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दलाई लामा ने क्यों कहा महिला उत्तराधिकारी संभव, पर वो आकर्षक हो




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आप मानिए या नहीं मानिए, लेकिन आपको शायद ही इस बात पर शक होगा कि दलाई लामा इस दुनिया में मौजूद सबसे चर्चित लोगों में से एक हैं.

एक ऐसे दौर में जब सेलेब्रिटी लोगों की पूजा अर्चना होने लगी है, उस दौर में दलाई लामा ऐसे धर्मगुरू हैं, जिन्हें आप अध्यात्मिक दुनिया का सुपरस्टार कह सकते हैं.

दलाई लामा 84 साल के होने वाले हैं, उन्होंने इस जीवन में लाखों लोगों का हाथ थाम कर और प्रेरक उदगारों के जरिए उनके जीवन को दिशा दी है.

मैं उनसे हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के पास स्थित मैकलॉडगंज में पहाड़ों से घिरे उनके निवास स्थान पर मिली.

कई उन्हें अलौकिक इंसान के तौर पर देखते हैं लेकिन वे खुद जमीन से जुड़े नजर आते हैं. अपने परंपरागत लाल रंग के परिधान में वे जब कमरे में अपने सहयोगियों के साथ दाखिल हुए तो वे एक सहज व्यक्तित्व लगे. अमरीकी कॉमिक दुनिया के फिक्शनल करैक्टर क्लार्क केंट के तौर पर नज़र आए, ना कि किसी सुपर ह्यूमन के तौर पर.

दलाई लामा वैसे शख्स हैं जो दुनिया भर के नेताओं से मिल चुके हैं. जो दुनिया भर के सितारों और पॉप स्टारों से मिले हैं. कभी चीन में उनका राजपाट भी था.

वे हंसते हुए बताते हैं, “एक चीनी अधिकारी ने एक बार मुझे राक्षस कहा था.”

ऐसा बताते हुए वे अपने सिर पर हाथों से सींग बनाने की कोशिश करते हैं फिर कहते हैं, “जब मैंने ये पहली बार सुना था, तब मेरी प्रतिक्रिया यही थी कि- हां मैं सींगों वाला राक्षस हूं.”

“मुझे उनकी समझ पर दया आती है, उनकी राजनीतिक सोच-समझ बेहद संकीर्ण है.”

स्वायत्त तिब्बत का सपना

चीन के ख़िलाफ़ उनके आक्रोश की एक लंबी कहानी है और इससे उनका पूरा जीवन प्रभावित हुआ है.

1959 में जब चीन ने अपनी सेना तिब्बत के इलाक़े में भेज दी तब दलाई लामा अपना घर छोड़कर भागने को मजबूर हुए थे.

उन्होंने भारत से शरण मांगी और बीते छह दशक से करीब 10 हज़ार तिब्बती लोगों के साथ धर्मशाला में रह रहे हैं.

दलाई लामा का मठ, हिमालय के बर्फीले धौलाधार पर्वतीय चोटी से घिरा बेहद खूबसूरत नज़र आता है, लेकिन इसके पीछे कटु यादें भी जुड़ी हैं.

उनके जीवन का उद्देश्य अपने घर लौटना है, लेकिन यह किसी दूर होते सपने जैसा ही है, क्योंकि अगर वे इसके लिए प्रयास भी करेंगे तो यह पूरा होता नहीं दिख रहा है. वे बताते हैं, “तिब्बती लोगों को मुझ पर भरोसा है, वे मुझे तिब्बत बुला रहे हैं.”

हालांकि अगली ही सांस में वे जोड़ते हैं कि भारत उनका आध्यात्मिक घर है. थोड़ी झिझक के साथ वे स्वीकार करते हैं कि स्वायत्त तिब्बत का उनका लक्ष्य वास्तविकता से दूर होता जा रहा है.

वैसे तो दलाई लामा ने आधिकारिक तौर पर अपनी राजनीतिक जिम्मेदारियों को 2011 में ही छोड़ दिया था, लेकिन अध्यात्मिक गुरू के तौर पर वे तिब्बती लोगों के प्रमुख बने हुए हैं.

ट्रंप से नाखुशी

उनके प्रतिनिधियों और चीन सरकार के बीच कई सालों से कोई बातचीत नहीं हुई है.

दलाई लामा ने ये भी बताया कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उन्हें अब तक किसी मुलाकात के लिए नहीं कहा है. हालांकि इस दौरान उनकी बातचीत कुछ सेवानिवृत्त चीनी अधिकारियों से ज़रूर हुई है, लेकिन उनलोगों ने बातचीत आगे बढ़ाई हो, ऐसा नहीं लगता है.

1950 में जब चीन ने तिब्बत में सेना भेजी थी तब तिब्बत बेहद गरीब था लेकिन आर्थिक तौर पर तिब्बत समृद्ध हुआ है. उसकी आर्थिक प्रगति ने एक तरह से दलाई लामा के उद्देश्यों को कहीं पीछे छोड़ दिया है.

एक समय था जब, दलाई दुनिया भर के देशों की राजधानी में बुलाए जाते थे. अमरीकी राष्ट्रपति तक उनसे मिलने के लिए कतार में खड़े होते थे. जार्ज डब्ल्यू बुश ने उन्हें अमरीकी कांग्रेस के गोल्ड मेडल से सम्मानित किया था जबकि बराक ओबामा भी उनसे कई बार मिल चुके हैं. ओबामा और दलाई लामा की एक मुलाकात तो 2017 में दिल्ली में हुई थी.

हालांकि मौजूदा अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के साथ दलाई लामा का रिश्ता बहुत मधुर नहीं है. वे अमरीकी राष्ट्रपति के साथ मुलाकात के लिए तैयार हैं लेकिन दलाई लामा के मुताबिक चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नजदीकी ट्रंप ने उन्हें अब तक मुलाकात के लिए नहीं बुलाया है.

आने वाले सालों में दलाई लामा की विदेश यात्राओं की संख्या कम होती जाएंगी, लेकिन इस अध्यात्मिक नेता का कहना है कि उन्हें अब तक ट्रंप की ओर से कोई कॉल भी नहीं आई है.

अपने तीखे आकलन के आधार पर दलाई लामा कहते हैं कि अमरीका के 45वें राष्ट्रपति के शासन काल के वक़्त को नैतिक सिद्धांतों की कमी के तौर पर परिभाषित करना चाहिए. हालांकि 2016 में दलाई लामा ने ही कहा था कि उन्हें ट्रंप के राष्ट्रपति बनने पर कोई चिंता नहीं हो रही है.

दलाई लामा ने कहा, “जब से वह अमरीका के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने अमरीका को प्रथामिकता देने की इच्छा जताई. यह ग़लत है.”

पेरिस जलवायु संधि और अप्रवासियों के संकट से अमरीका के पांव पीछे करने को दलाई लामा दो बहुत बड़े संकट के तौर पर देखते हैं.

दलाई लामा अमरीका मेक्सिको बॉर्डर की स्थिति के बारे में कहते हैं, “जब मैं बच्चों की तस्वीरें देखता हूं तो उदास होता हूं. अमरीका को दुनिया की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए.”

शरणार्थियों के ख़िलाफ़ दलाई लामा!

दलाई लामा अमरीका के दूसरे नेताओं और अमरीकी राष्ट्रपति के साथ अपने संबंधों को अलग रखना चाहते हैं. वे बताते हैं कि अमरीकी उपराष्ट्रपति ने तिब्बती लोगों के मदद की बात कही है और उन्हें अमरीकी कांग्रेस के दोनों सदनों के सदस्यों को समर्थन हासिल है.

हालांकि अमरीकी राष्ट्रपति की अनदेखी से पता चलता है कि ऐसा बीजिंग प्रशासन के दबाव में हो रहा है. चीन दलाई लामा के साथ संबंध रखने वालों पर दबाव तो डाल रहा है.

2012 में जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने दलाई लामा से मुलाकात की थी तो चीन ने अस्थायी तौर पर ब्रिटेन से अपने संबंध तोड़ लिए थे. बीते साल, भारत ने दलाई लामा के निर्वासन के 60 साल पूरे होने पर आयोजित कार्यक्रम को इसलिए रद्द कर दिया ताकि चीन नाराज़ नहीं हो.

वैसे दलाई लामा विश्व को स्वभाविक वैश्विक नज़रिए से देखते हैं. उन्होंने ब्रेक्सिट के मुद्दे पर कहा कि वे यूरोपीय संघ के प्रशंसक हैं क्योंकि बड़े संघर्षों को टालने के लिए वैश्विक साझेदारी एक अहम रास्ता है.

हालांकि दुनिया के सबसे मशहूर शरणार्थी दलाई लामा ने अप्रवासन के मुद्दे पर कुछ चौंकाने वाली बात कही.

मसलन, बीते साल उन्होंने एक संबोधन में कहा था कि यूरोपीय संघ में आने वाले शरणार्थियों को अपने अपने देश वापस लौट जाना चाहिए क्योंकि यूरोप, यूरोपीय लोगों के लिए है. जब मैंने उनसे इस बारे में पूछा तो वे अपने बयान पर कायम रहे.

उन्होंने कहा, “यूरोपीय देशों को इन शरणार्थियों को शरण देनी चाहिए और उन्हें शिक्षा और ट्रेनिंग देनी चाहिए ताकि वे सब कुछ दक्षता के साथ अपने अपने देश लौट सकें.”

महिला लामा पर जवाब

दलाई लामा का मानना है कि अंतिम उद्देश्य तो उन देशों को फिर से खड़ा करना है जहां से लोग निर्वासित हुए हैं. लेकिन ताजा आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में करीब 7 करोड़ लोग अपनी-अपनी जगहों से उखड़कर दूसरे देशों में जीवन यापन करने को मजबूर हैं और अगर वे उन्हीं देशों में रहना चाहें तो?

इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, “सीमित संख्या में तो ठीक है… लेकिन पूरा यूरोप मुस्लिम देश या फिर अफ्रीकी देश बन जाएगा, ये असंभव है.” यह ऐसा नज़रिया जो विवाद को जन्म दे सकता है.

यहां यह भी ध्यान देना चाहिए कि दलाई लामा अध्यात्मिक गुरू होने के साथ-साथ राजनीतिज्ञ भी हैं और दूसरे नेताओं की तरह ही उनका अपना नज़रिया हो सकता है.

2015 में दलाई लामा ने एक और विवादास्पद बयान दिया था, उस बयान में उन्होंने कहा था कि अगर मेरे बाद कोई महिला दलाई लामा बनती है तो उस महिला को आकर्षक होना चाहिए.

दलाई लामा ने इस बयान पर खुद को कायम बताया और कहा कि जितना दिमाग का महत्व है उतना ही महत्व खूबसूरती का है. उन्होंने हंसते हुए कहा, “अगर महिला दलाई लामा बनती है तो उसे कहीं ज्यादा आकर्षक होना चाहिए.”

उन्होंने ऐसा क्यों कहा, इस पर दलाई लामा ने कहा, “वो इसलिए क्योंकि अगर कोई महिला लामा आती हैं और वो ख़ुश दिखती हैं तो लोग भी उन्हें देखकर ख़ुश होंगे. और अगर कोई महिला लामा दुखी दिखती हैं तो लोग उन्हें देखना पसंद नहीं करेंगे.”

तो क्या उन्हें नहीं लगता कि इस पर कई महिलाओं को लग सकता है कि दलाई लामा उनका अपमान कर रहे हैं, दलाई लामा ने कहा, “असली ख़ूबसूरती मन की ख़ूबसूरती है, ये सच है, लेकिन मैं समझता हूँ कि आकर्षक दिखना भी ज़रूरी है.”

उनका यह बयान, उनकी शख्सियत के उलट दिखाई देता है क्योंकि वे सहिष्णुता और आत्मिक बल की बात करते आए हैं. दलाई लामा ने यह जरूर कहा कि बौद्‌ध साहित्य में आंतरिक और बाहरी दोनों सुंदरता की बात शामिल है. उन्होंने ये भी कहा कि उनकी नज़र में पुरुष और महिला, दोनों में समानता होनी चाहिए और वे महिला अधिकारों का समर्थन करते आए हैं और चाहते हैं कि कामकाजी महिलाओं को पुरुषों जितना ही वेतन मिले.

इस इंटरव्यू में दलाई लामा ने हर मुद्दे पर बेबाकी से अपनी बात रखी. तिब्बत नहीं लौटने के चलते हुए एक फायदा पूछने पर उन्होंने कहा कि भारत एक स्वतंत्र देश है और वे अपनी राय खुले तौर पर जाहिर कर पाते हैं.

दलाई लामा का संदेश दुनिया भर में एकता स्थापित करने का है लेकिन जो धर्मगुरु अपनी प्रतिबद्धता के लिए इतना मशहूर हो वह विवादास्पद भी हो सकता है.