Home छत्तीसगढ़ बिलासपुर का मदकू द्वीप-जहां दिखाई देता है केदार तीर्थ सा नजारा

बिलासपुर का मदकू द्वीप-जहां दिखाई देता है केदार तीर्थ सा नजारा




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अविभाजित बिलासपुर संभाग प्राकृतिक सौंदर्य से भरा पड़ा है। प्रकृति ने यहां अपनी पूरी छटा बिखेरी है। घने जंगलों,नदियों और पहाड़ों की लंबी श्रृंखला है। अविभाजित संभाग के नक्शे पर नजर डालें तो एक दर्जन से अधिक बेहतरीन पर्यटन केंद्र हैं। पूरी तरह प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इन केंद्रों ने मानों प्रकृति ने खुद ही खूबसूरती देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

बारिश के दिनों में इन पर्यटन केंद्रों की आभा देखते ही बनती है। प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही साथ तालागांव में जहां सातवीं शताब्दी की अद्भूत रुद्र शिव की प्रतिमा विराजित है। वहीं मदकू द्वीप में साक्षात केदार तीर्थ का दर्शन होता है। यहां ऐतिहासिक काल के शिवलिंग,नंदी,प्रथम पूज्य गणेश की विभिन्न मुद्राओं में प्रतिमा के अलावा अन्य प्रतिमाओं से मदकू द्वीप की प्राचीनता का आभास होता है।

पौराणिक काल के महत्व के अनुसार यह हरिहर क्षेत्र केदार द्वीप के नाम से प्रसिद्घ है। नदी के मध्य द्वीप की मान्यता केदार तीर्थ के रूप में होती है। हमारा पूरा संभाग पौराणिक और ऐतिहासिकल काल के साथ ही प्रकृति की गोद में समाया हुआ है। राज्य सरकार की नजरें पड़े तो इसे पर्यटन उद्योग के रूप में विकसित किया जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो देश के नक्शे में संभाग देखते ही देखते छा जाएगा ।

शैव तांत्रिकों की अनुष्ठान स्थली ताला में स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना

छठवीं से दसवीं शताब्दी तक अत्यंत समृद्घ स्थल के रूप में पहचान बनाने वाला ताला तब शैव तांत्रिकों की अनुष्ठान स्थली रहा है। शैव उपासकों की धार्मिक स्थली रही ताला में अब रुद्र शिव के साथ ही देवरानी जेठानी मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। पुरातत्व विभाग के उत्खनन के बाद ताला में स्थापत्य व मूर्तिकला का रूप सामने आया है।

दुनिया की इकलौती प्रतिमा है रुद्र-शिव

वर्ष 1987-88 में भारतीय पुरातत्व विभाग की देखरेख में देवरानी मंदिर के परिसर में उत्खनन किया गया है। इस दौरान एक विलक्षण प्रतिमा प्राप्त हुई । यह प्रतिमा भारतीय कला में अपने ढंग की एकमात्र ज्ञात प्रतिमा है। शैव संप्रदाय से संबंधित इस प्रतिमा का शिल्प अद्भूत है।

शिव के रुद्र अथवा अघोर रूप में सामंजस्य होने के कारण सुविधा की दृष्टि से इसका नामकरण रुद्र शिव किया गया है। विश्व में अपने आप में अनोखी प्रतिमा 2.54 मीटर ऊंची और एक मीटर चौड़ी है। विभिन्न जीव जंतुओं की मुखाकृति से इसके अंग-प्रत्यंग को बनाया गया है। प्रतिमा समपद स्थानक मुद्रा में है। प्रतिमा में गिरगिट,मछली,केकड़ा,मयूर,कच्छप,सिंह आदि जीव जंतुओं का अंग बनाया गया है।

मदकू द्वीप में स्नान करने से केदार तीर्थ का मिलता है पुण्य

मदकू द्वीप ऐतिहासिक धार्मिक एवं पर्यटन स्थल है। यह द्वीप पौराणिक महत्व को अपने आप में संजोये हुए है। प्रागैतिहासिक काल में शिवनाथ नदी के तटवर्ती क्षेत्र में आदिमानवों के आवास के प्रमाण मिले हैं। मदकूद्वीप भी इसमें से एक है। वर्षों पहले यहां आदि मानवों की स्थली रही है। यही कारण है कि पुरातात्विक उत्खनन के दौरान पाषाण युगीन औजार भी मिले है।

इससे यह पुष्टि होती है कि यहां आदिमानवों का रहवास रहा है। यह प्रमुख रूप से उनकी गतिविधियों का केंद्र रहा है। इंडियन इपिग्रॉफी वर्ष 1959-60 के प्रतिवेदन में भी इसका साफतौर पर उल्लेख किया गया है। उत्खनन के दौरान मदकू द्वीप से दो शिलालेख भी मिला है। इसमें से एक तकरीबन तीसरी सदी ईस्वी का ब्राम्ही शिलालेख है। दूसरा शिलालेख शंख लिपि में है। यह इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है।