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हिंदू-मुसलमान दोनों की दुकानें और घर जले, खुद का आशियाना छोड़ने के लिए मजबूर हुए लोग…




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‘लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में’ मशहूर शायर बशीर बद्र की लिखी ये लाइनें उस वक्त मेरे जहन में आईं, जब उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा के बाद का नजारा देखा। करावल नगर की मुख्य सड़क के दोनों तरफ हुई हिंसा ने मुसलमानों और हिंदुओं दोनों का ही नुकसान किया है। कई दुकानें जलीं और कई गाड़ियां आग के हवाले कर दी गईं। लोगों के आशियाने तक आग की लपटों से नहीं बच सके। नतीजा यह रहा कि पिछले दो दिनों में कई हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग अपना ही घर छोड़कर  जा रहे हैं। डर और खौफ दोनों ही समुदाय के लोगों में है। गुरुवार को हिंसाग्रस्त इलाके में जब हम ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए पहुंचे तो लोगों ने अपने घर को छोड़ने की कहानी बयां की।

‘वहां रहते तो मर जाते’
करावल नगर मुख्य सड़क पर घूमने के दौरान भीड़ में मुस्लिम समुदाय के लोग नजर आ रहे थे। हमने जाकर अपना परिचय दिया और पूछा कि दंगों से आप लोगों को कितना नुकसान हुआ। तो एक शख्स ने कहा कि कईयों को घर तक छोड़ना पड़ गए। इससे ज्यादा नुकसान क्या होगा। किसको घर छोड़ना पड़ा? ये सवाल पूछने पर उन्होंने पास में ही खड़े अब्दुल सत्तार नाम के व्यक्ति की तरफ हाथ दिखाया। अब्दुल ने बताया, ‘मुझे अपने पूरे परिवार के साथ गोकलपुरी से खजूरी खास आना पड़ा। वहां रहते तो मर जाते। दंगाई घर तक पहुंच गए थे। मन में बहुत डर था। इसलिए घर में ताला लगाकर खजूरी खास भाग आए, क्योंकि यहां हमारे रिश्तेदार रहते हैं। यहां सब साथ में हैं, इसलिए महफूज लग रहा है।’

बात के बीच में टोकते हुए एक लड़की बोली, ‘मेरा नाम शगुफ्ता है हमारे परिवार को भी रातोंरात घर से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा।’ क्या दंगाई आपके घर में घुस गए थे? ये पूछने पर शगुफ्ता ने कहा, ‘बाहर रोड पर लोगों को मारा जा रहा था। जय श्री राम के नारे लगाकर पत्थर फेंके जा रहे थे। ये सब सुनकर और देखकर इतना डर गए थे कि अंदर तक रूह कांप गई। इसलिए फोर्स के आते ही घर छोड़कर रिश्तेदारों के पास आ गए।’ जुनेरा ने कहा कि मैं 9वीं क्लास में पढ़ती हूं। जिस दिन दंगा शुरू हुआ, उस दिन स्कूल बस दंगाइयों के बीच फंस गई थी। एक पल को ऐसा लगा था कि अब नहीं बचेंगे। जैसे-तैसे घर पहुंचे और इसके बाद घरवालों के साथ गोकलपुरी से यहां आ गए।

इसी दौरान करावल नगर रोड पर बैग लेकर जाते हुए दो-तीन युवक दिखे। हमने उन्हें रोकते हुए पूछा कि कहां जा रहे हैं? तो बबलू नाम के युवक ने कहा, ‘गांव जा रहे हैं सर।’ आपको भी नुकसान हुआ क्या? इस सवाल के जवाब में बबलू ने कहा, ‘हम तो यहां काम धंधे के लिए रुके थे, लेकिन जहां काम करते थे, वो दुकान ही दंगे में जल गई। डर भी बहुत लग रहा है और काम धंधा भी नहीं है। इसलिए गांव ही जा रहे हैं।’ नजदीक में ही खड़ा अन्य युवक बोला, ‘हम यूपी के हरदोई के रहने वाले हैं। काम धंधे के लिए दिल्ली में थे, अब यहां रुकना महफूज नहीं, इसलिए गांव जा रहे हैं।’

चंदू नगर में हमें अमित कुमार भी बैग के साथ मिले। इनके साथ में दो-तीन लड़कियां भी थीं। आप लोग कहां जा रहे हैं? ये पूछने पर अमित बोले, ‘बुलंदशहर। सर यहां बहुत डर लग रहा है। दो-तीन दिन बड़ी मुश्किल से निकाले। आज सब सामान्य लग रहा है, इसलिए निकलने की हिम्मत जुटाई। मैं मेरी तीन बहनों के साथ चंदू नगर में किराये से पिछले चार साल से रह रहा था। मैं ऑटो पार्ट्स की दुकान में काम करता हूं और बहनें पढ़ाई कर रही हैं, लेकिन अब यहां नहीं रहना।’ क्या अब दिल्ली नहीं लौटेंगे? इस पर कहा कि हालात ठीक होने के बाद लौटेंगे, लेकिन कहीं और रहेंगे।

मुस्लिम बहुल इलाकों में जा रहे मुसलमान
उत्तर पूर्वी दिल्ली के जिन इलाकों में हिंसा हुई है, वहां हिंदुओं के बीच रहने वाले ऐसे मुसलमान जिनकी संख्या कम की है, वे घरों को बंद करके ऐसे क्षेत्रों में चले गए हैं, जहां मुस्लिम समुदाय की तादाद ज्यादा है। मोंगा नगर, नेहरू विहार, चंदू नगर से मुस्लिम मुस्तफाबाद चले गए, क्योंकि यह मुस्लिम बहुल इलाका है। हालांकि, इन इलाकों में भी जहां मुस्लिमों की संख्या ज्यादा है, वे कहीं नहीं गए। 

चंदू नगर के धर्म सिंह कहते हैं, ‘हमारी पट्‌टी में दो-तीन मुस्लिम परिवार थे, वे दो-तीन पहले ही घर में ताला लगाकर चले गए थे। तब से अब तक आए ही नहीं। किराए से रहने वाले काफी हिंदू लड़के-लड़कियां भी अपने-अपने गांव चले गए।’ खजूरी खास में जली दुकानों के नीचे रईसुद्दीन मिले। हमने अपना परिचय दिया तो वो दुकान और जले हुए घर को दिखाने लगे। बोले, ‘पूरी दुकान जल गई। घर जल गया।’ घरवाले कहां हैं? तो जवाब मिला कि सब मुस्तफाबाद में हैं। हम लोग भी शाम को चले जाएंगे। यहां नहीं रुकेंगे। ऐसा क्यों? तो बोले, हमारी कॉलोनी में जितने भी मुस्लिम घर थे, उन्हें जलाया गया है। हिंदुओं के घर नहीं जले। अब यहां रुके तो यह डर है कि कहीं रात में कोई आ न जाए। इसलिए मुस्तफाबाद ही चले जाएंगे।