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छत्तीसगढ़ /शहर में पानी के रोज 80 सैंपल जांचकर देखेंगे – क्लोरीन कहीं ज्यादा तो नहीं?




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राजधानी के अलग-अलग वार्डों में पीने के पानी में हर दिन क्लोरीन टेस्ट होगा। हर जोन को एक दिन में न्यूनतम 80 सेंपल लेने होंगे। फिल्टर प्लांट से आ रहे पानी में क्लोरीन की सही मात्रा का पता लगाया जाएगा। बारिश के दिनों में नदी का पानी ज्यादा गंदा रहता है। इसलिए क्लोरिन की मात्रा बढ़ानी पड़ती है। इसकी ज्यादा मात्रा सेहत के लिए नुकसानदायक है और कम होने से पानी की गंदगी ठीक ढंग से साफ नहीं हो पाती। 


मानसून शुरू हो गया है। प्रदेशभर में तेज बारिश हो रही है। रायपुर निगम को गंगरेल बांध से पानी मिलता है। गंगरेल मुख्य नगर से पानी रायपुर पहुंचता है। माना के पास अंडरग्राउंड पाइपलाइन से पानी आता है। यह पाइप कुशाभाऊ ठाकरे विवि के पास घुघवा घाट तक पहुंचता है।

पाइपलाइन से पानी यहां खारुन नदी (घुघवा घाट) पहुंचता है। इस घाट से भाठागांव एनीकट की दूरी लगभग एक किलोमीटर है। इसी हिस्से में शहर से आने वाला पानी अलग-अलग नालों के जरिए खारुन नदी में गिरता है। बारिश के दिनों में नाले-नालियों में पानी के साथ बहकर कई तरह के केमिकल भी आते हैं। इसलिए पानी ज्यादा गंदा रहता है। निगम के विशेषज्ञों के मुताबिक इसीलिए इस समय पानी को शुद्ध करने में ज्यादा ध्यान देना पड़ता है। क्लोरिन की मात्रा भी इसीलिए बढ़ानी पड़ती है। फिल्टर प्लांट में पानी फिल्टर होने के बाद टेस्ट किया जाता है और उसके बाद टंकियों में सप्लाई की जाती है। फिर भी पानी टंकियों से घरों में पहुंचने वाले पानी के क्लोरिन टेस्ट का नियम है। 

एक दिन में न्यूनतम 10 सेंपल : निगम अफसरों के मुताबिक पानी में क्लोरीन टेस्ट का नियम है। हर जोन से एक दिन में न्यूनतम 10 सेंपल लिया जाना है। यह सेंपल जोन के अलग-अलग वार्डों से लिया जाना है। इस तरह निगम को हर दिन कम से कम 80 सैंपलों में पानी का क्लोरिन टेस्ट करना होता है। पूरे बारिश में निगम अमले को यह काम नियमित रूप से करना है। 

नुकसान है ज्यादा क्लोरीन : पानी में क्लोरीन की मात्रा ज्यादा होना कई तरह की घातक बीमारियां ला सकती है। इससे कैंसर व अन्य बीमारियों का खतरा रहता है। इसलिए पीने के पानी में क्लोरिन की मात्रा तय से अधिक नहीं होना चाहिए। जानकारों के अनुसार क्लोरिन की मात्रा 200 से एक हजार होनी चाहिए। इससे कम होना पानी की शुद्धता पर सवाल उठाता है। पानी में क्लोरीन कम होना यानी उसकी शुद्धता में कमी होना है। इससे पेट और अन्य जलजनित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। 

बारिश के सीजन में गंदगी बढ़ जाती है। इसलिए क्लोरीन बढ़ाना पड़ता है। हालांकि सप्लाई से पहले इसका टेस्ट होता है। फिर भी लोगों के घरों में पहुंचने वाले पानी का सेंपल लेकर क्लोरीन टेस्ट जरूरी है। अफसरों को निर्देश दिया गया है कि शहर के अलग-अलग इलाकों से पानी का सेंपल लेकर उसमें क्लोरीन टेस्ट किया जाए।