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चंद्रयान-2 ऑर्बिटर हमेशा अंधेरे में रहने वाले चांद के हिस्सों का भी भेजेगा तस्वीर : ISRO




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चांद पर मौजूद विक्रम लैंडर से अबतक संपर्क नहीं हो पाया है पर भारत के चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर अपने मिशन में जुटा हुआ है। महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत के दूसरे मून मिशन का यह ऑर्बिटर चांद के हमेशा अंधेरे में रहने वाले यानी उन क्षेत्रों की तस्वीरें भेजेगा, जहां सूरज की रोशनी कभी नहीं पड़ती है। यह पूरी दुनिया के लिए नई जानकारी होगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि एक दशक पहले भेजे गए भारत के पहले चंद्रयान से इसका प्रदर्शन बेहतर हो रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व चेयरमैन एएस किरण कुमार ने कहा, हम चंद्रयान-1 से कहीं ज्यादा बेहतर परिणामों की उम्मीद कर रहे हैं क्योंकि हम माइक्रोवेव ड्यूल-फ्रिच्ेंसी सेंसर्स की मदद से चांद के हमेशा अंधेरे में डूबे रहने वाले इलाके की भी मैपिंग कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि ऑर्बिटर में बड़े स्पेक्ट्रल रेंज के काफी दमदार कैमरे लगे हैं।
क्या-क्या राज खुलेगा?
इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन ने बताया है कि ऑर्बिटर पहले ही चांद की कक्षा में स्थापित हो चुका है और वह चांद की विकास यात्रा, सतह की संरचना, खनिज और पानी की उपलब्धता आदि के बारे में हमारी समझ को और बेहतर बनाने में मदद करेगा। यह करीब 7 सालों तक ऑपरेशनल रहेगा और इस दौरान चांद के रहस्यों से पर्दा उठाने में मदद करेगा।
100 किमी दूर से चांद को निहार रहा अपना ऑर्बिटर
आपको बता दें कि 22 जुलाई को लॉन्च किए गए चंद्रयान-2 में लैंडर और रोवर को चांद पर उतरना था जबकि ऑर्बिटर के हिस्से में चांद की परिक्रमा कर जानकारी जुटाने की जिम्मेदारी थी। 7 सितंबर को लैंडर चांद की सतह को छूने से ठीक पहले करीब 2.1 किमी ऊपर इसरो के रेडार से गायब हो गया और अब तक उससे संपर्क स्थापित नहीं हो सका है। हालांकि ऑर्बिटर इस समय चांद की सतह से करीब 100 किमी के ऊपर से परिक्रमा कर रहा है। इसमें एक हाई-रेज़ॉलूशन कैमरा है जो चांद की सतह पर 0.3 मीटर तक की तस्वीर ले सकता है। किरण कुमार ने कहा कि ऑर्बिटर से चंद्रयान-1 की तुलना में शानदार परिणाम मिल रहे हैं।
लैंडर से लिंक की कोशिशें जारी
लैंडर ने चांद पर हार्ड लैंडिंग की थी और अब भी उससे कनेक्शन स्थापित करने की कोशिशें जारी हैं। आपको बता दें कि लैंडर को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए डिजाइन किया गया था। इसके भीतर बंद रोवर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी धरती के 14 दिन के बराबर है। इसे देखते हुए इसरो के पास एक सप्ताह से भी कम समय बचा है। हालांकि वैज्ञानिक अंतिम समय तक विक्रम से कनेक्ट होने की कोशिश करते रहेंगे।
समय के साथ बढ़ रहीं धड़कनें
इसरो के एक अधिकारी ने कहा, ‘आप कल्पना कर सकते हैं कि हर गुजरते घंटे के साथ काम मुश्किल होता जा रहा है। बैटरी में उपलब्ध ऊर्जा खत्म हो रही होगी और इसके ऊर्जा हासिल करने तथा परिचालन के लिए कुछ नहीं बचेगा।Ó उन्होंने कहा, ‘प्रत्येक गुजरते मिनट के साथ स्थिति केवल जटिल होती जा रही है। विक्रम से सपंर्क स्थापित होने की संभावना कम होती जा रही है।Ó
यह पूछे जाने पर कि क्या संपर्क स्थापित होने की थोड़ी-बहुत संभावना है, अधिकारी ने कहा कि यह काफी दूर की बात है। यहां स्थित इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग ऐंड कमांड नेटवर्क में एक टीम लैंडर से पुन: संपर्क स्थापित करने की लगातार कोशिश कर रही है। अधिकारी ने कहा कि सही दिशा में होने की स्थिति में यह सौर पैनलों के चलते अब भी ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है और बैटरियों को फिर चार्ज कर सकता है। इसकी संभावना, धीरे-धीरे कम होती जा रही है।
नासा का यान विक्रम के ऊपर से मंगलवार को गुजरेगा
उधर, नासा का ऑर्बिटर 17 सितंबर यानी मंगलवार को विक्रम की लैंडिंग साइट के ऊपर से गुजरने वाला है। नासा की नीति के मुताबिक उसके ऑर्बिटर का डेटा सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध होता है। नासा के प्रॉजेक्ट साइंटिस्ट नोआह पेत्रो ने कहा कि हमारा ऑर्बिटर विक्रम लैंडर की साइट के ऊपर से गुजरेगा तो उसकी तस्वीरें जारी करेगा ताकि इसरो को पूरी स्थिति का विश्लेषण करने में मदद मिल सके।