क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिर्फ वाह वाही लूटने के लिए कुछ भी बोल जाते हैं. क्या प्रधानमंत्री के कथनी और करनी में फर्क है?
इधर देश स्वतंत्रता दिवस की खुशियां मना रहा है प्रधानमंत्री लाल किले से पर्यावरण के सरंक्षण बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं और उधर छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य परसा कोल ब्लॉक के वन क्षेत्र में लगभग एक लाख पेड़ काटने का ऑर्डर दिया जा चुका है
हसदेव अरण्य का यह वन क्षेत्र सेंट्रल इंडिया के सबसे बड़े ओर सबसे पुराने फॉरेस्ट इलाके में से एक हैं, ये जंगल में रहने वाले गोंड आदिवासी समुदाय का घर है.12 जुलाई को दिए गए आदेश, जो कुछ दिन पहले ही विभाग की वेबसाइट पर अपलोड हुए हैं उसमे पता चला है कि परसा कोल ब्लॉक मे अडानी को ओपन कास्ट माइनिंग के लिए पर्यावरण विभाग से मंजूरी मिल गयी हैं सबसे बड़ी बात तो यह है कि केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय की पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन समिति की बैठक में भूपेश बघेल की सरकार ने कोई आपत्ति नहीं जताई है
ओपन कास्ट माइनिंग में क्षेत्र से मिट्टी और वनस्पतियों को हटाने के बाद कोयले के लिए खुदाई होती है. इसमे पर्यावरण को अकल्पनीय नुकसान पुहंचेगा क्योकि अडानी की कंपनी ओपनकास्ट माइनिंग के जरिये ही कोयला निकालेगी
मंत्रालय ने 2100 एकड़ के परसा ओपनकास्ट माईन का स्टेज वन का फारेस्ट क्लीयरेंस 15 जनवरी 2019 को दिया है, जो भूपेश बघेल सरकार की अनुमति का इंतजार कर रहा था अब यह अनुमति भी उसे मिल गयी है
अडानी की कंपनी कुछ दूसरी कंपनियों के साथ मिल कर इन कोयला खदानो में एमडीओ यानी माइन डेवलपर कम ऑपरेटर के तौर पर कोयला खनन का काम करने जा रही है जबकि यही कांग्रेस अभी तक एमडीओ के तौर पर कोयला खनन का विरोध करती आई थी बतौर पीसीसी चीफ रहते हुए भूपेश बघेल द्वारा पूर्व रमन सरकार की सूरजपुर व सरगुजा में हसदेव परसा केते कोल ब्लॉक के पर्यावरण मंजूरी का विरोध किया था। यह वही इलाका है, जिसे यूपीए सरकार के कार्यकाल में वन्यजीवों और श्रेष्ठतम पर्यावरणीय पारिस्थितकी के कारण ‘नो गो एरिया’ घोषित करते हुए यहां कोयला उत्खनन पर रोक लगा दिया गया था. लेकिन बाद में यह रोक हटा ली गई और अब एमडीओ के सहारे फिर से खनन का रास्ता साफ़ हो गया है.
जो भूपेश बघेल 1 साल पहले अपने ट्वीट में कह रहे है थे ‘अडानी को पिछले दरवाज़े से कोयला ख़दानें देने के लिए मोदी सरकार ने MDO का रास्ता निकाला है’ वही अब सत्ता पाकर अडानी का वेलकम कर रहे हैं
यह पूरा ब्लाक अब अडानी को आवंटित कर दिया गया है। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने यह काम स्थानीय लोगों की आपत्तियों को दरकिनार कर किया है।जन संगठनों का आरोप है कि इन खदानों में कोयला उत्खनन का सिलसिला शुरू होने से हसदेव अरण्य के लगभग पौने दो लाख हेक्टेयर में फैले घने जंगलों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा. यह कितना बड़ा जंगल है यह इससे समझा जा सकता है कि मुम्बई, दिल्ली और बेंगलुरु जैसे शहरों को मिलाकर भी इसके क्षेत्रफल की बराबरी नही की जा सकती ….इस विशालकाय जंगल मे पूंजीपतियों को पर्यावरण की कीमत पर संसाधनों की लूट की छूट देना यह बताता है कि दोनों दल की नीतियों में कोई खास फर्क नही है…
थोथी आदर्शवादी बाते लाल किले से करने कुछ नही होता प्रधानमंत्री जी, इस जंगल की रक्षा करना आपका पहला दायित्व होना चाहिए ..याद रखिए आप पेड़ लगा सकते है लेकिन जंगल नही……