इंडियन न्यूज़ पेपर सोसाइटी (आईएनएस) ने सरकार से अनुरोध किया है कि न्यूज़ प्रिंट पर लग रही 10 फीसदी कस्टम ड्यूटी को ख़त्म कर दिया जाये. आईएनएस का कहना है कि अख़बार पहले ही विज्ञापनों के कारण संकट से गुजर रहे हैं. संस्था का यह बयान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा अपने पहले बजट में कस्टम ड्यूटी बढ़ाने के बाद सामने आया है. आईएनएस का कहना है कि उद्योग को जिन बाधाओं का सामना करना पड़ता है, उसे बताने की आवश्यकता नहीं है.
अखबारों और पत्रिकाओं के प्रकाशक पहले से ही कम राजस्व, उच्च लागत और डिजिटल के बढ़ने के कारण गंभीर वित्तीय दबाव में हैं. कई छोटे और मध्यम समाचार पत्र बंद होने की कगार पर हैं. भारत में अखबारी कागज की कुल खपत 2.5 मिलियन टन प्रति वर्ष आंकी गई है और घरेलू उद्योग की क्षमता केवल 1 मिलियन टन है. बिना घरेलू और हल्के वजन के लेपित कागज के कोई घरेलू निर्माता नहीं हैं.
फिक्की-ईवाई मीडिया और मनोरंजन उद्योग की रिपोर्ट 2019 के अनुसार, प्रिंट सेगमेंट 2018 में स्थिर रहा, जो केवल 0.7% से बढ़कर 30,550 करोड़ तक पहुंच गया. दूसरी ओर डिजिटल समाचार उपभोक्ताओं में 26% की वृद्धि देखी गई. 2017 में जब 222 मिलियन लोगों ने ऑनलाइन खबरों का रुख किया. 2017 में पेजव्यू 59% बढ़ गए और औसत समय 2018 में प्रति दिन लगभग 100% से 8 मिनट तक बढ़ गया.
रिपोर्ट के अनुसार अखबारों के विज्ञापन में 1% की कमी हुई जबकि पत्रिका के विज्ञापन में 10% की गिरावट आई, क्योंकि विज्ञापन की मात्रा कम हुई है. भारत में प्रिंट सर्कुलेशन राजस्व 2018 में 1.2% की वृद्धि के साथ 8,830 करोड़ तक पहुंच गया और प्रिंट सेगमेंट के कुल राजस्व का 29% के रूप में सर्कुलेशन राजस्व का योगदान दिया. ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन के 2017 के आंकड़ों के अनुसार जनवरी से जून 2018 के बीच अखबारों का प्रचलन लगभग 2% बढ़ा.