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104 उपग्रहों को पीएसएलवी से अंतरिक्ष भेजने वाले किसान के बेटे की कहानी…




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7 सितंबर की सुबह जब बंगलुरू के इसरो स्पेस रिसर्च सेंटर से वापसी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लौट रहे थे तो इसरो प्रमुख के सिवन भावुक हो गए. महज कुछ ही घंटे पहले इसरो को चंद्रयान-2 से सिग्नल मिलना बंद हुआ था और विक्रम लैंडर चंद्रमा पर उतरा या नहीं या उसका क्या हुआ इसे लेकर सवालों के जवाब अधूरे रह गए थे.

प्रधानमंत्री मोदी के सामने भावुक हुए सिवन की तस्वीरें और वीडियो टीवी, ऑनलाइन और सोशल मीडिया पर जल्द ही चर्चा का विषय बन गया.

सिवन भले ही चंद्रयान-2 की यात्रा के पूरा नहीं हो पाने को लेकर भावुक हुए हों लेकिन वे मानसिक रूप से बेहद मजबूत हैं.

यह उन्हीं के प्रयासों की बदौलत हुआ है कि कम कीमतों में उपग्रह अंतरिक्ष में भेजने के मामले में आज भारत एक बड़ा गंतव्य बन गया है.

मंगल मिशन के लिए पीएसएलवी के उपयोग से कम लागत वाली प्रभावी रणनीति विकसित करने में भी उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी.

15 फ़रवरी 2017 को पीएसएलवी के जरिए ही एक बार में 104 उपग्रहों (बेबी) को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजने में सफलता के पीछे भी सिवन ही प्रमुख मिशन आर्किटेक्ट थे.

एक टीवी इंटरव्यू में सिवन ने बेबी उपग्रह के बारे में बताया था कि यह इसरो की बहुत बड़ी सफलता है और एक साथ सौ से अधिक उपग्रह भेजने वाला भारत पहला देश बना.

आम लोगों की ज़िंदगी में अंतरिक्ष विज्ञान

उनके नेतृत्व में लिथियम बैटरी भी बनाई गई है जिसे इलेक्ट्रिक व्हीकल में इस्तेमाल किया जा सकेगा.

खुद सिवन कहते हैं कि इसरो का मुख्य उद्देश्य ‘आम जीवन में अंतरिक्ष विज्ञान का इस्तेमाल’ है. वे बताते हैं कि इसरो रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने वाली तकनीक को उद्योग से जोड़ने की दिशा में भी काम कर रहा है.

उन्होंने बताया कि अब तक इसरो ने 300 से 400 तकनीक इंडस्ट्री को ट्रांसफर किए हैं.

चिकित्सा उपकरणों के विकास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई काम किए हैं. बेहतर माइक्रोप्रोसेसर नियंत्रित कृत्रिम अंग और कृत्रिम हृदय पंप जिसे वाम वेंट्रिकल असिस्ट डिवाइज कहा जाता है उसे फील्ड ट्रायल के लिए तैयार किया गया है.

सिवन उस टीम के प्रमुख रहे हैं जिसने सिक्स डी सिम्युलेशन सॉफ़्टवेयर ‘सितारा’ बनाई है जो इसरो के सभी प्रक्षेपण में एक अहम किरदार निभाता है.

उन्होंने एक ऐसी रणनीति का विकास किया है जिसने मौसम के पूर्वानुमान और हवा की गति की स्थिति को देखते हुए किसी भी मौसम में और साल के किसी भी दिन रॉकेट को लॉन्च करना संभव किया है.पीएसएलवी यानी ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान भारत का तीसरी पीढ़ी का प्रक्षेपण रॉकेट है जिसने 1994 से 2017 के बीच 48 भारतीय और 209 विदेशी उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचाया है.

पीएसएलवी को ताक़तवर बनाने में योगदान

जब सिवन 1982 में इसरो आए तो सबसे पहले उन्होंने पीएसएलवी परियोजना पर काम किया.

उन्होंने एंड टु ऐंड मिशन प्लानिंग, मिशन डिजाइन, मिशन इंटीग्रेशन ऐंड ऐनालिसिस में काफी योगदान दिया.

आज सिवन को एयरोस्पेस इंजीनियरिंग, स्पेस ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम इंजीनियरिंग, लॉन्च व्हीकल और मिशन डिज़ाइन, कंट्रोल और गाइडेंस डिजाइन, मिशन के सॉफ़्टवेयर डिजाइन, मिशन के विभिन्न परीक्षणों के परिणामों के संयोजन, एयरोस्पेस से जुड़े किसी प्रयोग की समूची प्रक्रिया को तैयार करने, इसके विश्लेषण और उड़ान प्रणालियों के पुष्टिकरण में विशेषज्ञता प्राप्त है.

उनकी रणनीतियों का एक बड़ा योगदान पीएसएलवी को ताक़तवर बनाने में रहा. इसने इसरो के अन्य लॉन्च व्हीकल, आरएलवी-टीडी समेत जीएसएलवी एमके II, एमके III को एक आधार दिया.

सिवन से जुड़े विवाद

लेकिन ऐसा भी नहीं है कि के. सिवन का नाम विवादों से नहीं जुड़ा है. के. सिवन जब इसरो के चेयरमैन बने तो उन्होंने स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के डायरेक्टर का डिमोशन कर दिया था, जिसको लेकर इसरो के वैज्ञानिकों ने राष्ट्रपति तक को खत लिखा कि इस फ़ैसले के पीछे कोई प्रोफेशनल वजह नहीं है.

इसके अलावा चंद्रयान 2 से पहले जब सिवन कर्नाटक के कृष्णा मठ में पूजा अर्चना करने गए थे उसकी भी आलोचना हुई थी.

बचपन तंगी में बीता

परिवार के पहले ग्रेजुएट और पहले इंजीनियर से होते हुए इसरो प्रमुख बनने वाले के सिवन का जन्म 14 अप्रैल 1957 को तमिलनाडु के कन्याकुमारी ज़िले में एक किसान परिवार में हुआ.

अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एक इंटरव्यू के मुताबिक पैसों की तंगी के कारण सिवन के छोटे भाई बहन उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर सके.

पत्रकार पल्लव बागला के साथ एक इंटरव्यू में सिवन ने बताया कि उनकी शुरुआती शिक्षा मेला सराकलाविल्लई गांव के सरकारी स्कूल में तमिल माध्यम से हुई. उन्होंने हाई स्कूल की पढ़ाई भी तमिल माध्यम से ही की थी. स्कूली शिक्षा के दौरान वे खेती में अपने पिता की मदद करते थे.

बाद में उन्होंने 1977 में गणित में मदुरै यूनिवर्सिटी से स्नातक की पढ़ाई की. इसके साथ ही वे अपने परिवार के पहले ग्रेजुएट बने. इसी परीक्षा में जब उन्हें 100 फ़ीसदी अंक आए तब जाकर सिवन के पिता ने उन्हें उच्च शिक्षा की इजाज़त दी.

वैज्ञानिक बनने का सफर

इसके बाद सिवन ने 1980 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलजी से एयरोनॉटिक्स में इंजीनियरिंग की. इसके दो साल बाद बेंगलुरू के भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) से उन्होंने एयरोस्पेस में स्नातकोत्तर किया और इसी वर्ष इसरो से भी जुड़ गए. फिर 2007 में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में आईआईटी बॉम्बे से अपनी पीएचडी पूरी की.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में वीएसएससी, एलपीएससी के निदेशक, जीएसएलवी के प्रोजेक्ट डायरेक्टर, अंतरिक्ष आयोग के सदस्य और इसरो परिषद के उपाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों से होते हुए सिवन 2018 में इसरो प्रमुख बने.

डॉक्टर कलाम समेत कई पुरस्कार मिले

डॉक्टर सिवन को 2007 में इसरो मेरिट अवॉर्ड, 2011 में डॉ बिरेन रॉय स्पेस साइंस एंड डिजाइन अवॉर्ड, 2016 में इसरो अवॉर्ड फॉर आउटस्टैंडिंग अचीवमेंट समेत कई पुरस्कारों और कई यूनिवर्सिटी से डॉक्टर ऑफ़ साइंस से भी नवाजा जा चुका है. इसमें चेन्नई की सत्यभामा यूनिवर्सिटी से अप्रैल 2014 में मिला डॉक्टर ऑफ़ साइंस और 1999 में डॉ विक्रम साराभाई रिसर्च अवॉर्ड शामिल है.

कई प्रतिष्ठित जर्नल में साइंस पर उनके कई पेपर छपे हैं.

अंतरिक्ष परिवहन प्रणाली डिज़ाइन और निर्माण के सभी क्षेत्रों में अपने अनुभव के आधार पर 2015 में ‘इंटिग्रेटेड डिजाइन फॉर स्पेस ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम’ नामक उनकी किताब भी प्रकाशित हुई है.

विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में डॉक्टर के सिवन के योगदान के लिए बीते महीने तमिलनाडु सरकार ने उन्हें डॉ. कलाम पुरस्कार से सम्मानित किया है.