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यहां लोग ट्रॉली में नोट भरकर करते थे शॉपिंग! जानिए क्यों है इस देश का महंगाई से बुरा हाल




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जिम्बॉब्वे के पूर्व राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे (Former Zimbabwe president Robert Mugabe) का सिंगापुर के एक अस्पताल में निधन हो गया. 95 साल के रॉबर्ट मुगाबे पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे. रॉबर्ट मुगाबे 1980 से 1987 तक प्रधानमंत्री और 1987 से 2017 तक राष्ट्रपति रहे थे. यानी रॉबर्ट मुगाबे ने 37 साल तक जिम्बॉब्वे का नेतृत्व किया था. लेकिन उनके कार्यकाल में जिम्बॉब्वे ने सबसे बुरा समय देखा है. पिछले साल तक वहां, 24 घंटे में खाने-पीने समेत कई बुनियादी जरूरतों वाली चीजों के दाम (Hyper Inflation) डबल हो जाते थे. इस देश के लोग बैग में नोट भरकर दूध, सब्जी खरीदने जाते थे. अगर घर की पूरी शॉपिंग करनी है तो ट्रॉली में पैसे भरकर ले जाने पड़ते थे.

कुछ समय पहले जिम्बॉब्वे की सड़कों पर ट्रॉली में नोट भरकर खड़े लोग आसानी से दिख जाते थे. दरअसल, यहां महंगाई काफी ज्यादा बढ़ गई थी. इस वजह से लोगों को छोटे से सामान के लिए भी काफी ज्यादा पैसे देने पड़ते थे. वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, जिम्बॉब्वे में इतिहास की दूसरी सबसे ज्यादा महंगाई दर होती थी.हर 24 घंटे में चीजों की कीमतें डबल हो जाती थीं.

आपको बता दें कि जिम्बॉब्वे की सालाना मुद्रास्फीति दर जून महीने में 175 प्रतिशत पर पहुंच गई है. इससे जिम्बॉब्वे में दस साल पहले की तरह अति मुद्रास्फीति की आशंका पैदा हो गई है. उस समय उसकी पूरी अर्थव्यवस्था ढह गई थी और बचत समाप्त हो गई थी.

>> अर्थशास्त्री बताते हैं कि जिम्बॉब्वे की सरकार के पास अच्छी पॉलिसीज की कमी रही. उस समय वहां की सरकार ने बिना किसी प्लानिंग के बस नोट छापने शुरू कर दिए, जिसकी वजह से लोगों के पास काफी पैसे आ गए.

>> सरकार ने अगर ज्यादा नोट छापने की जगह अनाज उगाने के लिए किसानों को सही ट्रेनिंग दी होती, तो शायद इस देश में इतनी महंगाई नहीं होती. यहां लोगों के पास पैसे तो आ गए, लेकिन खाने-पीने की चीजें कम होने के कारण काफी महंगे हो गए.

गरीब भी बन गए करोड़पति!- जिम्बॉब्वे में जिन लोगों को गरीब कहा जाता था, उनके पास भी करोड़ों रुपए हुआ करते थे. लेकिन उसका कोई फायदा नहीं था, क्योंकि उन पैसों की वैल्यू यहां काफी कम थी. उस समय के आंकड़ों पर नजर डालें तो एक हजार लाख करोड़ जिम्बॉब्वे डॉलर की कीमत महज 5 अमेरिकी डॉलर रह गई थी. इससे वहां की करेंसी और महंगाई की हालत का पता लगता है.

आखिर ऐसा क्या हुआ- जब इस देश के लोगों के पास पैसों की कमी होने लगी थी, तो यहां की सरकार ने अंधाधुंध नोट छापने शुरू कर दिए थे.

>> इसी का नतीजा था कि लोगों के पास काफी पैसे इकट्ठे हो गए थे. लेकिन फिर महंगाई इतनी बढ़ गई कि लोगों को जरूरत का सामान खरीदने के लिए सूटकेस में पैसे भरकर देने पड़ते थे.

>> साल 1980 से लेकर अप्रैल 2009 तक जिम्बाब्वे की करेंसी जिम्बॉबवियन डॉलर थी. उससे पहले यहां की करेंसी रोडेशियन डॉलर थी. फिलहाल इस देश में कई देशों की करेंसी का इस्तेमाल होता है, जैसे साउथ अफ्रीका का रैंड, जापानी येन, चाइनीज युआन, ऑस्ट्रेलियाई और अमेरिकी डॉलर.

>>आर्थिक मंदी (1999-2008) ने इसे और गहरा कर दिया. इस दौरान यहां महंगाई इस स्तर तक पहुंच गई थी कि एक हफ्ते का बस का किराया भी करीब 100 ट्रिलियन डॉलर तक था. सरकार को साल 2009 में हाइपर इनफ्लेशन को नियंत्रित करने के लिए अपनी मुद्रा को छोड़कर अमेरिकी ‘डॉलर’ और दक्षिण अफ्रीकी ‘रैंड’ को आधिकारिक मुद्रा के तौर पर अपनाना पड़ा.