व्यापार बढ़ाने और अधिक मुनाफा कमाने के लिए व्यापारियों के बीच अक्सर पार्टनरशिप होती है। नफा और नुकसान के लिए वे दोनों ही जिम्मेदार होते हैं, मगर यहां तो खुद भगवान को पार्टनर बनाया जाता है और व्यापार में फायदा होने पर निश्चित धन राशि भगवान तक पहुंचाई भी जाती है। इस बात का उदाहरण है राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के मण्डफिया स्थित कृष्ण मंदिर है, जो सांवलिया सेठ के नाम से प्रसिद्ध है।अमावस्या के मौके पर खुलता है सांवलिया सेठ का दानपात्र
चित्तौड़गढ़ में कई दशक पुराने सांवलिया जी मंदिर का जिक्र आज इसलिए कर रहे हैं कि हाल ही मंदिर का दानपात्र खोला गया। उसमें अब तक की रिकॉर्ड धनराशि मिली है। श्रृद्धालुओं ने सांवलिया सेठ मंदिर चित्तौड़गढ़ के दानदात्र में 6 करोड़ रुपए 37 लाख रुपए भेंट किए हैं। अमावस्या के मौके पर नवंबर के अंतिम सप्ताह में सांवलिया सेठ का दानपात्र खोला गया। मंदिर के 400 लोगों के स्टाफ ने मिलकर 27 नवंबर 2019 से 6.37 करोड़ रुपयों की गिनती शुरू की, जो 2 दिसंबर 2019 को पूरी हुई। खास बात यह है कि इस बार दानपात्र से नकदी ही मिली है। कई बार आभूषण भी मिलते हैं। इस बार मिले रुपए अब तक की सबसे ज्यादा राशि बताई जा रही है।
सीसीटीवी की निगरानी में गिनती
श्री सांवलिया मंदिर चित्तौड़गढ़ मंदिर हर माह अमावस्या के एक दिन पूर्व दानपात्र खोला जाता है। हर माह औसतन 3 से 3.5 करोड़ का चढ़ावा आता है। रुपयों की गिनती सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में होती है। दानपात्र से निकले रुपयों की गणना के नजारे को देखने के लिए श्रृद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
पिछली बार से ज्यादा राशि
बता दें कि सांवलिया सेठ मंदिर में दीपावली पर दानपात्र नहीं खुलता है। इसलिए दीपावली के बाद आने वाली अमास्या को खुलने वाले दानपात्र में चढ़ावा दो माह का होता है। गत वर्ष दीपावली के बाद आई वाली अमावस्या को खोले गए दो माह के दानपात्र में 5 करोड़ 55 लाख 70 हजार की राशि निकली थी। पिछली बार की तुलना में इस बार चढ़ावे में 15 प्रतिशत वृद्धि रिकॉर्ड दर्ज की गई है।
सांवलिया सेठ मंदिर चित्तौड़गढ़ का इतिहास
किवदंतियों के अनुसार सांवलिया सेठ मीरा बाई के वहीं गिरधर गोपाल हैं जिनकी वे पूजा किया करती थीं। मीरा बाई संत महात्माओं की जमात में इन मूर्तियों के साथ भ्रमणशील रहती थीं। ऐसी ही एक दयाराम नामक संत की जमात थी जिनके पास ये मूर्तियां थीं। जब औरंगजेब की मुग़ल सेना मंदिरों को तोड़ रही थी। मेवाड़ राज्य में पंहुचने पर मुग़ल सैनिकों को इन मूर्तियों के बारे में पता लगा। तब संत दयाराम ने प्रभु प्रेरणा से इन मूर्तियों को बागुंड-भादसौड़ा की छापर (खुला मैदान) में एक वट-वृक्ष के नीचे गड्ढा खोद कर पधरा दिया और फिर समय बीतने के साथ संत दयाराम जी का देवलोकगमन हो गया।
उदयपुर मेवाड़ राज-परिवार ने बनवाया मंदिर
कहा जाता है कि सन 1840 में गांव मंडफिया निवासी भोलाराम गुर्जर नाम के ग्वाले को एक सपना आया कि भादसोड़ा-बागूंड के छापर में 4 मूर्तियां ज़मीन में दबी हुई हैं, जब उस जगह पर खुदाई की गई तो भोलाराम का सपना सही निकला और वहां से एक जैसी 4 मूर्तियां प्रकट हुईं। फिर उदयपुर मेवाड़ राज-परिवार के भींडर ठिकाने की ओर से सांवलिया जी का मंदिर बनवाया गया।