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Explainer : कैसे बनते हैं शंकराचार्य और किस तरह शुरू हुई हिंदू धर्म में ये परंपरा




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द्वारका और ज्योर्तिमठ पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद इन दोनों पीठों में शंकराचार्य की जगह रिक्त हो गई है. स्वरूपानंद अकेले शंकराचार्य थे, जो दो पीठों के प्रमुख थे. उनकी जगह इन पीठों के शंकराचार्य कैसे बनेंगे. उनकी योग्यता क्या होनी चाहिए.

हाइलाइट्स

स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती के निधन से द्वारका और ज्योर्तिमठ पीठ में बनेंगे नए शंकराचार्य
आमतौर पर दंडी स्वामी ही बनते हैं शंकराचार्य
आदि शंकराचार्य ने देशभर में घूमकर चार मठ बनाए और वहां शंकराचार्यों की नियुक्ति की

द्वारका शारदापीठ और ज्योर्तिमठ पीठ के शंकराचार्य रहे स्वामी स्वरुपानंद के निधन के बाद उनके उत्तराधिकारियों के चयन को लेकर कौतुहल है. ये सवाल भी पूछे जा रहे हैं उनकी जगह इन दोनों पीठों में जो शंकराचार्य बनेंगे वो कैसे नियुक्त होंगे. शंकराचार्य हिंदू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है जो बौद्ध धर्म में दलाईलामा एवं ईसाई धर्म में पोप के समकक्ष है. देश में चार मठों में चार शंकराचार्य होते हैं. स्वामी स्वरूपानंद अकेले ऐसे शंकराचार्य थे, जो दो मठों के प्रमुख थे.

इन दोनों मठों से जुड़े अखाड़े और धार्मिक संस्थान और साधु संत निश्चित तौर पर इन दोनों मठों के लिए उनके उत्तराधिकारी यानि प्रमुख का चयन कर सकते हैं लेकिन उन्हें शंकराचार्य की पदवी ऐसे नहीं मिलेगी.

कब हुई शंकराचार्य की शुरुआत
इस पद की शुरुआत आदि शंकराचार्य से मानी जाती है. आदि शंकराचार्य एक हिंदू दार्शनिक और धर्मगुरु थे, जिन्हें हिंदुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में एक के तौर पर जाना जाता है. आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किये.

कैसे बने शुरुआती शंकराचार्य
चारों मठों में प्रमुख को शंकराचार्य कहा गया. इन मठों की स्थापना करके आदि शंकराचार्य ने उन पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया. तबसे ही इन चारों मठों में शंकराचार्य पद की परम्परा चली आ रही है.हर मठ का अपना एक विशेष महावाक्य भी होता है.

मठ का मतलब क्या है
मठ का अर्थ ऐसे संस्थानों से है जहां इसके गुरु अपने शिष्यों को शिक्षा, उपदेश आदि देने का काम करते हैं. इन्हें पीठ भी कहा जाता है. ये गुरु प्रायः धर्म गुरु होते है. दी गई शिक्षा मुख्यतः आध्यात्मिक होती है. एक मठ में इन कार्यो के अलावा सामाजिक सेवा, साहित्य आदि से संबंधित काम होते हैं. मठ एक ऐसा शब्द है जिसके बहुधार्मिक अर्थ हैं. बौद्ध मठों को विहार कहते हैं. ईसाई धर्म में इन्हें मॉनेट्री, प्रायरी, चार्टरहाउस, एब्बे इत्यादि नामों से जाना जाता है.

कौन संन्यासी किस मठ का
देश भर में संन्यासी किसी न किसी मठ से जुड़े होते हैं. संन्यास लेने के बाद दीक्षित नाम के बाद एक विशेषण लगा दिया जाता है जिससे यह संकेत मिलता है कि यह संन्यासी किस मठ से है. वेद की किस परम्परा का वाहक है. सभी मठ अलग-अलग वेद के प्रचारक होते हैं.

आदि शंकराचार्य कौन थे
आदि शंकराचार्य (जन्म नाम: शंकर, जन्म: 788 ई. – मृत्यु: 820 ई.) अद्वैत वेदांत के प्रणेता, संस्कृत के विद्वान, उपनिषद व्याख्याता और हिन्दू धर्म प्रचारक थे. हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार इनको भगवान शंकर का अवतार माना जाता है. इन्होंने लगभग पूरे भारत की यात्रा की. इनके जीवन का अधिकांश भाग उत्तर भारत में बीता.

चार पीठों की स्थापना करना इनका मुख्य रूप से उल्लेखनीय काम था. उन्होंने कई ग्रंथ लिखे. किन्तु उनका दर्शन उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और गीता पर लिखे उनके भाष्यों में मिलता है.
आदि शंकराचार्य ने चारों मठों के अलावा पूरे देश में बारह ज्योतिर्लिंगों की भी स्थापना की थी. आदि शंकराचार्य को अद्वैत परंपरा का प्रवर्तक माना जाता है.

क्या है शंकराचार्य बनने की योग्यता
देश की चारों पीठों पर शंकराचार्य की नियुक्ति के लिए ये योग्यता जरूरी है- त्यागी ब्राम्हण हो, ब्रह्मचारी हो, दंडी सन्यासी हो, संस्कृत, चतुर्वेद, वेदांत और पुराणों का ज्ञाता हो, राजनीतिक न हो.

स्वामी स्वरुपानंद तो द्वारका शारदापीठ और ज्योर्तिमठ पीठ के शंकराचार्य थे. उनके स्थान पर इन पीठों पर जो उत्तराधिकारी चुने जाएंगे. केवल कांची कामकोटी में मौजूदा शंकराचार्य पहले से अपने उत्तराधिकारी शंकराचार्य की घोषणा कर देता है लेकिन कांची कामकोटी पीठ खास और पंचभूतत्व स्थल है. इसे चार मठों से अलग खास और प्रमुख पीठ माना जाता है. अन्य मठों में शंकराचार्य तय करने की प्रक्रिया होती है.

जिन्हें शंकराचार्य बनाया जाता है, उन्हें अखाड़ों के प्रमुखों, आचार्य महामंडलेश्वरों, प्रतिष्ठित संतों की सभा की सहमति के साथ और काशी विद्वत परिषद की स्वीकृति की मुहर भी चाहिए होती है. इसके बाद ही शंकराचार्य की पदवी मिलती है.

कहां हैं शंकराचार्यों के चार मठ
ये चारों मठ ईसा से पूर्व आठवीं शताब्दी में स्थापित किए गए थे. ये चारों मठ आज भी चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में सनातन परंपरा का प्रचार व प्रसार कर रहे हैं. हर शंकराचार्य को अपने जीवनकाल में ही सबसे योग्य शिष्य को उत्तराधिकारी बनाना होता है. ये चार मठ देश के चार कोनों में हैं.

उत्तरामण्य मठ या उत्तर मठ, ज्योतिर्मठ जो कि जोशीमठ में स्थित है
पूर्वामण्य मठ या पूर्वी मठ, गोवर्धन मठ जो कि पुरी में स्थित है
दक्षिणामण्य मठ या दक्षिणी मठ, शृंगेरी शारदा पीठ जो कि शृंगेरी में स्थित है.
पश्चिमामण्य मठ या पश्चिमी मठ, द्वारिका पीठ जो कि द्वारिका में स्थित है.

श्रृंगेरी मठ
ये दक्षिण भारत में चिकमंगलूर में स्थित है. श्रृंगेरी मठ के अन्तर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती तथा पुरी संप्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है. इस मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य सुरेश्वरजी थे, जिनका पूर्व में नाम मण्डन मिश्र था.
मठ का महावाक्य- ‘अहं ब्रह्मास्मि’
मठ का वेद – ‘यजुर्वेद’
मौजूदा शंकराचार्य – स्वामी भारती कृष्णतीर्थ (36वें मठाधीश)

गोवर्धन मठ
ये भारत के पूर्वी भाग में ओडिशा राज्य के जगन्नाथ पुरी में स्थित है. गोवर्धन मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद ‘आरण्य’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है. इस मठ के प्रथम मठाधीश आदि शंकराचार्य के प्रथम शिष्य पद्मपाद हुए
मठ का महावाक्य – ‘प्रज्ञानं ब्रह्म’
मठ का वेद – ‘ऋग्वेद’
मौजूदा शंकराचार्य – निश्चलानंद सरस्वती (145 वें मठाधीश)

शारदा मठ
शारदा (कालिका) मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है. शारदा मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद ‘तीर्थ’ और ‘आश्रम’ सम्प्रदाय नाम का विशेषण लगाया जाता है. शारदा मठ के प्रथम मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे. वो शंकराचार्य के प्रमुख चार शिष्यों में एक थे.
मठ का महावाक्य – ‘तत्त्वमसि’
मठ का वेद – ‘सामवेद’
मौजूदा शंकराचार्य – अब तक स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती इसके मठाधीश थे. अब उनके निधन से ये जगह रिक्त हो गई है.

ज्योतिर्मठ
उत्तरांचल के बद्रीनाथ में स्थित है ज्योतिर्मठ. यहां दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘गिरि’, ‘पर्वत’ एवं ‘सागर’ संप्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है. ज्योतिर्मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य तोटक बनाए गए थेमठ का महावाक्य – ‘अयमात्मा ब्रह्म’
मठ का वेद – अथर्ववेद
मौजूदा शंकराचार्य – अब तक स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती इसके मठाधीश थे. अब उनके निधन से ये जगह रिक्त हो गई है.


इसके अला्वा कांची कामकोटि मठ
कांची मठ कांचीपुरम में स्थापित एक हिंदू मठ है. यह पांच पंचभूतस्थलों में एक है. यहां के मठाधीश्वर को शंकराचार्य कहते हैं. इसे आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया था. आज ये दक्षिण भारत के महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में एक है. इसके शंकराचार्य अब तक श्रीजयेंद्र सरस्वती थे. अब उनके निधन के बाद विजेंद्र सरस्वती इसके 70वें शंकराचार्य होंगे.

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