भारत में चीन किस तरह अपना दखल बढ़ाता और मज़बूत करता जा रहा है, उसका सबसे स्पष्ट उदाहरण है भारत में लगातार बढ़ रहा चीनी निवेश और कारोबार. भारत ही नहीं बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में चीनी निवेश तेज़ी से बढ़ रहा है. कई बार भारत इन हालात पर चिंता भी जताता रहा है लेकिन कारोबार चूंकि दोतरफा है, इसलिए दोनों देश व्यावसायिक रिश्तों में मज़बूत भविष्य तलाश रहे हैं. भारत के राजदूत विक्रम मिसरी ने पिछले दिनों साफ कह ही दिया है कि इस साल दोनों देशों के बीच कारोबार 100 बिलियन डॉलर का आंकड़ा पार कर जाएगा. राजनीतिक, कूटनीतिक व अंतरराष्ट्रीय विवादों के बावजूद भारत में कई सेक्टरों में चीन का दखल बढ़ रहा है और कई नामी कंपनियां चीनी निवेश को मज़बूत कर रही हैं.
हिन्दी-चीनी भाई भाई… ये जुमला कम से कम व्यापार और व्यवसाय के मोर्चे पर खरा उतरता है. विडंबना ये है कि एक तरफ सीमा विवाद और आतंकवाद के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच भारी असहमतियां हैं, लेकिन कारोबार और निवेश की बात हो तो भारत और चीन लगातार दोस्त के तौर पर आगे बढ़ रहे हैं. यानी, एक-एक हाथ मिलाया जा रहा है और दोनों के दूसरे हाथ पीठ पीछे हैं.
भारत के किन सेक्टरों में चीनी निवेश सबसे ज़्यादा है? FICCI की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऑटोमोबाइल सेक्टर में 40%, धातु उद्योग में 17%, पावर सेक्टर में 7%, कंस्ट्रक्शन व रियल एस्टेट में 5% और सेवाओं के सेक्टर में 4% निवेश के चलते इन क्षेत्रों में चीनी निवेश सबसे ज़्यादा है. इसके अलावा उपभोक्ता उत्पादों, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा और स्टील उत्पादन जैसे क्षेत्रों में चीन का निवेश भारत में बढ़ रहा है.
भारत में चीनी फंड वाली प्रमुख कंपनियां
पेटीएम (PayTM) : यह ई-कॉमर्स कंपनी भारतीय है लेकिन इसका कॉंसेप्ट, प्रेरणा और निवेश चीन के ज़रिए हुआ है. ये भारत की पहली कंपनी है जिसे चीन की ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा ने फंड किया था जो अब बढ़कर 4300 करोड़ रुपये से ज़्यादा का हो चुका है.
हाइक मैसेजेंर (Hike) : स्मार्टफोन के ज़रिए फौरी संदेश प्रसारित करने वाली इस सेवा में चीन की बड़ी इंटरनेट कंपनी टेंसेंट होल्डिंग्स और ताइवान के फॉक्सकॉन टेक्नोलॉजी समूह ने मिलकर 9700 करोड़ रुपये से ज़्यादा का निवेश किया है.
स्नैपडील (Snap Deal) : भारत की इस ई-कॉमर्स कंपनी 23 निवेशकों ने 10 हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा का निवेश किया है. इनमें से एक निवेशक सॉफ्टबैंक समूह चीन की नामी ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा होल्डिंग लि. में सबसे बड़ा शेयरहोल्डर है.
इनके अलावा मोबाइल एप सर्विस ओला, कुछ समय पहले आइबीबो समूह को खरीदने वाली डिजिटल ट्रैवल कंपनी मेकमाय ट्रिप, ई-कॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट और यूसी ब्राउज़र कंपनी में भी अच्छा खासा चीनी निवेश है.
भारत में चीन के बड़े प्रोजेक्ट्स
चीनी कंपनी हाएर ने ग्रेटर नोएडा में एक नए प्लांट में 3 हज़ार करोड़ रुपए का निवेश किया है, जहां 20 लाख रेफ्रिजरेटर और एक-एक लाख वॉशिंग मशीनें, एसी व टीवी बनाए जाएंगे. इसी तरह चीन की इलेक्ट्रिकल कंपनी मिडिया ने भी बिजली संचालित घरेलू उत्पाद बनाने के लिए 1300 करोड़ रुपए का निवेश किया है. इस कंपनी ने पुणे में एक नए प्लांट के लिए 800 करोड़ रुपए का निवेश किया.
चीनी कंपनी हाएर का भवन. फाइल फोटो.
इसके अलावा चीन ने आंध्र प्रदेश के श्री सिटी में भी बड़ा निवेश करने में दिलचस्पी दिखाई है. यहां दो चीनी औद्योगिक कंपनियों ने प्लांट खोलने के लिए दस्तावेज़ तैयार करवाए. दो तीन महीने पहले ही इस नगर में निवेश के लिए 10 से 15 चीनी कंपनियों के प्रतिनिधि भी बड़ा निवेश करने में दिलचस्पी ज़ाहिर कर चुके हैं. ऊर्जा के क्षेत्र में प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए चीनी कंपनी सीईटीसी यहां 345 करोड़ और लॉंगी सोलर टैक्नोलॉजी कंपनी यहां 2000 करोड़ रुपए से ज़्यादा के निवेश में दिलचस्पी दिखा चुकी हैं.
इसके अलावा, गुजरात के हालोल व कच्छ और कर्नाटक के बैंगलूरु, में क्रमश: ऑटो, स्टील और रियल स्टेट से जुड़े प्रोजेक्ट्स में सैक मोटर्स, त्सिंगशान होल्डिंग ग्रुप, सीएनटीसी जैसी चीनी कंपनियां भारी निवेश कर रही हैं, जो सम्मिलित रूप से तकरीबन 10 हज़ार करोड़ रुपए तक होने का अनुमान है. साथ ही, चीन के एक इनवेस्टमेंट बैंक द्वारा भी भारत में बड़ा निवेश किए जाने की चर्चा कुछ समय से है.
एप्स में भी चीन के हाथ है बाज़ी
चीनी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी शाओमी भारत में पिछले कुछ सालों से पैर जमा चुकी है. मोबाइल फोन निर्माता के रूप में इस कंपनी का मार्केट शेयर भारत में 29 प्रतिशत तक पहुंच चुका है और यह कंपनी लगातार अपना राजस्व बढ़ाने में सफल हुई है. हकीकत ये है कि भारत में ज़ॉमेटो और स्विगी जैसे एप सहित तकरीबन हर बड़े तकनीकी स्टार्ट अप में चीनी निवेश हो रहा है. पिछले साल के दौरान, देश में 100 सबसे ज़्यादा डाउनलोड किए जाने वाले एप की लिस्ट में 44 चीनी एप शामिल रहे हैं.
आइए, अब करें कारणों की बात
चीनी निवेशकों को भारत में निवेश करने में मदद करने वाली फर्म लिंक लीगल इंडिया लॉ सर्विसेज़ के संतोष पाई ने एक समाचार समूह के साथ बातचीत करते हुए भारत में बढ़ते चीनी निवेश के बारे में कहा ‘ये कंपनियां जैसे एक फेंस क्रॉस करने के लिए तैयार बैठी थीं लेकिन अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर यानी कारोबार युद्ध थमा नहीं, तो इन्हें कहीं तो जाना था. इन कंपनियों ने भारत को तवज्जो नहीं दी थी लेकिन ट्रेड वॉर के चलते यहां फैक्ट्रियां शुरू करने के फैसले हो रहे हैं’.
भारत-चीन संबंध इलस्ट्रेशन.
चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर की शुरूआत पिछले साल मार्च में हुई थी जब अमेरिका ने चीन से आयात होने वाले उत्पादों पर बड़ा टैक्स लगा दिया था. इसके बाद चीन ने भी बदले की कार्यवाही की और दोनों शक्तिशाली देशों के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई है. इधर, चूंकि इस स्थिति में चीन निवेश के लिए तैयार था इसलिए बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ ही बड़ा बाज़ार बन चुके भारत से अच्छा विकल्प ‘दुनिया की फैक्ट्री’ कहे जाने वाले चीन के पास है ही नहीं.
दूसरी तरफ, भारत की एफडीआई नीति के तहत भारत खुद विदेशी निवेश के लिए रास्ते खोल चुका था. पिछले कुछ सालों में इस कारण भी चीन का निवेश लगातार बढ़ा है. लेकिन, इस तरह के रिश्ते के बावजूद तनाव या संकट के हालात क्यों दिखते हैं?
भारत क्यों सतर्क रहना चाहता है?
भारत अपनी विदेश नीति के चलते अमेरिका सहित दुनिया की शक्तियों के साथ रिश्ते खराब नहीं कर सकता इसलिए वह चीन के अंतरराष्ट्रीय रिश्तों के मद्देनज़र सतर्क रहता है. दूसरी ओर, आतंकवाद जैसे कुछ अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक मुद्दों सहित सीमाओं को लेकर भारत और चीन के बीच तनाव के हालात रहते हैं इसलिए भी चीनी निवेश के प्रति भारत को संवेदनशील बने रहना होता है.
श्रीलंका के लोग एक चीनी जहाज़ को देखते हुए. फाइल फोटो.
एक और पहलू ये है कि भारत सहित पूरे दक्षिण एशिया में चीनी कारोबार तेज़ी से बढ़ रहा है. दक्षिण एशिया के कई प्रोजेक्ट्स में चीनी निवेश ज़ोरों पर है और भारत की अर्थव्यवस्था व कारोबार के लिए यह एक बड़ी प्रतिस्पर्धा भी पैदा कर रहा है. इन्हीं तमाम कारणों के चलते भारत के विदेश सचिव रहे विजय गोखले चीनी के ‘बढ़ते कदमों’ के प्रति सतर्क रहने की चिंता ज़ाहिर कर चुके हैं. बकौल गोखले – ‘मेरी अपनी समझ कहती है कि भविष्य में चीज़ें क्या शक्ल इख़्तियार करने वाली हैं? हम अब भी इस बात को समझने की शुरूआत के स्तर पर हैं.’