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अम्बेडकर अस्पताल स्थित मल्टी-डिसिप्लिनरी रिसर्च यूनिट (एमआरयू) के वैज्ञानिकों ने विकसित किया ऐसा बायोमार्कर किट जो कोविड-19 के प्रारंभिक चरण में ही लगा सकती है बीमारी की गंभीरता का अनुमान




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पंडित जवाहरलाल नेहरु स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय रायपुर, स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, डीएचआर, भारत सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित किया गया है मल्टी-डिसिप्लिनरी रिसर्च (एमआरयू) यूनिटप्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया अभियान को बढ़ावा देने वाला रिसर्च

रायपुर

विशेषता 94 प्रतिशत है। इस शोध दल में एक अन्य एमआरयू वैज्ञानिक डॉ. योगिता राजपूत, पेपर की पहली लेखिका ने विभिन्न विभागों के अन्य बहु-विषयक योगदानकर्ताओं के साथ समन्वय करते हुए चुनौतीपूर्ण परियोजना को मूर्त रूप में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।डॉ. पाल के आविष्कार के संभावित व्यावसायिक मूल्य को ध्यान में रखते हुए पं. जे.एन.एम मेडिकल कॉलेज ने भारतीय पेटेंट के साथ- साथ अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट के लिए भी आवेदन किया है। डॉ. पाल के अनुसार, हाल ही में अमेरिका की पेटेंट सर्च एजेंसी ने अमेरिका में आविष्कार के संभावित व्यावसायिक महत्व को दर्शाते हुए उत्साहजनक रिपोर्ट प्रदान की है। इसका मतलब है कि भारत की आर्थिक वृद्धि में योगदान देने वाली चिकित्सा प्रौद्योगिकी को विदेशों में निर्यात करने का अवसर हमें मिल सकता है। एमआरयू का रिसर्च हमारे देश के प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया अभियान को भी बरकरार रखेगा। आम धारणा के विपरीत कि इस तरह के टेक्नोलॉजी के अविष्कार के लिए बड़े बुनियादी ढांचे, बड़े धन और जनशक्ति की आवश्यकता होती है। सफलता की कहानी संसाधन सीमित केंद्रों में काम करने वाले कई शोधकर्ताओं के लिए एक प्रेरक उदाहरण भी है। पं. जे.एन.एम मेडिकल कॉलेज की उपलब्धि एक उत्साहजनक उदाहरण स्थापित करेगी कि एक राज्य संचालित मेडिकल कॉलेज समय की आवश्यकता को पूरा करने के लिए मेडिकल टेक्नोलॉजी विकसित कर रहा है और इसके व्यावसायीकरण में भी अपना योगदान दे रहा है।