोगों से आर्थिक सहयोग के मुकाबले शारीरिक एवं दूसरा सहयोग अधिक मिल रहा है।