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छत्तीसगढ़ : ट्रैक मैनों को दो साल से नहीं मिले ‘कवच कुंडल’, फटे-पुराने से चल रहा काम




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अरे क्या करें, साहब बोलें तो बुरा और न बोलें तो भी बुरा, रोजी-रोटी का सवाल है। दौड़ती ट्रेनों के बीच पटरियों के संजाल में आई खराबी तो दिन-रात शिप्टवार मरम्मत करते हैं। लेकिन हाथ में दस्ताने और पैरों में बूट पांच साल से नहीं मिले। किसी तरह पुराने ही बूट और दस्तानों से काम चला रहे हैं। अगर मिला भी तो इतना घटिया की एक ही महीने में बखिया उखड़ गई। काम करते-करते हाथ में चोट लग जाती है। पैर गिट्टियों पर फिसल जाते हैं। अब तो ताबड़तोड़ मेहनत के अलावा जान की परवाह नहीं करते। कुछ इसी तरह के दर्द ट्रैक मैनों के हैं, जिनकी नौकरी खतरे में न पड़ जाए, इस वजह से नाम तक नहीं छापने की बात कर अपना दुखड़ा सुनाया। हां, ये है की जब कोई साथी किसी हादसे का शिकार होता है तो वे अवाज उठाते हैं। लेकिन आश्वासन के बाद फिर वहीं पुराने ढर्रे पर अफसरों का रवैया लौट आता है।

तिल्दा में काम कर रहे सिग्नल ट्रैक मैनों के पास रेलवे से मिलने वाले सेफ्टी के संसाधन से ही रेल की पटरियों के मरम्मत कर रहे थे। बहरहाल, यहां के अलावा अन्य स्थान के भी ट्रैक मैनों की पीड़ा है कि बूट, दस्ताना, लाइट और रिफलेक्टर जर्सी तक नहीं मिली है। जबकि रात में रेल की पटरियों के मरम्मत के दौरान रिफलेक्टर कोट पहने की जरूरत होती है। इससे आने वाली ट्रेनों को ड्राइवर को कोट की चमक से ही पता चल जाता है कि पटरियों पर काम चल रहा है। वहीं इनके पास लाइट के नाम पर टार्च भी नहीं दिए गए हैं। इनका कहना है कि जितने सेफ्टी के सामान इतने पुराने हो गए हैं कि उनकी उपयोगिता ही नहीं रह गई।

सिस्टम के आगे हार गई ट्रैक मैनों की बेबसी

सिस्टम के आगे ट्रैक मैनों की बेबसी अब हार सी गई है। उनकी व्यथा है कि क्या करें जब भी मांग करते हैं तो सिर्फ आश्वासन ही मिलता है। सिर्फ कुछ लोगों को देकर सेफ्टी के सामान खत्म कर दिए जाते हैं।

रेल मंत्री से लेकर अधिकारियों तक से लगाई गुहार

रेल मंत्री से लेकर अधिकारियों तक से गुहार लगाई लेकिन इसके बाद भी सुरक्षा के सेफ्टी उपकरण नहीं मिल पाए। हर बार मंत्री और रेलवे के उच्चाधिकारी आते हैं। लेकिन आश्वासन के बावजूद कुछ नहीं हुआ।

लाखों के फंड होने के बावजूद नहीं मिले जरूरी संसाधन

ये बात समझ से परे है कि लाखों फंड के बावजूद भी ट्रैक मैनों के सुरक्षा के उपकरण नहीं दिए जा रहे हैं। जबकि इसके लिए हर साल मंडल के ट्रैक मैनों के सेफ्टी के समानों की खरीदी होती है। फिर भी ट्रैक मैनों को उपकरण नहीं दिए गए हैं।

हथबंध के हादसे में इंजीनियर की जान जाने के बाद भी नहीं चेते

दो माह पूर्व हथबंध के समीप एक सिग्नल के कर्मचारी और अधिकारी काम कर रहे थे। इसी दौरान दूसरे ट्रैक पर आ रही ट्रेन से सिग्नल के एक इंजीनियर की मौत हो गई थी। एक अन्य साथी गंभीर रूप से जख्मी हो गया था। इसके बाद रेलवे के अधिकारियों ने कर्मचारियों के बयान लिए गए, जिसमें उन्होंने बताया था कि सेफ्टी के सामान उनके पास नहीं है।