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भगवान बाहुबली की मूर्ती भारत में है सबसे बड़ी, जानिए हैरान करने वाले रहस्य




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आज हम आपको भारत में मौजूद एक ऐसे चमत्कारी मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जो बहुत ही प्रसिद्ध है और उसके जैसा दूसरा कोई और नहीं। यह मंदिर है जैन धर्म के केवल्य ज्ञान प्राप्त भगवान बाहुबली का। यह प्राचीन जैन मंदिर दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य के मड्या जिले में श्रवणबेलगोला के गोम्मटेश्वर स्थान पर स्थित है। हालांकि इस मंदिर की कई चमत्कारी बातों से पहले हम भगवान बाहुबली और उनके इस मंदिर के गौरवपूर्ण इतिहास के बारे में जान लेते हैं।

जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ के 100 पुत्र हुए थे जिनमें भरत और बाहुबली प्रमुख थे। आगे चलकर भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा। हालांकि ऋषभदेव के वानप्रस्थ आश्रम गमन करने के बाद राज्याधिकार के लिए बाहुबली और भरत में युद्ध हुआ। अंतत: बाहुबली ने युद्ध में भरत को परास्त कर दिया।

हालांकि इस घटना के बाद बाहुबली के मन में भी विरक्ति भाव जाग्रत हो गया और उन्होंने भरत को राजपाट देकर घोर तपस्या में लीन हो गए जिसके बाद उनको केवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ। भाई भरत ने बाहुबली के सम्मान में पोदनपुर में 525 धनुष की बाहुबली की मूर्ति प्रतिष्ठित की। यह पहली सबसे विशाल प्रतिमा है।

अब बात करें राजा भरत की तो उनको अपनी आयुधशाला में से एक दिव्य चक्र प्राप्त हुआ। चक्र रत्न मिलने के बाद उन्होंने अपना दिग्विजय अभियान शुरू किया जिसमें दिव्य चक्र उनके आगे चलता था। उसके पीछे दंड चक्र, दंड के पीछे पदाति सेना, पदाति सेना के पीछे अश्व सेना, अश्व सेना के पीछे रथ सेना और हाथियों पर सवार सैनिक आदि चलते थे। जहां-जहां चक्र जाता था, वहां- वहां के राजा या अधिपति सम्राट भरत की अधीनता स्वीकार कर लेते थे। इस तरह पूर्व से दक्षिण, दक्षिण से उत्तर और उत्तर से पश्‍चिम की ओर उन्होंने यात्रा की और अंत में जब उनके पुन: अयोध्या पहुंचने की मुनादी हुई तो राज्य में हर्ष और उत्सव का माहौल होने लगा। लेकिन अयोध्या के बाहर ही चक्र स्वत: ही रुक गया, क्योंकि राजा भरत ने अपने भाइयों के राज्य को नहीं जीता था।

अब बात करें बाहुबली की तो यह प्राचीन जैन तीर्थ भारतीय राज्य कर्नाटक के मड्या जिले में श्रवणबेलगोला के गोम्मटेश्वर स्थान पर स्थित है। यहां पर भगवान बाहुबली की विशालकाय प्रतिमा स्थापित है, जो पूर्णत: एक ही पत्थर से निर्मित है। इस मूर्ति को बनाने में मूर्तिकार को लगभग 12 वर्ष लगे। बाहुबली को गोमटेश्वर भी कहा जाता था। इस मंदिर के द्वार के बाईं ओर एक पाषाण पर शक सं. 1102 का एक लेख कन्नड़ भाषा में है।

कालांतर में मूर्ति के आस-पास का प्रदेश वन कुक्कुटों तथा सर्पों से व्याप्त हो गया जिससे लोग मूर्ति को ही कुक्कुटेश्वर कहने लगे। भयानक जंगल होने के कारण यहां कोई पहुंच नहीं पाता था इसलिए यह मूर्ति लोगों की स्मृति से लुप्त हो गई। हालांकि बाद में गंग वंशीय रायमल्ल के मंत्री चामुंडा राय ने इस मूर्ति का वृत्तांत सुनकर इसके दर्शन करने चाहे, किंतु पोदनपुर की यात्रा कठिन समझकर श्रवणबेलगोला में उन्होंने पोदनपुर की मूर्ति के अनुरूप ही गोम्मटेश्वर की मूर्ति का निर्माण करवाया। गोम्मटेश्वर की मूर्ति संसार की विशालतम मूर्तियों में से एक मानी जाती है।

श्रवणबेलगोला में चंद्रगिरि और विंध्यगिरि नाम की दो पहाड़ियां पास-पास हैं। इस पहाड़ पर 57 फुट ऊंची बाहुबली की प्रतिमा विराजमान है। हर 12 वर्ष बाद इस मूर्ति का महामस्तकाभिषेक होता है जिसमें लाखों की संख्या में जैन श्रृद्धालु जुटते हैं।