


बिलासपुर,- छत्तीसगढ़ में विकास की सड़कें इतनी पतली बन रही हैं कि लोग कहने लगे हैं – डामर की जगह पोत दिया गया है तरबूज का रस! प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान के तहत कोटा इलाके में जो सड़क बनी है, वो मानो भ्रष्टाचार की काली पिच पर बिछी हो!
ग्रामीणों के मुताबिक पुडुरिंगवार से पीपरपारा तक बनाई जा रही सीसी और डब्लूबीएम सड़क का हाल ऐसा है कि पहली बारिश में ही सड़क का मेकअप बह जाने का डर बना हुआ है। ठेकेदार ने नियमों को ऐसा रौंदा, जैसे ट्रैक्टर से पापड़ बेल दिए हों।
18 एमएम में ही निपटा दिया “विकास”
मानक कहता है – सड़क बनेगी 26 एमएम की, वो भी परत-दर-परत। पहले 20 एमएम बीएम, फिर 6 एमएम सिलकोट। लेकिन हमारे जुगाड़ू ठेकेदार ने एक ही दिन में 18 एमएम की सड़क डाल दी – वन डे मैच में टेस्ट की कहानी! न परतें, न प्रक्रिया – सीधा डामर उड़ेला और गिन लिया करोड़ों।
1.72 करोड़ की लागत – लेकिन टिके नहीं एक थपकी तक!
सड़क इतनी मजबूत है कि बच्चे उंगली से कुरेद दें तो डामर छील जाए। अब सवाल उठता है कि क्या ये सड़क बनी है या पत्तल पर चिपका हुआ डामर? 1 करोड़ 72 लाख रुपये की योजना में गुणवत्ता की जगह ‘कमीशन क्वालिटी’ भर दी गई है।
डबल इंजन सरकार, ट्रिपल गठजोड़ – ठेकेदार, अफसर, चुप्प विधायक
केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार – यानि डबल इंजन। लेकिन कोटा के हाल देखकर लगता है ये इंजन सिर्फ ठेकेदारों को खींचने में लगा है, आम जनता को नहीं। अफसर आंखें मूंदे बैठे हैं, और कांग्रेस विधायक अटल श्रीवास्तव तो मानो मौन व्रत पर हैं।
ग्रामीणों ने नाराजगी जताई है कि जब आदिवासी इलाकों के लिए बन रही सड़कों तक में भ्रष्टाचार होगा, तो फिर न्याय की उम्मीद किससे करें? शिकायत के बाद भी कार्रवाई ठंडी चाय जैसी – ना असरदार, ना तेज़।
ग्राउंड रिपोर्ट कहती है – “सड़क नहीं, घोटाले की स्लाइड!”
ग्रामीणों ने बताया कि न तो मिट्टी की सघनता सही ढंग से जांची गई, न परतों का समय दिया गया। काम ऐसा दौड़ में किया गया जैसे ठेकेदार ने “एक दिन में सड़क बना, इनाम पा” प्रतियोगिता में हिस्सा लिया हो।
अब क्या?
अब आदिवासी मांग कर रहे हैं उच्चस्तरीय जांच की। लेकिन इस सिस्टम को देखकर सवाल उठता है – क्या ये जांच भी किसी चाय की प्याली में उठे बुलबुले की तरह खत्म हो जाएगी?