नवरात्र (Navratri) की समाप्ति के बाद रावण (Ravana) का पुतला जलाकर मनाए जाने वाले दशहरे का उल्लास चरम पर है. रावण का दहन इस बार मंगलवार को होगा, लेकिन मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के रतलाम जिले (Ratlam district) का एक गांव ऐसा है जहां 10 सिरों वाले इस पौराणिक पात्र की मूर्ति की नाक काट कर छह महीने पहले ही उसका प्रतीकात्मक अंत कर दिया जाता है. दरअसल, इस गांव में शारदीय नवरात्र के बजाए गर्मियों में पड़ने वाली चैत्र नवरात्र में रावण के अंत की परंपरा है. यह अनूठी रिवायत सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल भी है, क्योंकि इसे निभाने में मुस्लिम समुदाय के लोग भी बढ़-चढ़कर मदद करते हैं.
यहां होता है ये काम
इंदौर से करीब 190 किलोमीटर दूर चिकलाना गांव में इस परंपरा के पालन से जुड़े परिवार के राजेश बैरागी ने रविवार को ने कहा, ‘चैत्र नवरात्र की यह परंपरा मेरे पुरखों के जमाने से निभाई जा रही है. इसके तहत गांव के एक प्रतिष्ठित परिवार का व्यक्ति भाले से रावण की मूर्ति की नाक पर वार कर इसे सांकेतिक रूप से काट देता है.’
उन्होंने कहा, ‘हिन्दी की प्रसिद्ध कहावत नाक कटना का मतलब है-बदनामी होना. लिहाजा रावण की नाक काटे जाने की परंपरा में यह अहम संदेश छिपा है कि बुराई के प्रतीक की सार्वजनिक रूप से निंदा के जरिए उसके अहंकार को नष्ट करने में हमें कभी पीछे नहीं हटना चाहिए.’
ऐसे मनाते हैं जश्न
बैरागी ने बताया कि परंपरा के तहत ढोल-नगाड़ों की थाप पर गांव के हनुमान मंदिर से चल समारोह निकाला जाता है. इसके साथ ही राम और रावण की सेनाओं के बीच वाकयुद्ध का रोचक स्वांग होता है. इस दौरान हनुमान की वेश-भूषा वाला व्यक्ति रावण की मूर्ति की नाभि पर गदा से तीन बार वार करते हुए सांकेतिक लंका दहन भी करता है.
उन्होंने बताया कि परंपरा के मुताबिक इस बार अप्रैल में चैत्र नवरात्र खत्म होने के अगले दिन रावण की मूर्ति की नाक काटकर उसका प्रतीकात्मक अंत कर दिया गया था. बैरागी ने बताया, ‘शारदीय नवरात्र के बाद पड़ने वाले दशहरे पर हमारे गांव में रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है.’ हिन्दू-मुस्लिम लेते हैं भाग
करीब 3,500 की आबादी वाला चिकलाना गांव हिंदू बहुल है, लेकिन यह बात इसे अन्य स्थानों से अलग करती है कि चैत्र नवरात्र के अगले दिन रावण की नाक काटने की परंपरा में गांव का मुस्लिम समुदाय भी पूरे उत्साह के साथ मददगार बनता है. चिकलाना के उप सरपंच हसन खान पठान बताते हैं, ‘इस परंपरा में सभी धर्मों के लोग शामिल होते हैं. इस दौरान मुस्लिम समुदाय भी आयोजकों की हर मुमकिन मदद करता है और पूरे गांव में त्योहार का माहौल होता है.’
पठान ने बताया, ‘हमारे गांव में पहले इस परंपरा के लिये हर साल रावण का मिट्टी का पुतला बनाया जाता था, लेकिन तीन वर्ष पहले हमने करीब 15 फुट ऊंची स्थायी मूर्ति बनवा दी है, जिसमें 10 सिरों वाला रावण सिंहासन पर बैठा नजर आता है.’
हालांकि गांव में जिस जगह रावण की यह मूर्ति स्थित है, उसे दशहरा मैदान घोषित कर दिया गया है