निर्गुन्डी एक औषधीय गुणों वाली क्षुप है। हिन्दी में इसे संभालू/सम्मालू, शिवारी, निसिन्दा शेफाली, तथा संस्कृत में इसे सिन्दुवार के नाम से जाना जाता है। इसके क्षुप 10 फीट तक ऊंचे पाए जाते हैं। संस्कृत में इसे इन्द्राणी, नीलपुष्पा, श्वेत सुरसा, सुबाहा भी कहते हैं। राजस्थान में यह निनगंड नाम से जाना जाता है। इसकी पत्तियों के काढ़े का उपयोग जुकाम, सिरदर्द, आमवात विकारों तथा जोड़ों की सूजन में किया जाता है। यह बुद्धिप्रद, पचने में हल्का, केशों के लिए हितकर, नेत्र ज्योति बढ़ाने वाला तो होता ही है, साथ ही शूल, सूजन, आंव, वायु, पेट के कीड़े नष्ट करने, कोढ़, अरुचि व ज्वर आदि रोगाें की चिकित्सा में भी काम आता है। इसके पत्ते में रक्तशोधन का भी विशेष गुण होता है। आज हम निर्गुन्डी के 5 लाजबाव फायदों के बारे में जानेंगे। आइये जानते हैं इससे होने वाले फायदे।
निर्गुन्डी के फायदे
1.निर्गुन्डी पाचन तंत्र को मजबूत बनाने का काम करती है। यह पाचन क्रिया में सुधार लाने में मदद करती है। निर्गुन्डी के पत्तों के 10 मिलीलीटर को 2 पिसी हुई काली मिर्च और अजवाइन के साथ सुबह – शाम नियमित रूप से सेवन करने से पाचन क्रिया ठीक होती है।
2.निर्गुन्डी के तेल को बालों में लगाने से बालों का गिरना कम होता है। साथ ही यह बालों के विकास में भी सहायक होती है। निर्गुन्डी के तेल के नियमित उपयोग से रूसी सहित स्कैल्प के संक्रमण भी ठीक हो जाते हैं। निर्गुन्डी का तेल हेयर टॉनिक के रूप में काम करता है।
3.निर्गुन्डी के तेल को हल्का गुनगुना करके जोड़ों पर लगाने से गठिया के दर्द में जल्दी आराम मिलता है।
3.माइग्रेन के दर्द में निर्गुन्डी के पत्ते बहुत ही लाभकारी होते हैं। निर्गुन्डी के पत्तों को पीसकर पेस्ट बना लें, इस पेस्ट को सिर पर लगाने से माइग्रेन के दर्द में आराम मिलता है। निर्गुन्डी के पत्तों के रस को हल्का गर्म करके 2-2 बून्द कान में डालने से माइग्रेन का दर्द ख़त्म हो जाता है।
5.निर्गुन्डी में एंटी – बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं। निर्गुन्डी के तेल को लगाने से पुराने घाव जल्दी भर जाते हैं, तथा इसके पत्तों को पीसकर पेस्ट बनाकर चोट या सूजन पर लगाने से दर्द में आराम मिलता है।
6.निर्गुंडी बैक पेन स्लिप डिस्क की एकल औषधि है ढाई सौ ग्राम इसके पत्तों को डेढ़ किलो पानी के अंदर उबालें उस पानी मैं से सौ एम एल पानी के साथ हलवा तैयार करके सुबह खाली पेट एक बार खाएं ऐसा कम से कम 15 रोज करें इससे बैक पेन साइटिका का रोग हमेशा के लिए निर्मल हो जाता है।