प्रकृति ने खूबसूरत दुनिया बनाई है। प्रकृति की सभी रचनाओं में अनोखा तालमेल और महत्व है। संसार में अनेक जीव-जंतु, अनेक प्राणी, पेड़-पौधे हैं। सभी मिलकर प्रकृति को उपयोगी और खूबसूरत बनाते हैं। प्रकृति की अनमोल धरोहरों ने मानव जीवन को भी समृद्ध किया है। इसे संजोये रखने की नितांत आवश्यकता है, ताकि प्रकृति को नष्ट किए बगैर हम सहज रूप से उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का सही प्रयोग कर सतत् विकास की दिशा की ओर बढ़ें।
इसके लिए जहां जल, जंगल, जमीन, पेड़-पौधे के संरक्षण की आवश्यकता है। वहीं गौ पालन जो भारतीय संस्कृति एवं आर्थिक जीवन का प्रमुख आधार रहा है, को संरक्षित और संवर्धन की भी आवश्यकता है। प्राचीन ग्रंथों, देवकाल और मानव सभ्यता के विकास में पशु पालन का विशेष महत्व देखने को मिलता है। गाय पालन समृद्धि का सूत्र है। आज की पीढ़ी गौ के महत्व को भूलती जा रही है। गौ पालन को पेचीदा और झंझट से भरा काम समझकर लोग इससे दूर होते जा रहीे हैं। दूध, दही, छाछ और दूध से बने मिष्ठान एवं अन्य व्यंजन की चाह तो सब रखते है, किन्तु गौ पालन कोई नहीं करना चाहता।
ऐसी परिस्थितियों में एक बार फिर से गौ पालन को बढ़ावा देने, इसके संरक्षण व संवर्धन की आवश्यकता महसूस होने लगी है। छत्तीसगढ़ शासन ने गौ पालन के महत्व को बखूबी समझते हुए इस दिशा में योजना बनाकर काम करना शुरू कर दिया है। नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी योजना के माध्यम से गौठान निर्माण कर गौ संवर्धन की दिशा में काम शुरू किया गया है। गौ पालन होने से जहां लोगों को शुद्ध दूध उपलब्ध होगा, वहीं जैविक खाद के माध्यम से विषाक्त रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जा रहे फसलों पर रोक लगेगी। गौठान में पशुओं के सही देखभाल किए जाने, चारा-पानी मिलने से दूध उत्पादन क्षमता बढ़ेगी, यहां देशी नस्ल के संवर्धन का कार्य भी होगा। पशुओं के गोबर से बने कम्पोस्ट खाद से जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा और गोबर गैस लोगों को साफ सुथरा पर्यावरण हितेषी ईधन भी उपलब्ध कराएगी।
नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी योजना से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का अवसर मुहैया होगा। भारत की आत्मा गांवों में बसती है। गांवों की मूलभूत अधोसंरचना को विकसित कर देश व प्रदेश को समृद्ध बनाया जा सकता है। छत्तीसगढ़ की मूल पहचान यहां की सामाजिक समरसता, सरलता, आदिवासी संस्कृति, परम्परागत पशु आधारित कृषि से है। राज्य का समूचा ताना-बाना कृषि पर निर्भर करता है। राज्य में पर्याप्त मात्रा में बारिश होती है और यहां वर्षा आधारित छोटे-छोटे नदी नाले हैं। इन छोटे-छोटे नालों का बेहतर उपयोग जल संरक्षण और संवर्धन में किया जा सकता है, इनकी ओर ध्यान देना, न केवल प्रकृति की ओर ध्यान देना है बल्कि अपने पशुओं, कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देना है।
बाड़ियों के माध्यम से साग-सब्जी की खेती को प्रोत्साहन मिलेगा। इससे एक फसलीय खेती से निजात तो मिलेगा ही किसानों की आर्थिक आमदनी में बढ़ोत्तरी होने तथा जैविक खाद से पोषक सब्जी एवं फलों का उत्पादन होने से स्वास्थ्य एवं जीवन स्तर में भी सुधार होगा।
पुरखों द्वारा वर्षो से अजमायी गई इस विरासत को राज्य की मूल धरोहरांे में फिर से शामिल करते हुए नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी को बचाने एवं बढ़ाने का अभिनव प्रयास दूरगामी साबित हो सकता है। छोटे-छोटे नालों एवं नदियों को बंधान कर न भूमि की नीचे के जल स्तर को बढ़ाना आज न केवल हमारी आवश्यकता है बल्कि मानव जीवन को बचाने की दृष्टि से विवशता भी बन चुकी है। आधुनिकता और विकास की दौड़ में मानव ने खुद के साथ खिलवाड़ कर अपने आप को असुरक्षित कर दिया है।
छत्तीसगढ़ राज्य फिर से अपनी सरलता, सहजता और कृषि आधारित पहचान बनाने तत्पर दिखायी देता है। महात्मा गांधी के 150 जयंती अवसर पर यह राज्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देकर बेहतर रोल मॉडल बनने की ओर अग्रसर है।