शुक्रवार को शिरडी में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टिक टॉक के लिए वीडियो बनाने की सनक ने एक मासूम को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इस घटना के बाद एक बार फिर बच्चों के लिए मोबाइल और उसके जरिए इस्तेमाल किए जा रहे जानलेवा गेम को लेकर नई बहस छिड़ गई है।
आजकल बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन होना आम बात हो गई है, जो कि उनके लिए फायदेमंद होने से कई ज्यादा नुकसानदायक अधिक साबित हो रहा है। स्मार्टफोन बच्चों के शारीरिक विकास पर तो असर करता ही है, साथ ही उन्हें मानसिक रूप से भी बीमार कर देता है।
बच्चों के लिए जानलेवा बनते मोबाइल फोन पर मनोविज्ञानी डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि बच्चों के हाथ में मोबाइल देना ठीक उसी प्रकार है जैसे किसी को शराब का गिलास पकड़ाना। वे कहते हैं कि अक्सर देखा जाता है कि पैरेंटेस शुरुआत में अपने को फ्री रखने के लिए बच्चों को मोबाइल पकड़ाते हैं लेकिन एक समय बाद बच्चा इसका आदी हो जाता है और उसका मोबाइल उपयोग का समय धीरे-धीरे बढ़ता जाता है और वही बाद में मानसिक रोग में बदल जाता है।
अभिभावक रखें ध्यान : मनोविज्ञानी डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है कि इसमें सबसे बड़ी सावधानी बच्चों के अभिभावकों को रखना चाहिए कि बच्चे कम से कम स्मार्टफोन का उपयोग करें। साथ ही अभिभावकों को ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे के सामने आवश्यकता के अनुसार ही स्मार्टफोन का उपयोग करें। अभिभावकों को विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों को शैतानी करने से रोकने का एकमात्र विकल्प मोबाइल नहीं है।
घातक है स्मार्टफोन की सामाजिक स्वीकार्यता : डॉ. सत्यकांत का कहना है कि स्मार्टफोन की सामाजिक स्वीकार्यता आज घातक हो रही है। अक्सर देखा जाता है कि कम उम्र के बच्चे मोबाइल नहीं मिलने पर घर छोड़ने और अपने को नुकसान करने में भी पीछे नहीं रहते हैं। ऐसे ही कई मामले हाल के दिनों में भोपाल में सामने आए हैं।
मौत का कारण बन सकता है स्मार्टफोन : डॉ. सत्यकांत का कहना है कि किसी भी खबर या मोबाइल पर की जा रही गतिविधि के अनुसार हमारे दिमाग में रसायनों का बनना शुरू हो जाता है। जो कि हमारी हृदयगति, ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करते हैं, जिससे हृदयगति रुकने और हृदयाघात होने जैसी स्थिति बन जाती है।