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HIV से पूरी तरह मुक्त हुआ यह शख्स, दुनिया में दूसरी बार हुआ यह कमाल




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ब्रिटेन में डाक्टरों ने HIV संक्रमित एक व्यक्ति के पूरी तरह ठीक होने का दावा किया है. डॉक्टर ने दावा किया है कि HIV के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखने वाले व्यक्ति का ‘बोनमैरो’ संक्रमित व्यक्ति को लगाए जाने के बाद वह शख्स पूरी तरह से HIV संक्रमण से मुक्त हो गया. यह अपनी तरह का दुनिया का दूसरा मामला है. डॉक्टरों का कहना है कि यह मामला इस बात का सबूत है कि वैज्ञानिक एक दिन AIDS का पूरी दुनिया से सफाया कर सकेंगे. हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि एड्स का इलाज मिल गया है.

डॉक्टरों के मुताबिक उनके पास एक ऐसा डोनर था, जिसमें दुर्लभ तरह के जेनेटिक बदलाव (जो HIV इंफेक्शन को रोक देते हैं) किए गए थे. इस डोनर के बोनमैरो से HIV पीड़ित के बोनमैरो को स्टेम सेल तकनीक के जरिए बदला गया. इस ऑपरेशन के तीन साल बाद और HIV की दवा (ART- एंटीरेट्रोवायरल ड्रग्स) बंद करने के 18 महीने बाद भी रोगी के अंदर पहले के HIV इंफेक्शन का कोई पता नहीं चला है.

HIV बायोलॉजिस्ट की टीम के सह-प्रमुख और एक प्रोफेसर रविंद्र गुप्ता ने कहा है कि ऐसा कोई भी वायरस नहीं है जिसे हम देख सके. हमें कुछ भी नहीं मिला. उन्होंने यह भी कहा कि यह मामला इस बात का सबूत है कि वैज्ञानिक एक दिन AIDS का पूरी दुनिया से सफाया कर सकेंगे. हालांकि उन्होंने चेतावनी भी दी कि यह कहना बहुत जल्दी होगी कि वह (संक्रमित व्यक्ति) पूरी तरह से सही हो चुका है.

डॉ गुप्ता ने अपने रोगी को औपचारिक तौर पर सही हो चुका और रोग की कमी की हालत में बताया.

इस व्यक्ति को द लंदन पेशेंट (लंदन का रोगी) कहा जा रहा है. इस रोगी का केस भी HIV से औपचारिक तौर पर निजात पा चुके पहले अमेरिकी आदमी जैसा ही है. टिमोथी ब्राउन नाम का यह शख्स जिसे बर्लिन पेशेंट (बर्लिन का रोगी) नाम से जाना जाता था, उसका भी 2007 मे ऐसा ही इलाज हुआ था और उसका HIV भी खत्म हो गया था.

HIV मामलों के जानकारों के मुताबिक ब्राउन जो बर्लिन में रह रहे थे, उसके बाद अमेरिका चले गए थे और वे आज भी HIV से मुक्त हैं.

दुनिया में फिलहाल करीब 3.7 करोड़ लोग HIV और AIDS से पीड़ित हैं और 1980 से अभी तक इसके मामलों में करीब 3.5 करोड़ लोगों की मौत हो चुकी है. पिछले कुछ सालों में ऐसी दवाओं का निर्माण हुआ है जो रोगियों के शरीर पर इस वायरस के प्रभाव को नियंत्रित रखता है. गुप्ता जो कि कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में हैं और यूनिवर्सिट कॉलेज, लंदन में काम करते हैं, ‘लंदन पेशेंट’ नाम के इस रोगी का इलाज कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि रोगी को 2003 में HIV हुआ था और 2012 में उसके अंदर हॉजकिंस लिम्फोमा नाम के एक ब्लड कैंसर का पता चला.

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