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108 घंटे की समाधि लेने गड्ढे में बैठे बाबा को जब बाहर निकाला गया, तो भक्तों के उड़ गए होश…




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चमन दास पिछले पांच सालों से समाधि का जोखिम उठा रहे थे। सबसे पहले उन्होंने 24 घंटे की समाधि ली थी। इसके बाद क्रमश: 48 घंटे, 72 घंटे और पिछले साल 96 घंटे की समाधि पर बैठे थे। चारों बार जब वे सुरक्षित बाहर निकल आए, तो उनके अनुयायियों में उनके प्रति भक्तिभाव बढ़ गया। इसे देखकर बाबा भी जोशीली हो उठे। इस बार 16 दिसंबर की सुबह करीब 8 बजे वे 108 घंटे की समाधि पर बैठे थे। 20 दिसंबर को जब उन्हें गड्ढे से बाहर निकाला गया, तब उनकी मौत हो चुकी थी।

मामला पचरी गांव से जुड़ा हुआ है। बाबा के अनुयायियों ने समाधि के लिए चार फुट गहरा गड्ढा खोदा था। सफेद कपड़े पहने बाबा की महिलाओं और पुरुषों ने पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। इसके बाद बाबा को गड्ढे में बैठा दिया गया।

बाबा को गड्ढे में बैठाने के बाद लोगों ने उस पर लकड़ी के पटरे रख दिए। ऊपर से मिट्टी डाल दी। इस तरह गड्ढा पूरी तरह से बंद हो गया था। 20 दिसंबर की दोपहर करीब 12 बजे जब बाबा को समाधि से बाहर निकाला गया, तो बेहोश थे।बाबा को गड्ढे में बैठाने के बाद लोगों ने उस पर लकड़ी के पटरे रख दिए। ऊपर से मिट्टी डाल दी। इस तरह गड्ढा पूरी तरह से बंद हो गया था। 20 दिसंबर की दोपहर करीब 12 बजे जब बाबा को समाधि से बाहर निकाला गया, तो बेहोश थे।

संभवत: उनकी अंदर ही मौत हो चुकी थी। बाबा इससे पहले भी बेहोशी की हालत में बाहर निकाले गए थे। लिहाजा लोगों ने उन्हें उठाने की कोशिश की। जब वे नहीं चेते, तब लोगों को होश उड़ गए। उन्हें फौरान हॉस्पिटल ले जाया गया। वहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।संभवत: उनकी अंदर ही मौत हो चुकी थी। बाबा इससे पहले भी बेहोशी की हालत में बाहर निकाले गए थे। लिहाजा लोगों ने उन्हें उठाने की कोशिश की। जब वे नहीं चेते, तब लोगों को होश उड़ गए। उन्हें फौरान हॉस्पिटल ले जाया गया। वहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।

30 साल के बाबा चमनदास जोशी ने जब पहली बार समाधि ली थी, तब पुलिस ने मौके पर पहुंचकर उन्हें रोकने की कोशिश की थी। हालांकि तब बाबा मान गए, लेकिन 18 दिसंबर 2015 को वे समाधि पर बैठ गए। बरहाल, बाबा को उसी गड्ढे में दफना कर अंतिम संस्कार कर दिया गया।30 साल के बाबा चमनदास जोशी ने जब पहली बार समाधि ली थी, तब पुलिस ने मौके पर पहुंचकर उन्हें रोकने की कोशिश की थी। हालांकि तब बाबा मान गए, लेकिन 18 दिसंबर 2015 को वे समाधि पर बैठ गए। बरहाल, बाबा को उसी गड्ढे में दफना कर अंतिम संस्कार कर दिया गया।

बताते हैं कि चमनदास अविवाहित थे। वे पहले खेत में रहते थे। धीरे-धीरे उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई और उनमें भी समाधि लेने को लेकर जोश आता गया।(नोट: ये सभी फोटो पिछली बार की समाधि के हैं)बताते हैं कि चमनदास अविवाहित थे। वे पहले खेत में रहते थे। धीरे-धीरे उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई और उनमें भी समाधि लेने को लेकर जोश आता गया।