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छत्तीसगढ़ – इंजीनियरिंग के दौरान बायो मेडिकल में रिसर्च किया, इसी दौरान तय किया कैंसर मरीजों की करनी है सेवा




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रायपुर . अगर सेवा करने की ठान ली, तब कोई डिग्री, कोर्स या करियर नहीं है जो इस इरादे को रोक ले। कैंसर मरीजों की सेवा में पिछले सात साल से दिन-रात लगीं सुदेशना रूहान की कहानी ऐसी ही है। इंजीनियरिंग का करियर मन में संजोए सुदेशना ने बीटेक किया फिर एमटेक में दाखिला लिया। एमटेक में किसी विषय पर डेढ़ साल रिसर्च करना होता है और उन्होंने बायो-मेडिकल को चुना। इसी दौरान वह ऐसे सीनियर के संपर्क में अाईं जो कैंसर पर रिसर्च कर रहे थे।

इसके बाद ही उन्होंने तय कर लिया कि कैंसर मरीजों की सेवा करेंगी और इसके लिए एमबीबीएस, एमडी-एमएस जैसी डिग्रियां जरूरी नहीं है। पिछले सात साल से सुदेशना यही कर रही हैं, वह भी बिना पैसों के। मरीजों का दर्द और फिर ठीक होने की खुशी… यह हर बार उनके इरादे को मजबूत कर रही है। ठीक हो चुके मरीजों की मुस्कुराहट से उनकी सोच को ताकत भी मिल रही है। कैंसर मरीजों के साथ 2012 से अब तक का उनका सफर, जानिए उन्हीं की जुबानी… 

मजबूत होता गया संकल्प : रिसर्च के दौरान मेरी मुलाकात रायगढ़ की 35 वर्षीय मरीज से हुई। उनके पति की 2 साल पहले पीलिया से मौत हुई थी। दो बच्चे थे। मरीज लास्ट स्टेज में थी। यानी दवा का मतलब नहीं था। महिला ने बताया कि मुझे कुछ हुअा तो बच्चों को मेरे भैया-भाभी रख लेंगे। कुछ माह बाद महिला की मौत हो गई। इसके बाद मेरा संकल्प और मजबूत हुअा। तब सोचा कि ऐसे लोगों की जिंदगी भले ही न बदल सको, हाथ पकड़कर तो साथ खड़े हो ही सकते हैं। सुदेशना के अनुसार- यहां कैंसर मरीजों के अपने संघर्ष हैं। रायपुर में ही इलाज की ज्यादातर सुविधाएं हैं। लेकिन सबका इलाज यहीं कैसे होगा। ज्यादातर मरीज गांवों से खेत या जेवर बेचकर यहां आते हैं। इन सबके बारे में सोचना होगा।
सबसे पहले उनके आने-जाने के इस कष्ट को कम करना होगा। कोने-कोने में अस्पताल खोलने होंगे। मरीजों की यात्राओं के लिए रिबेट की व्यवस्था होनी चाहिए। मरीज कभी अकेले नहीं होता। परिवार के साथ आता है। वह कहीं तो रहेंगे। एक मंगल भवन है? लेकिन इसकी क्षमता पांच सौ लोगों की है। यह काफी नहीं।

रिसर्च के दौरान जुड़ीं मरीजों से : सुदेशना के अनुसार-मैं या तो कुछ कलात्मक करना चाहती थी या फिर ऐसा कुछ जिसमें मानवसेवा की गुंजाइश है। एमटेक में शोध पर डेढ़ साल देना जरूरी है। इसी दौरान मुझे कैंसर पर शोध का मौका मिला, फिर कैंसर अस्पताल में काम करने लगी। वहां लगा कि मुझे लगा कि दवाएं काफी नहीं हैं, मानसिक सपोर्ट भी जरूरी है। अभी 2017 से फिर इसी शोध में लगी हूं।

एमबीबीएस में मानवता पढ़ाएं बच्चे नहीं बनेंगे व्यापारी : स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर प्रदेश में जागरूकता की कमी है। जब हमें यही पता नहीं होगा तो हम जिम्मेदारों से सवाल कैसे करेंगे कि जो सुविधाएं आप दे रहे हैं वे काफी नहीं। मरीजों के लिए आपके मन में करुणा और सम्मान होना चाहिए। मरीजों का सीधे सामना डॉक्टरों से होता है। तो एमबीबीएस की पढ़ाई में  मानवता को भी शामिल किया जाना चाहिए। क्योंकि अगर आप उन्हें करुणा नहीं सिखाएंगे तो कॉलेज से निकलकर वे चिकित्सा से व्यापारी ही बनेंगे।