राष्ट्रपति महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या करने वाले आरोपी नाथूराम गोड़से को कौन नहीं जानता होगा। मगर कम ही लोग जानते होंगे कि नाथूराम को ये नाम कैसे पड़ा था। नाथूराम गोड़से का नाम पहले नथूराम था, ये नाम उनके परिवार की ओर से रखा गया था। मगर बाद में अंग्रेजी की स्पेलिंग की वजह से उनका नाम नाथूराम हो गया।
नाथूराम को नाम नथूराम कैसे पड़ा, इसके पीछे भी एक कहानी है। दरअसल बचपन में उनके परिवार ने उनकी नाक में नथ पहनाई थी जिसके कारण वो नथूराम बुलाए जाते थे मगर बाद में अंग्रेजी के कारण नाम का उच्चारण नाथूराम हो गया, फिर वो इसी नाम से जाने जाने लगे। इस खबर के माध्यम से हम आपको बता रहे हैं कि नाथूराम गोड़से के जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी ही खास बातें। नाथूराम गोड़से को लेकर देश में अलग-अलग विचार धाराएं हैं लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि भरी सभा में महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या करने वाले नाथूराम गोड़से का बचपन लड़कियों की तरह बीता था।
नथूराम हो गए थे नाथूराम
नाथूराम का जन्म 19 मई 1910 और मृत्यु 15 नवम्बर 1949 को हुई थी। दरअसल नाथूराम के घर में उनसे पहले जितने लड़के पैदा हुए, सभी की अकाल मौत हो जाती थी। इसे देखते हुए जब नथू पैदा हुए तो परिवार ने उन्हें लड़कियों की तरह पाला। उन्हें बकायदा नथ तक पहनाई गई थी। इसी नथ के कारण उनका नाम नथूराम पड़ गया था जो आगे चलकर अंग्रेजी की स्पेलिंग के कारण नाथूराम हो गया था।
गांधी की हत्या में नाथूराम अकेले नहीं थे
महात्मा गांधी की हत्या में नाथूराम गोड़से अकेले नहीं थे। दिल्ली के लाल किले में चले मुकदमे में न्यायाधीश आत्मचरण की अदालत ने नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सजा सुनाई थी। बाकी पांच लोगों विष्णु करकरे, मदनलाल पाहवा, शंकर किस्तैया, गोपाल गोडसे और दत्तारिह परचुरे को उम्रकैद की सजा मिली थी। बाद में हाईकोर्ट ने किस्तैया और परचुरे को हत्या के आरोप से बरी कर दिया था।
गोडसे ने बताई थी हत्या की वजह
अदालत में चले ट्रायल के दौरान नाथूराम ने गांधी की हत्या की बात स्वीकार कर ली थी। कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए गोडसे ने कहा था कि गांधी जी ने देश की जो सेवा की है, मैं उसका आदर करता हूँ। उन पर गोली चलाने से पूर्व मैं उनके सम्मान में इसीलिए नतमस्तक हुआ था। किंतु जनता को धोखा देकर पूज्य मातृभूमि के विभाजन का अधिकार किसी बड़े से बड़े महात्मा को भी नहीं है। गांधी जी ने देश को छल कर देश के टुकड़े कर दिए। ऐसा कोई न्यायालय या कानून नहीं था, जिसके आधार पर ऐसे अपराधी को दंड दिया जा सकता, इसीलिए मैंने गांधी को गोली मारी।
मौत से ठीक पहले गांधी ने कहा था ‘जो देर करते हैं उन्हें सजा मिलती है’
महात्मा गांधी को 30 जनवरी 1948 को शाम 5:15 बजे महात्मा गांधी भागते हुए बिरला हाउस के प्रार्थना स्थल की तरफ बढ़ रहे थे। उनके स्टाफ के सदस्य गुरबचन सिंह ने घड़ी देखते हुए कहा था, ‘बापू आज आपको थोड़ी देरी हो गई।’ इस पर गांधी ने भागते हुए ही हंसकर जवाब दिया था, ‘जो लोग देर करते हैं उन्हें सज़ा मिलती है।’ इसके दो मिनट बाद ही नाथूराम गोडसे ने अपनी बेरेटा पिस्टल की तीन गोलियां महात्मा गांधी के शरीर में उतार दी थीं।
गोड़से से जेल में मिलने गए गांधी के बेटे ने कहा था
नाथूराम के भाई गोपाल गोडसे की किताब ‘गांधी वध और मैं’ के अनुसार जब गोडसे संसद मार्ग थाने में बंद थे, तो उन्हें देखने के लिए कई लोग जाते थे। एक बार गांधी जी के बेटे देवदास भी उनसे मिलने जेल पहुंचे थे। गोडसे ने उन्हें सलाखों के अंदर से देखते ही पहचान लिया था। इसके बाद गोडसे ने देवदास गांधी से कहा था कि आप आज मेरे कारण पितृविहीन हो चुके हैं। आप पर और आपके परिवार पर जो वज्रपात हुआ है उसका मुझे खेद है। लेकिन आप विश्वास करें, ‘किसी व्यक्तिगत शत्रुता की वजह से मैंने ऐसा नहीं किया है।’ इस मुलाकात के बाद देवदास ने नाथूराम को एक पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने लिखा था ‘आपने मेरे पिता की नाशवान देह का ही अंत किया है और कुछ नहीं। इसका ज्ञान आपको एक दिन होगा, क्योंकि मुझ पर ही नहीं संपूर्ण संसार के लाखों लोगों के दिलों में उनके विचार अभी तक विद्यमान हैं और हमेशा रहेंगे।”
गोड़से की अंतिम इच्छा
15 नवंबर 1949 को नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी दी गई थी। फांसी के लिए जाते वक्त नाथूराम के एक हाथ में गीता और अखंड भारत का नक्शा था और दूसरे हाथ में भगवा ध्वज। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि फांसी का फंदा पहनाए जाने से पहले उन्होंने ‘नमस्ते सदा वत्सले’ का उच्चारण किया और नारे लगाए थे। गोडसे की अपनी अंतिम इच्छा लिखकर दी थी कि उनके शरीर के कुछ हिस्से को संभाल कर रखा जाए और जब सिंधु नदी स्वतंत्र भारत में फिर से समाहित हो जाए और फिर से अखंड भारत का निर्माण हो जाए, तब उनकी अस्थियां उसमें प्रवाहित की जाए। इसमें दो-चार पीढ़ियां भी लग जाएं तो कोई बात नहीं।
अब भी सुरक्षित हैं नाथूराम की अस्थियां
नाथूराम का शव उनके परिवार को नहीं दिया गया था। अंबाला जेल के अंदर ही अंदर एक गाड़ी में डालकर उनके शव को पास की घग्घर नदी ले जाया गया। वहीं सरकार ने गुपचुप तरीके से उनका अंतिम संस्कार कर दिया था। उस वक्त गोडसे के हिंदू महासभा के अत्री नाम के एक कार्यकर्ता उनके शव के पीछे-पीछे गए थे। उनके शव की अग्नि जब शांत हो गई तो, उन्होंने एक डिब्बे में उनकी अस्थियां समाहित कर लीं थीं। उनकी अस्थियों को अभी तक सुरक्षित रखा गया है। गोडसे परिवार ने उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को अभी तक चाँदी के एक कलश में सुरक्षित रखा हुआ है।