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दिल्ली के रण में कौन मारेगा बाजी, क्या कहती है नई दिल्ली सीट की जनता… देखिए…




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दिल्ली विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। दिल्ली के 70 सीटों के लिए 8 फरवरी को वोट डाले जाएंगे और मतगणना 11 फरवरी को होगी।

कौन हैं आमने सामने

विधानसभा चुनाव के तीनों प्रमुख दलों ने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया है।नई दिल्ली विधानसभा सीट से सीएम अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भाजपा ने सुनील यादव को अपना प्रत्याशी बनाया है। तो वहीं कांगेस ने रोमेश सब्बरवाल को अपना प्रत्याशी बनाया है। बता दें कि बीजेपी ने काफी अटकलों के बीच सुनील यादव के नाम को फायनल किया है। वहीं मुख्यमंत्री केजरीवाल की लोकप्रियता के सामने सुनील यादव छोटा चेहरा है। ऐसे में देखना बेहद ही दिलचस्प होगा ​कि क्या बीजेपी चुनाव में अपने एजेंडे और नए चेहरे के दम पर केजरीवाल को मात दे सकते हैं।

दिल्ली में कांग्रेस कार्यकाल

साल 2003 और 2008 में कांग्रेस ने शीला दीक्षित की ‘विकासपरक’ छवि के सहारे 47 और 43 सीटें जीतकर भारतीय जनता पार्टी के मंसूबों पर पानी फेर दिया था। इस नतीजे के दम पर शीला दीक्षित ने दिल्ली में तीन बार मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाया और पार्टी के सबसे कद्दावर नेताओं में शुमार होने लगीं।

वहीं, साल 2015 में किरण बेदी पर भारी पड़े केजरीवाल ने पूरे ज़ोर पर दिखती नरेंद्र मोदी की चुनावी लहर को दिल्ली विधानसभा में दाखिल नहीं होने दिया। आम आदमी पार्टी 70 में से 67 सीटें जीतने में कामयाब रही। 49 दिन की सरकार से इस्तीफ़ा देने के बाद सियासी वनवास की तरफ़ बढ़ गए केजरीवाल ने 2015 की जीत से भारतीय राजनीतिक पटल पर ज़ोरदार वापसी की।

मतदाता

दिल्ली विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल और उत्तराखंड के मूल निवासियों की भूमिका अहम बनी हुई है। करीब 32 फीसदी मतदाता मूलरूप से पूर्वांचल के हैं। 30 सीटों पर ये प्रभावी हैं। इनमें से 15 सीटों पर ये निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यही हाल उत्तराखंड के मूल निवासियों का भी है। वे भी करीब 30 सीटों पर जीत-हार तय कर सकते हैं। आम आदमी पार्टी ने 15 तो भाजपा ने 8 सीटों पर पूर्वांचल मूल के नेताओं को टिकट दिए। पूर्वांचल, उत्तराखंड के अलावा भास्कर ने दक्षिण भारत और गुजरात से आकर दिल्ली में बसे लोगों से चुनावी हवा का रुख जानने की कोशिश की।

विधानसभा चुनाव के अहम मुद्दे

विजय भारद्वाज यूपी से हैं। 40 साल से डाबरी मोड़ इलाके में रहते हैं। उनके मुताबिक, “स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य बड़ा मुद्दा है। इस पर अच्छा काम हुआ है। सरकारी स्कूल वक्त पर लगते हैं। पढ़ाई का स्तर बेहतर हुआ और यूनिफॉर्म भी मिलती है। बिजली-पानी की सुविधा सुधरी।” सुशीला देवी मूलत: बिहार के मधुबनी से हैं। 40 साल से दिल्ली में हैं। वे कहती हैं, “घर के दोनों तरफ सड़क बन गई। प्राइवेट स्कूल अब मनमानी फीस नहीं बढ़ा सकते। बस में महिलाओं की यात्रा मुफ्त है। हालांकि, महिला सुरक्षा चिंता का विषय है। बेटी के स्कूल आने-जाने पर 5 हजार खर्च होता था। अब ये बच जाता है। बिजली-पानी फ्री है।” मेरठ से दिल्ली आकर बसे संजय कुमार का अनुमान है कि आप करीब 40 सीटों पर जीतेगी।

बिजली-पानी.. जिंदगानी

दिल्ली में करीब 20 लाख दक्षिण भारतीय हैं। करोलबाग में रहने वाले वेंकटेशन का दावा करते हैं, “पांच साल में बिजली कटौती नहीं देखी। बिल में भी बहुत फर्क आया। पानी की दिक्कत नहीं रही। आरटीओ में दलाली बंद है। महिलाओं की डीटीसी बसों में यात्रा फ्री हो गई है। हम चाहते हैं कि देश में मोदी हों, लेकिन दिल्ली में केजरीवाल ही रहें।” के. नंदकुमार तमिलनाडु से दिल्ली आए और यहीं के होकर रह गए। सीनियर साइंटिस्ट हैं। उनके मुताबिक, “केजरीवाल की एजुकेशन पॉलिसी बेहतर है। गाइडलाइंस तय हैं। हेल्थ सेक्टर में हालात पहले से बेहतर हुए। हालांकि, मैं कभी मोहल्ला क्लीनिक नहीं गया।”