भारत में 14 साल से कम आयु के कम से कम 24 करोड़ 10 लाख बच्चों के पेट के कीड़े या कृमि (वर्म्स) होने की संभावना रहती है. रिसर्चर्स का बोलना है कि इसकी वजह हमारे यहां की मिट्टी व तापमान है जो कृमि या कीड़ों के पनपने में मददगार है. रोज़मर्रा की जिंदगी में सफाई के प्रति लापरवाही भी इस खतरे को व ज्यादा बढ़ा देती है.
इसे देखते हुए हिंदुस्तान सरकार ने साल 2015 में राष्ट्रीय कृमिमुक्ति अभियान चलाया था. इस अभियान के हिस्से के रूप में 8 से 19 साल के सभी बच्चों के पेट के कीड़े समाप्त करने की गोलियां स्कूल व आंगनवाड़ी केंद्रों में बांटी गई थी.
मशहूर विज्ञान पत्रिका लेन्सेट में प्रकाशित एक अध्ययन गर्म जलवायु वाले राष्ट्रों में कृमिनाशक अभियान की तरफ ध्यान खींचता है. अध्ययन के अनुसार एक मां की एजुकेशन व उसके परिवार की आर्थिक स्थिति से तय होता है कि उसके बच्चों की आंतों में कीड़ों का इन्फेक्शन होने पर उन्हें अच्छा से उपचार मिलेगा या नहीं.
यह जानना जरूरी है कि क्यों जोखिम वाले आयु वर्ग के हर बच्चे को पेट के कीड़े मारने की गोलियां देना महत्वपूर्ण है, फिर भले ही किसी बच्चे को इन्फेक्शन हो या न हो.
मिट्टी में पैदा होने वाले परजीवी (पैरासाइट्स)
आंत के कीड़े या मिट्टी में पैदा होने वाले पेट के कीड़े का इन्फेक्शन (एसटीएच) मनुष्य में होने वाले पैरासाइट इन्फेक्शन में सबसे सामान्य है. ये कीड़े गर्म इलाकों की गर्म व नम मिट्टी में पनपते हैं व प्रदूषित मिट्टी व भोजन के जरिए मनुष्य के शरीर में पहुंच जाते हैं.
वयस्क कीड़े आंत के भीतर पनपते हैं व नए कीड़ों को भी जन्म देते हैं. ये हर दिन कई हजार अंडे देते हैं. कुछ कीड़ों के लार्वा सक्रियता से स्कीन को भेदकर भी शरीर में प्रवेश करते हैं व फेफडों के जरिए आंतों तक पहुंच जाते हैं.
एक बार शरीर के भीतर पहुंचने पर वे शरीर के (टिश्यूज) उत्तकों को खाना प्रारम्भ कर देते हैं व आंतों की दीवारों को नुकसान पहुंचाते हैं. इनके कारण आंत में पोषक तत्वों का अच्छा से अवशोषण नहीं होता है, भूख कम हो जाती है व डायरिया की समस्या भी हो जाती है. इसका ही नतीजा होता है कि जिन बच्चों के पेट में कीड़ों का इन्फेक्शन होता है वे रक्त की कमी वाले एनिमिया रोग का शिकार हो जाते हैं. वे थकान व कमजोरी का भी अनुभव करते हैं.
लंबे समय में असर
कीड़ों के इन्फेक्शन का असर बढ़ते बच्चों के मानसिक व शारीरिक विकास पर भी होता है. कई बच्चे जिन्हें कीड़ों का इन्फेक्शन होता है वे कम वजन वाले (अंडरवेट) व छोटे कद के ही रह जाते हैं. इसके साथ ही इन बच्चों को अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों में ध्यान लगाने में भी परेशानी महसूस होती है. कुछ बच्चे नयी चीजों को याद रखने में कठिन का अनुभव करते हैं. इसका नतीजा होता है कि वे स्कूल जाने से बचने लगते हैं. लंबे समय में इसके कारण उनकी एजुकेशन का नुकसान होता है व इसलिए आगे चलकर उनके ज़िंदगी की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित होती है.
कृमि के इन्फेक्शन के लक्षण
कृमि का इन्फेक्शन (एसटीएच) होने के लक्षण इस बात से सीधे तौर पर जुड़े हैं कि पेट में कितने ज्यादा कृमि हैं. शरीर में जितने अधिक कृमि होंगे उतने ही गंभीर लक्षण नजर आएंगे. जब इन्फेक्शन कम होता है तो उसके लक्षण अच्छा से नजर भी नहीं आते हैं, गंभीर इन्फेक्शन में पेट में मरोड़ उठते हैं, डायरिया, कुपोषण, भूख की कमी व शारिरिक विकास का रुकना जैसी चीजें सामने आती हैं.
बचाव के लिए सुरक्षात्मक कदम
भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल ने इन उपायों को सूचीबद्ध किया है ताकि आंत के कीड़ों को शरीर में प्रवेश करने व पनपने से रोका जा सके-
1. स्वच्छता का ध्यान रखें
2. स्वच्छ टॉयलेट का उपयोग करें व खुले में शौच न करें
3. हर बार टॉयलेट का उपयोग करने के बाद हाथ धोएं
4. हमेशा जूते या स्लिपर्स पहनें
5. फल व सब्जियों को खाने से पहले धोएं
6. भोजन को ढक कर रखें
7. स्वच्छ पेयजल का उपयोग करें