भारत के दूसरे सबसे अमीर शख्स अजीम प्रेमजी आज 30 जुलाई को विप्रो के चेयरमैन पद से रिटायर होने वाले हैं. इसके बाद कंपनी की कमान उनके बेटे रिशद को मिल जाएगी. जानिए उनका अमीर बनने का सीक्रेट.
भारत के दूसरे सबसे अमीर शख्स अजीम प्रेमजी आज 30 जुलाई को विप्रो के चेयरमैन पद से रिटायर होने वाले हैं. इसके बाद कंपनी की कमान उनके बेटे रिशद को मिल जाएगी. अजीम प्रेमजी का जन्म मुंबई के एक गुजराती मुस्लिम परिवार में 24 जुलाई 1945 को हुआ था. अमेरिकी बिजनेस पत्रिका फोर्ब्स के मुताबिक वर्ष 1999 से 2005 तक अजीम प्रेमजी भारत के सबसे धनी व्यक्ति रह चुके हैं. अजीम प्रेमजी के परिवार में पत्नी यास्मिन और दो बच्चे रिषाद और तारिक हैं. आइए आपको बताते हैं अजीम प्रेमजी की सक्सेस की कहानी और कुछ ऐसे सीक्रेट्स जो शायद किसी को नहीं पता होंगे.
>> विप्रो लिमिटेड के चेयरमैन प्रेमजी लग्जरी होटलों की जगह अगर कंपनी गेस्ट हाउस उपलब्ध हो तो उसी में ठहरना पसंद करते हैं.
विप्रो के चेयरमैन अजीम प्रेमजी से जुड़ी एक खास बात है कि वो हवाई जहाज की इकोनॉमी क्लास में सफर करना पसंद करते हैं.
>> प्रेमजी ने 52750 करोड़ के शेयर दान करने का फैसला किया है. वह अब तक 1.45 लाख करोड़ रुपये दान कर चुके हैं.
अजीम प्रेमजी आईटी कंपनी विप्रो लिमिटेड के चेयरमैन हैं. अजीम प्रेमजी (Azim Premji) ने विप्रो लिमिटेड की 34 फीसदी हिस्सेदारी यानी 52,750 करोड़ रुपये के शेयर परोपकार कार्य के लिए दान कर दिए हैं. इस दान के बाद अजीम प्रेमजी द्वारा परोपकार और धर्मार्थ गतिविधियों के लिए दान की गई रकम बढ़कर 1.45 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई है.वर्ष 1966 में प्रेमजी के सिर से पिता एम.एच. प्रेमजी का साया उठने के बाद उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी. महज 21 साल की उम्र में उन्होंने पारिवारिक कारोबार अपने हाथों में ले ली. प्रेमजी ने जब कारोबार संभाला उस समय उनकी कंपनी वेस्टर्न इंडिया वेजिटेबल प्रोडक्ट कंपनी हाइड्रोजनेटेड वेजिटेबल आयल बनाती थी.
प्रेमजी की अगुवाई में साबुन तेल बनानी वाली वेस्टर्न इंडिया वेजिटेबल ने विप्रो का रूप लिया और विभिन्न उत्पादों के साथ ही विप्रो ने आईटी क्षेत्र में अपना खास मुकाम बनाया.समाजिक कार्यों में सराहनीय योगदान के लिए साल 2005 में भारत सरकार के अजीम प्रेमजी को पद्म भूषण से सम्मानित किया.
प्रेमजी की संस्था ‘दि अजीम प्रेमजी फाउंडेशन’ गरीब बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने में योगदान देती है. प्रेमजी का मानना है कि गुणवत्ता, लागत और डिलीवरी में अंतरराष्ट्रीय मानकों की उत्कृष्टता के बारे में सोचना चाहिए और जब तक हम उन मानकों से ऊपर ना चले जाएं, विश्राम न करें.