आचार्य विशुद्ध सागर महाराज की धर्मसभा में उस समय हैरत की स्थिति बन गई जब एक बंदर अचानक धर्मसभा में जा पहुंचा।
आचार्य विशुद्ध सागर महाराज की धर्मसभा हाउसिंग कॉलोनी स्थित बद्रीप्रसाद की बगिया में चल रही है। धर्मसभा के दौरान ही बंदर मंच पर जा पहुंचा। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि बंदर काफी समय तक मुनिश्री के पास जाकर बैठा रहा।
इस दौरा श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए जैन मुनि ने कहा कि आज हम सभी बड़े सौभाग्यशाली हैं, किसी न किसी भव से हमने पुण्य कार्य किए हैं। तभी हम गुरुओं के मुख से जिनवाणी का रसपान कर रहे हैं। हमने अभी तक संसार की बातें बहुत सुनी कभी धर्म वाणी को सुनने का प्रयास नही किया।
महाराजश्री ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने कहा था कि जन्म के बाद मृत्यु अवश्य है। एक दिन संसार से सभी को जाना है एक छोर मे जन्म और दूसरे छोर में मरण है और बीच में जो है वह है जिंदगी। हम इसका यदि सदुपयोग करते है, संयम धारण करते है तो हम निर्वाण की भी प्राप्ति कर लेते हैं।
महाराज श्री ने कहा कि सभी जानते है कि जन्म के बाद मरण तो होगा ही तो क्यों न हम अपने जीवन मे पुण्य के, धर्म के कार्य करें । पाप कायरे से अपनी दृष्टि हटाएं बुरी संगति से अपने आप को बचाएं। उन्होंने कहा कि हम संसार की बातों से मन हटाकर अपना जीवन धर्ममय बनाए छोटे-छोटे नियम लेकर अपने जीवन को निर्मल बनाकर हम अपनी आत्मा का कल्याण कर सकते हैं । धर्म की अचिन्त्य महिमा है जो इसका आश्रय लेता है वह कई उपलब्धियों को प्राप्त कर लेता है। उसका जीवन सुखमय बन जाता है। त्याग तपस्या तो करनी ही पड़ेगी क्योंकि बिना उसके कुछ लाभ नही होगा। केवल चर्चा करने से किसी का मोक्ष नही हुआ।
उन्होंने कहा कि आज इतने संत आपके समक्ष बैठे हैं वह पहले गागर थे, लेकिन उन्होंने इतना पुरुषार्थ किया किआज वह सागर बन गए। इतना बड़ा बदलाव क्योंकि उन्होंने एक-एक बूंद की कीमत की है। गणाचार्य महाराज ने कहा किइन संतों ने संसार की दिशा की ओर पीठ और धर्म की ओर मुख कर लिया है। यही धर्म का सबसे बड़ा बदलाव है। सही धर्म का आनंद तो इन्हें आ रहा है इसी का नाम हैं सम्यकदर्शन।
महाराज श्री ने कहा कि जीवन में जब धर्म आता है तो सारे संकल्प विकल्प समाप्त हो जाते हैं । विचारों में परिवर्तन आता है। मोहनीय कर्म हमारी अच्छाइयों पर पर्दा डाल देता है। गुणों को प्रगट नहीं होने देता हैं। अगर हम सच्चा पुरुषार्थ करेंगे तो हम भी परमात्मा बन सकते हैं। हमारी आत्मा में भी परमात्मा बनने की शक्ति है। लेकिन आज आवश्यकता है सच्ची श्रद्धा जगाने की । श्रद्धा हमारी ठोस होना चाहिए तो सफलताएं तुमसे दूर नहीं।