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तब अचानक मुख्यमंत्री बन गए थे दिग्विजय सिंह, क्या अब बनेंगे कांग्रेस के अध्यक्ष?




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आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि उस वक्त मुख्यमंत्री पद के लिए दिग्विजय सिंह के नाम पर दूर-दूर तक चर्चा नहीं थी। इसके बावजूद उन्होंने तमाम दावेदारों को पटखनी दे दी थी। 

कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव देश के तमाम चुनावों से ज्यादा रोचक होता जा रहा है। वजह है इसके दावेदार के रूप में नेताओं के नाम का एलान होना और उनका अचानक पीछे हट जाना। कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में आज यानी गुरुवार (29 सितंबर) को बड़ा उलटफेर हुआ। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। वहीं, मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पार्टी के सर्वोच्च पद के चुनावी मैदान में कूद गए हैं। इसके बाद लोगों के जेहन में वह किस्सा घूमने लगा, जब दिग्विजय सिंह अचानक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री चुन लिए गए थे। ऐसे में सोशल मीडिया पर इस बात की चर्चा होने लगी है कि दिग्विजय सिंह एक बार फिर सियासी बिसात पर अपने विरोधियों को मात देने में कामयाब हो सकते हैं। अब दिग्विजय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बनेंगे या नहीं, यह तो भविष्य में पता चलेगा, लेकिन हम आपको उनके अचानक मुख्यमंत्री बनने के किस्से से रूबरू कराते हैं। साथ ही, बताते हैं कि कैसे एक फोन कॉल पर उनका राजतिलक हुआ था?

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री पद को लेकर मचा था घमासान

दरअसल, वह दौर था अयोध्या को लेकर चल रहे आंदोलन का। बाबरी विध्वंस के बाद देश का माहौल एकदम अलग था। उस वक्त 1993 में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए तो बहुमत कांग्रेस के हाथ लगा। चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर कमलनाथ, माधवराव सिंधिया, श्यामचरण शुक्ल जैसे नेताओं के बीच कशमकश शुरू हो गई थी। विधायक दल की बैठक के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए अगर किसी के नाम पर सबसे ज्यादा चर्चा थी तो वह थे श्यामचरण शुक्ल। उस बीच अर्जुन सिंह ने पिछड़े समाज से आने वाले सुभाष यादव का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए अचानक आगे बढ़ा दिया। हालांकि, अर्जुन सिंह यह भांप गए थे कि सुभाष यादव को ज्यादा विधायकों का समर्थन नहीं मिल पाएगा। ऐसे में उन्होंने माधव राव सिंह को समर्थन देने की योजना बना ली। 

दूर-दूर तक चर्चा में नहीं थे दिग्विजय सिंह 

आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि उस वक्त मुख्यमंत्री पद के लिए दिग्विजय सिंह के नाम पर दूर-दूर तक चर्चा नहीं थी। दिग्विजय सिंह ने विधानसभा चुनाव भी नहीं लड़ा था, क्योंकि उस समय वह सांसद थे। वहीं, माधवराव सिंधिया ग्वालियर चंबल के अपने करीब 15 विधायकों के समर्थन को लेकर चुप्पी साधे हुए थे। इसके अलावा कमलनाथ भी मुख्यमंत्री बनने की रेस में कूद चुके थे। ऐसे में मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए, यह सवाल कांग्रेस के दिग्गज नेताओं का सिरदर्द बना हुआ था। उस दौरान विधायक दल की एक बैठक हुई, जो करीब चार घंटे तक चली। इस बैठक में कांग्रेस आलाकमान के पर्यवेक्षक के तौर पर प्रणब मुखर्जी, सुशील कुमार शिंदे और जनार्दन पुजारी शामिल हुए। 

कमलनाथ ने भी पीछे खींच लिए कदम

बैठक में चार घंटे तक हुई चर्चा के बाद कमलनाथ यह समझ चुके थे कि मुख्यमंत्री पद के लिए उनकी दावेदारी मजबूत नहीं है। ऐसे में उन्होंने अपने कदम पीछे खींचने में ही भलाई समझी। दरअसल, इसके पीछे विधायक दल की बैठक से पहले कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच बातचीत को जिम्मेदार माना जाता है, जिसमें यह तय हुआ था कि मुख्यमंत्री पद के लिए उसी नेता का नाम आगे किया जाए, जिस पर आम सहमति बन सके। ऐसे में विधायक दल की बैठक के दौरान पहली बार दिग्विजय सिंह के नाम पर चर्चा की गई। कमलनाथ और सुरेश पचौरी ने ही दिग्विजय सिंह का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए सामने रखा। 

एक फोन कॉल ने बदल दी दिग्विजय सिंह की किस्मत

विधायक दल की बैठक के दौरान किसी एक नेता के नाम पर सहमति नहीं बनी। हालांकि, तब तक कमलनाथ और माधव राव सिंधिया मुख्यमंत्री पद की रेस से हट गए थे और मैदान में श्यामचरण शुक्ल के सामने दिग्गी राजा आ गए थे। ऐसे में प्रणब मुखर्जी ने गुप्त मतदान कराया, जिसका नतीजा बेहद चौंकाने वाला था। दरअसल, 174 विधायकों में से 56 विधायकों ने श्यामचरण शुक्ल को मुख्यमंत्री बनाने की बात कही थी। वहीं, दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनाने के लिए 100 विधायकों ने मतदान किया था। कमलनाथ ने विधायकों के फैसले की जानकारी पार्टी हाईकमान को दी। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष पीवी नरसिम्हा राव ने प्रणब मुखर्जी को फोन किया और कहा कि जिसके पक्ष में ज्यादा विधायकों का समर्थन है, उन्हें मुख्यमंत्री बना दीजिए। इस तरह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने के बावजूद तमाम दावेदारों को पटखनी देते हुए दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बन गए थे।

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