बांग्लादेश में एक ऐसी शादी की चर्चा ज़ोरों पर है जिसमें एक दुल्हन बारात लेकर निकाह करने के लिए दूल्हे के घर जा पहुंची. 19 वर्षीय ख़दीजा अख़्तर ख़ुशी ने ऐसा अपने मेहमानों के लिए नहीं किया.
ख़दीजा ने इस उम्मीद में यह काम किया है कि बांग्लादेश की सभी महिलाएं उनका अनुसरण करेंगी.
इस घटना से पहले इस देश में सदियों से दुल्हा निकाह के लिए दुल्हन के घर जाते रहे हैं.
ख़दीजा ने अपनी निकाह की घटना वायरल होने के कुछ दिनों के बाद बीबीसी बंगाली से कहा, “अगर लड़के निकाह कर लड़कियों को ला सकते हैं तो लड़कियां क्यों नहीं?”
ख़दीजा ने तारिक़ुल इस्लाम के साथ निकाह किया है.
हालांकि, यह घटना प्रेरित करने वाला और डरावना दोनों है. एक व्यक्ति ने रोष व्यक्त करते हुए कहा कि दंपति और उसके परिवार वालों की चप्पलों से पिटाई होनी चाहिए.
हालांकि, ख़दीजा और उसके शौहर दोनों के लिए यह काफ़ी सामान्य बात थी. उनका मानना है कि अच्छा काम करना चाहिए.
उसने बीबीसी को बताया, “यहां परंपरा मुद्दा नहीं है. यह महिला अधिकारों का एक मामला है. आज अगर एक लड़की एक लड़के से निकाह करने जाती है तो किसी को नुक़सान नहीं है.”
उसने कहा, “इसके बजाय, महिला के साथ दुर्व्यवहार कम होगा. कोई भी शख़्स किसी से कम नहीं है.”
दंपति शादी पर विरोध को लेकर सर्तक थी. यह निकाह पिछले शनिवार को भारत की सीमा से लगे एक ग्रामीण क्षेत्र में हुई. यहां तक कि उनके अपने परिवार के सदस्य भी शुरूआत में ऐसी निकाह को लेकर उत्सुक नहीं थे.
हालांकि, 27 वर्षीय तारिक़ुल ने बताया कि आख़िरकार वह राज़ी हो गए. कुल मिला कर उन्होंने कुछ भी ग़लत नहीं किया.
नव दंपति ने बताया, “अदालत, मस्जिदों में कई शादियां होती हैं. हम धर्म के अनुसार शादी करते हैं.”
उन्होंने कहा कि वहां एक क़ाज़ी और गवाह होते हैं. इस तरह निकाह का पंजीकरण होता है. वह शादी की औपचारिकता है. हमने ठीक वैसे ही किया.
उन्होंने कहा, “यह मायने नहीं रखता है कि लोग क्या सोचते हैं, क्या कहते हैं. कुछ लोग अलग सोच सकते हैं, सभी लोगों का अपनी राय होती है.”
क्या रही है परंपरा
यहां की परंपरा के अनुसार, दुल्हा और उसके रिश्तेदार दुल्हन के घर जाते हैं जहां शादी होती है और जश्न मनाय जाता है. इसके बाद दुल्हन अपने परिवार से विदा लेती है और शौहर के घर आ जाती है.
यह परंपरा सदियों से जारी है.
हालांकि, पश्चिमी बांग्लादेश के एक ज़िले मेहेरपुर में कुछ अलग देखने को मिला. यहां दुल्हन अपने परिवार के सदस्यों के साथ निकाह के लिए दूल्हे के घर आई. और निकाह के बाद दुल्हा, दुल्हन के घर चला गया.
इस निकाह के महत्व को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. कई पुरूषों के लिए यह अपमानजनक हो सकता है. कुल लोग इस घटना को चौंकाने वाला कह सकते हैं.
यहां तक कि एक छोटे से गांव में निकाह की जैसी घटना हुई है, वैसा बांग्लादेश के शहरों में भी नहीं हुआ है. दंपति ने शादीशुदा जीवन की शुरूआत एक बड़ा साहस दिखाते हुए किया है.
उनके आत्मविश्वास के अलावा, यह एक साहसपूर्ण निर्णय था.
हाल के वर्षों में बांग्लादेश में समानता की दिशा में काफ़ी प्रगति हुई है. विश्व आर्थिक मंच के मुताबिक़, लैंगिक समानता के मामले में दक्षिण एशिया में बांग्लादेश का रैंक बहुत अधिक है.
हालांकि, गंभीर मामले अभी भी बने हुए हैं. 19 साल की नुसरत जहां रफ़ी की मौत का मामला दुनिया भर में सुर्ख़ियों में रहा. अपने हेडमास्टर ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न की एक शिकायत दायर करने के बाद उन्हें कथित तौर पर ज़िंदा जला दिया गया था.
इस बीच संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि शादी करने वाली दो तिहाई महिलाओं को अपने जीवन संगियों के हाथों हिंसा का शिकार होना पड़ता है जिसमें से पिछले साल आधी महिलाओं ने रिपोर्ट दर्ज कराई.
और जब मुस्लिम बहुल देशों में शिक्षा, शादी क़ानूनों जैसे विषयों में प्रगति की बात होती है तो महिला अधिकार समूह प्रतिबंधात्मक और पक्षपात का आरोप लगाते हैं. ग़ौरतलब है कि बांग्लादेश हाई कोर्ट ने पिछले महीने शादी के फॉर्म से कुमारी (वर्जिन) शब्द हटाने का आदेश दिया है. इसके बाद अब महिलाओं को शादी के फॉर्म पर वर्जिन होने की जानकारी देनी की ज़रूरत नहीं रहेगी. पुरूषों को इस तरह की कोई घोषणा नहीं करना पड़ता है.
तारीक़ुल और ख़दीजा आशान्वित हैं कि उनकी शादी लैंगिक समानता की दिशा में एक प्रगतिगामी क़दम होगा.
तारीक़ुल ने समाचार एजेंसी एएफ़पी को बताया, “मैं आश्वस्त हूं कि हमारा निकाह एक संदेश देगा कि एक महिला वह कर सकती हैं जो एक पुरूष कर सकता है.”
और अगर ऐसा नहीं होता है तो वे अपने निर्णय से बहुत ज़्यादा ख़ुश होंगी.
ख़दीजा ने कहा, “हमने शादी में काफ़ी मज़े किए.”