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यहां गिरी थी सती की जीभ , नवरात्र में आते है हर रोज 50 से 60 हजार भक्त




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हिमाचल प्रदेश की कालीधार पहाड़ी पर ज्वाला देवी मंदिर में देवी को ज्योता वाली मां भी बोला जाता है, क्योंकि मां के नौ रूप यहां अग्नि के रूप में हैं. बिना ऑयल व बाती के यह ज्योत सालों से जल रही है. इस बार प्रबंधन ने स्वच्छता के लिए यहां प्लास्टिक की थैली, थाली व ग्लास पर प्रतिबंध लगा दिया है. नवरात्र के आरंभिक दिनों में 50 से 60 हजार भक्त रोज आएंगे तो अंतिम दिनों में संख्या एक लाख के पार कर जाएगी.

  • बिना तेल, बिना बाती बरसों से प्रज्ज्वलित हैं ज्वाला जी

मंदिर के पुजारी संदीप शर्मा बताते हैं कि दर्शन के लिए भक्तों का पहुंचना प्रारम्भ हो गया है. यह 51 शक्तिपीठों में से एक है. इस बार नवरात्र में 8 से 10 लाख लोगों के आने का अनुमान है. नौ ज्वालाओं में प्रमुख ज्वाला जी चांदी के दीये के बीच स्थित हैं. उन्हें महाकाली बोला जाता है. अन्य आठ ज्वालाओं में मां अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका व अंजी देवी हैं. मान्यता है कि इसी स्थान पर मां सती की जिह्वा गिरी थी.

  • दिन में 5 बार होती है आरती

आरती के समय सुंदर नजारा होता है. दिन में 5 बार आरती होती है. प्रातः काल पांच बजे पहली आरती में मालपुआ, खोआ, मिस्री का प्रसाद चढ़ाया जाता है. एक घंटे बाद दूसरी आरती में पीले चावल व दही का भोग लगता है. तीसरी आरती दोपहर में होती है. इसमें चावल, छह दालों और मिठाई का भोग होता है. शाम को चौथी आरती में पूरी-चना व हल्वे का भोग. रात नौ बजे शयन आरती, सौंदर्यलहरी का गान व सोलह शृंगार होता है. इसके बाद मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं.

  • 180 वर्ष पहले फिर से बनवाया थामंदिर को

नवरात्र पर यहांविशेष मेला लगताहै, जो 8 अक्टूबर तक चलेगा. वर्तमान मंदिर का पूरा निर्माण महाराजा रणजीत सिंह व राजा संसारचंद ने 1835 में करवाया था. मुख्य मंदिर के पास गोरखनाथ का मंदिर भी है. पास ही गोरख डिब्बी है, जो एक कुंड है. कुुंड का पानी खौलता हुआ दिखता है, लेकिन छूने पर ठंडा होता है.