अभी तक हम किताबों से पढ़कर यह समझते आए हैं कि इंसान के शरीर में खून किस प्रकार अस्थि मज्जा या बोन मैरो में बनता है और किस तरह से हृदय के माध्यम से शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुंचता है। लेकिन अब नए जमाने की पीढ़ी को यह सब याद करने की जरुरत नहीं रह जाएगी। बच्चे अब यह प्रक्रिया थ्री-डी लैब में अपनी आंखों से देख सकेंगे। साथ ही, यह भी देख सकेंगे कि हार्ट अटैक के बाद हृदय की भूमिका में किस प्रकार बदलाव आता है और डॉक्टर उन्हें कैसे बचाते हैं। इसी प्रकार खगोलीय घटनाएं हो या महासागरीय परिवर्तन, बच्चे थ्री-डी तकनीकी से इन बदलावों को इस प्रकार महसूस कर पाएंगे, जैसे ये घटनाएं खुद उनके आसपास घट रही हों। विशेषज्ञों का कहना है कि यह तकनीकी अब पूरी दुनिया के साथ देश में एजुकेशन सिस्टम को बदल देगी।
20वीं सदी की तकनीक से पढ़ाई
थ्री-डी तकनीकी से इस विशेष लैब को तैयार करने वाली कंपनी ग्लोबस के एक अधिकारी अभिषेक सिंह ने अमर उजाला को बताया कि बच्चों की समस्या यह है कि वे स्वयं तो 21वीं सदी में पढ़ रहे हैं, लेकिन जिन चीजों के माध्यम से उन्हें शिक्षा दी जा रही है वे बीसवीं सदी में बनी थीं। उन्हें जिन चीजों के बारे में पढ़ाया जा रहा है, वे स्वयं उससे भी पहले की हैं। इस नई तकनीकी के जरिए बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा में परिवर्तन आने की संभावना है, क्योंकि इस तकनीकी से बच्चे चीजों को ज्यादा बेहतर ढंग से सीख पाएंगे। उन्हें पाठ्यक्रम को याद करने की आवश्यकता बहुत कम रह जाएगी। विशेष तकनीकी से बने थ्री-डी लैब के बीच बैठे बच्चे इन घटनाओं को एक प्रत्यक्षदर्शी की भांति महसूस कर पाएंगे, जिससे उन पर इसका बहुत अच्छा असर होगा।
अंग्रेजी सिखाएगी यह तकनीक
भारत जैसे देश में पहली कक्षा से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक अंग्रेजी सीखने की कोशिश जारी रहती है। लेकिन इसके बाद भी इस पर पूर्णता नहीं आती। सबसे ज्यादा समस्या अंग्रेजी शब्दों के सही उच्चारण को लेकर बनी रहती है क्योंकि अनेक शिक्षक स्वयं शब्दों के असली उच्चारण नहीं जान पाते। नई तकनीक बच्चों को एबीसीडी सिखाने से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक अंग्रेजी सिखाने में मदद करेगी। तकनीकी के माध्यम से बच्चे बिल्कुल शुद्ध उच्चारण करना सीख सकेंगे। तकनीकी के माध्यम से आप स्वयं का टेस्ट लेकर जान पाएंगे कि आपकी अंग्रेजी का क्या स्तर है। यह तकनीक शब्दों के उच्चारण के मूल्यांकन करने में भी सक्षम है।
स्मार्टफोन पर चलेगी क्लास
इस खास तकनीक के माध्यम से बनी विशेष कक्षाओं में टीचर किसी भी जगह पर क्लास ले सकेंगे, जबकि बच्चे कहीं भी बैठकर सीख सकेंगे। एक सामान्य स्मार्टफोन पर ही वे न सिर्फ टीचर की बताई बातें सुन सकेंगे, बल्कि वे सीधे लाइव जुड़कर टीचर से सवाल-जवाब भी कर सकेंगे। लैब की सुविधा के लिए किसी संस्था में जाकर उसका अनुभव लेना होगा क्योंकि इसके लिए विशेष लैब की आवश्यकता होती है।
स्मार्ट बोर्ड में बदल जाएगी वीडियो स्क्रीन
अभिषेक सिंह के मुताबिक यह भय बिल्कुल गलत है कि इस तकनीकी के आ जाने से अध्यापकों की भूमिका समाप्त हो जाएगी। बल्कि ये तकनीक बच्चों का प्रदर्शन सुधारने में मददगार होगी। अध्यापक इसके माध्यम से अपनी बात ज्यादा बेहतर ढंग से समझा पाएंगे। अगर अध्यापक विशेष तकनीक से बच्चों को पढ़ाने में असमर्थ रहेंगे, तो स्मार्ट क्लास की वीडियो स्क्रीन एक स्मार्ट बोर्ड में बदली जा सकेगी और वे उस पर सामान्य तरीके से लिखकर भी बच्चों को पढ़ा सकेंगे।