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यहां स्थित है माता सीता की रसोई, चूल्हे और चिमटे के साथ रखा है किचन का सामान




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त्रेता युग के भगवान श्रीराम अपने त्याग और बलिदान के लिए आज भी याद किए जाते हैं। पिता का मान रखने के लिए अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 साल का वनवास भोगना, पत्नी सीता और अन्य बंधियों को दैत्य रावण के चंगुल से आजाद करना, ऐसे महान कार्यों के चलते आज भी दुनिया श्रीराम को याद करती है और उनका पूजन करती है। अपने वनवास में भगवान राम जिन जंगलों में रुके थे उन्हीं में से एक है उत्तर प्रदेश के मंदाकिनी नदी के किनारे बसा चित्रकूट धाम। चित्रकूट के इसी धाम में आज भी सीता माता की वो रसोई है जहां वह खाना बनाकर महर्षि ऋषियों को खिलाया करती थीं।

चित्रकूट के इन जंगलों में आज भी त्रेता युग के निशान दिखते हैं जिन्हें प्राकृतिक रूप से संजोया गया है। इसे भारत के कुछ प्रमुख तीर्थ स्थलों में भी जोड़ा जाता है। चित्रकूट के इस धाम में बारहों महीने श्रद्धालुओं का आवा-गमन लगा रहता है।

यहीं मिले थे अपने भाई भरत से श्रीराम

लोगों में यह मान्यता है कि भगवान श्रीराम, देवी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण, चित्रकूट के घने जंगलों में वनवास के दौरान ठहरे थे। यहां सुंदर प्राकृतिक झरने, घने जंगल, चहकते पक्षी, बहती नदियां हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि कामद गिरि पर्वत की परिक्रमा करने से साड़ी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। यह एक भव्य धार्मिक स्थल हैं जहां पर भगवान राम रहा करते थे। इस स्थान पर भरत मिलाप मंदिर भी स्थित है, जहां पर भरत ने श्रीराम से कहा था कि वे अयोध्या वापस लौट चलें।

चित्रकूट में स्थित है भरत कूप और जानकी कुंड

प्रभु श्रीराम के भाई भरत ने इस स्थान पर पवित्र जल का कुंड बनाकर रखा था जहां परदेस के विभिन्न तीर्थस्थलों से पवित्र जल एकत्रित कर रखा जाता है। यह स्थान बहुत ही छोटा स्थल है जो कि इस नगर से कुछ दूरी पर स्थित है। यहां के रामघाट पर स्थित जानकी कुंड भी एक भव्य स्थान है। कहा जाता है कि सीताजी इस नदी में नहाया करती थीं। यहां की हरियाली भी दर्शनीय है। यह शांत और सुंदर स्थान वास्तव में कुदरत की अमूल्य देन है।

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हनुमान धारा की उंचाई में स्थित है सीता रसोई

चित्रकूट में ही जमीन से लगभग सौ फुट की उंचाई पर भगवान हनुमान का भव्य मंदिर मौजूद है। जिसे हनुमान धारा भी कहते हैं। हनुमान प्रतिमा के ठीक पीछे से साफ पानी की एक धारा लगातार बहती है जिस कारण से इसका नाम हनुमान धारा पड़ा है। वैज्ञानिक भी आज तक इस बात का पता नहीं लगा पाए हैं की आखिर ये पानी कहां से आता है। इसी मंदिर के ठीक पीछे माता सीता की रसोई मौजूद है। इस रसोई में मिट्टी के चूल्हे के साथ रसोई से जुड़ी कुछ पुरानी चीजें भी रखी हुई हैं। जिन्हें श्रद्धालु पूजते हैं। इस जगह पर वो स्थान भी है जहां मां सीता पंच ऋषियों को अपने हाथ से बना भोजन खिलाया करती थी।

मंदिर में होती है लूट

श्रधा के नाम पर इस मंदिर में लूट मचती है। अगर आप पहली बार इस मंदिर में जा रहे हों तो सावधान रहें, यहां आपको हर कदम पर रोककर आप से भगवान को पैसा चढ़ाने के लिए कहा जाएगा। सिर्फ एक या दो जगहों पर नहीं बल्कि हनुमान धारा के रास्ते में भी पड़ने वाले हर एक मंदिर पर आपको चढ़ावा चढ़ाने को कहा जायेगा।