रांची के कांके प्रखंड के बुकरू बस्ती में ढाई सौ साल पुराना एक ऐसा कुआं है, जो भयंकर सुखाड़ में भी पानी से लबालब रहता है. इस चमत्कारिक कुएं के निर्माण को देखकर बड़े-बड़े इंजीनियर भी चक्कर खा जाए. साढ़े तीन सौ फीट गहरे इस कुएं में नीचे उतरने के लिए सुरंगनुमा दो सीढ़ियां हैं. लेकिन ग्रामीण इसमें नीचे उतरने से कतराते हैं. ऐसा कहा जाता है कि जिसने भी कुएं में उतरकर पानी को जूठा करने की कोशिश की, उसे शारीरिक परेशानी झेलनी पड़ी. रानी कुएं का ऐसे हुआ निर्माण
रांची से 23 किलोमीटर दूर कांके प्रखंड का बुकरू बस्ती. यह बस्ती हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द के लिए फेमस है. इसके अलावा यहां मौजूद एक कुएं ने भी इस बस्ती को चर्चित बनाया है. इस कुएं का नाम रानी कुआं है. यह घने जंगल में स्थित है. दूर से देखने पर यह कुआं सामान्य सा दिखता है. लेकिन इसमें झांकने पर इसके निर्माण को देखकर हैरानी होती है. यह कुआं साढ़े तीन सौ फीट गहरा है.
कुआं बनाने वाले राज परिवार के सदस्य ओंकारहरि साहू ने बताया कि एक बार उनके परिवार के एक राजा की मौत हो गयी थी. जब उनका अंतिम संस्कार हो रहा था, तो वे अचानक उठ खड़े हुए. यह देखकर श्मशान घाट में मौजूद लोग भाग खड़े हुए. बाद में राजा अपनी पत्नी के पास पहुंचे और कहा कि एक काम शेष रह गया है. उसी राजा ने अपनी रानी की देखरेख में इस कुएं का निर्माण कराया. राजा ने तब कारीगरों को कहा था कि ऐसा कुआं बनाओ कि इसके पास से कभी कोई प्यासा न लौटे.
स्थानीय निवासी बताते हैं कि एक समय था जब इस कुएं के पानी से नहाने पर हर प्रकार के चर्म रोग खत्म हो जाते थे. लोग पूजा-पाठ में भी इसी कुएं के पानी का इस्तेमाल करते थे.लोग बताते हैं कि रानी कुएं के किस्से सुनकर रातु महाराज भी दल- बल के साथ इसे देखने पहुंचे थे. लेकिन अब यह कुआं बदहाल हो गया. घरों में पानी की आपूर्ति होने लगी, तो लोग इस कुएं को भूलते चले गये.
इस कुएं को लेकर एक किस्सा प्रचलित है कि एक बार दो लोगों ने इसमें नीचे उतरकर इसके पानी को जूठा किया, तो दोनों शख्स लकवाग्रस्त हो गया. तब से इसके पानी को जूठा करने की कोई हिम्मत नहीं करता है.