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प्रियंका में ‘नैचुरल लीडर’, कांग्रेस की जिम्मेदारी संभालने के लिए फरफेक्ट : शशि थरूर




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राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस पार्टी को लंबे समय से अपने अध्यक्ष की तलाश है. कांग्रेस वर्किंग कमिटी अभी तक इस पद के लिए कोई नाम तय नहीं कर पाई है. ऐसे में पार्टी के सीनियर नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने कांग्रेस के लिए नए अध्यक्ष का नाम सुझाया है. थरूर के मुताबिक, प्रियंका गांधी इस पद के लिए फरफेक्ट हैं. वो नैचुरल करिश्माई नेता हैं. थरूर ने ये भी कहा कि राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद नेतृत्व को लेकर ‘स्पष्टता की कमी’ पार्टी को नुकसान पहुंचा रही है. ऐसे में नए अध्यक्ष को लेकर और ज्यादा देरी नहीं करनी चाहिए.

शशि थरूर ने रविवार को एक चैनल के साथ इंटरव्यू में ये बातें कही. उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के उस सुझाव पर सहमति जताई कि पार्टी का अध्यक्ष युवा नेता होना चाहिए. थरूर ने कहा, ‘प्रियंका पार्टी अध्यक्ष पद के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं. वो कांग्रेस की सर्वोत्तम अध्यक्ष हो सकती हैं. उनमें नैचुरल करिश्मा है, जिससे पार्टी कार्यकर्ता और वोटर प्रेरित होंगे.’

थरूर ने उम्मीद जताई कि जब पार्टी अध्यक्ष के चुनाव होंगे, तो वह अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल होंगी. साथ ही थरूर ने कहा कि यह गांधी परिवार पर निर्भर है कि प्रियंका अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगी या नहीं.

शशि थरूर ने पार्टी की मौजूदा स्थिति के प्रति निराशा जाहिर की है. उन्होंने माना कि कांग्रेस जिस संकट से गुजर रही है, उसका कोई समाधान नहीं मिल रहा है. कांग्रेस सांसद ने कहा, ‘यह बिल्कुल सही है कि पार्टी के शीर्ष स्तर पर स्पष्टता के अभाव से कार्यकर्ताओं और समर्थकों को कष्ट हो रहा होगा. इनमें कई लोगों को पार्टी अध्यक्ष का अभाव खटक रहा होगा, जिससे महत्वपूर्ण फैसलों, आदेशों के साथ-साथ प्रेरणा एवं ऊर्जा के लिहाज से उम्मीद लगाई जा सके और इसके पीछे एकजुट होकर कदम बढ़ाए जा सकें.’

पार्टी अध्यक्ष पद के लिए खड़े होने के सवाल पर थरूर ने कहा, ‘मैं ईमानदारी से कहूं कि मुझे नहीं लगता कि इस मुद्दे पर अटकलें लगाने की दूर-दूर तक भी कोई संभावना है.’ बता दें कि राहुल गांधी ने 25 मई को कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. हालांकि पार्टी कार्यसमिति ने अभी तक उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया.

कब से खाली है कांग्रेस अध्यक्ष पद?
लोकसभा चुनाव 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रचंड लहर में कांग्रेस सहित विपक्ष का पूरी तरह से सफाया हो गया. बीजेपी 303 सीटों के साथ सत्ता में एक बार फिर वापसी की है, जबकि राहुल गांधी के नेतृत्व में उतरी कांग्रेस को जबरदस्त हार का मुंह देखना पड़ा. कांग्रेस 52 सीटों पर सिमट गई. लोकसभा चुनाव की करारी हार को स्वीकार करते हुए राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश की थी. उसके बाद से अध्यक्ष पद खाली है.

कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, नए अध्यक्ष की रेस में सुशील कुमार शिंदे, मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, अशोक गहलोत और सचिन पायलट का नाम भी विचार किया जा रहा है. सूत्रों की मानें तो संगठन के साथ काम करने के अनुभव के आधार पर पार्टी ने अशोक गहलोत के नाम पर मोहर लगाने का मन बना लिया है. लेकिन इसपर कोई औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है.

लोकसभा चुनाव में राहुल ने जी-जान से की थी मेहनत
बता दें कि कांग्रेस की खोई सियासी जमीन को तलाशने के लिए राहुल गांधी ने एड़ी चोटी का जोर लगाया. लोकसभा चुनाव में 2 माह 8 दिन के चुनाव प्रचार में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने 148 रैलियां की थीं. इस दौरान उन्होंने करीब 1.25 किमी की यात्राएं कीं, लेकिन देश भर में कांग्रेस को 52 सीटें आईं.

राहुल गांधी ने सबसे अधिक 21 रैली उत्तर प्रदेश में की है और पार्टी महज एक सीट जीत सकी है. मध्य प्रदेश में 18 रैली की एक सीट आई, राजस्थान में 13 रैली कोई सीट नहीं मिली. केरल में 12 रैली की 15 सीटें मिलीं. बिहार में 8 रैली की और एक सीट मिली. झारखंड में 4 रैलियां किया और एक सीट ही जीत सके.

सूत्रों के मुताबिक, राहुल अगले एक से डेढ़ साल तक कांग्रेस अध्यक्ष पद से दूर रहेंगे, बताया जा रहा है कि कांग्रेस के बड़े नेताओं ने ही ये बीच का रास्ता राहुल गांधी के लिए निकाला है. इस दौरान राहुल गांधी बिना किसी पद के देशभर में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद करेंगे.

इस दौरान क्या करेंगे राहुल गांधी?
राहुल की जिद के आगे झुके कांग्रेस नेताओं ने यह बीच का रास्ता निकाला है, जिसमें राहुल गांधी की बात भी रह जाए और कांग्रेस का अध्यक्ष पद भी खाली न रहे. राहुल बिना किसी जवाबदेही के देशभर में घूमकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं से मिलकर संवाद कर सकते हैं. वह बिना पद के मोदी सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ खुल कर आलोचना कर सकेंगे. पद नहीं रहने पर सत्ता पक्ष के निशाने पर कांग्रेस अध्यक्ष होंगे न कि राहुल गांधी. इस प्रयोग के साथ राहुल गांधी उन राज्यों को ज्यादा समय दे सकेंगे जहां कांग्रेस जमीनी स्तर पर अपना वर्चस्व खो चुकी है.