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फांसी देते समय अगर टूट जाए फांसी का फंदा, इसके बाद जो होगा उसे जानकर होश उड़ जायेंगे…




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गले में रस्सी के कसने के कारण हुई मौत को फांसी कहा जाता है। प्राचीन काल में अपराधियोँ को दण्ड देने के लिये फांसी की सजा दी जाती थी और वर्तमान में भी जघन्य अपराधोँ के दण्ड हेतु यह प्रथा प्रचलन में है। अरब देशोँ में फांसी बहुत सामान्य सजा है। भारत में भी फांसी की सजा प्रचलन में है और देश की प्रमुख जेलोँ में इसके लिये फांसीघर बने हुये हैं। इन जेलोँ में फांसी देने वाले कर्मचारियोँ की नियुक्ति होती है जिन्हे जल्लाद कहा जाता है।
16 द‍िसंबर को न‍िर्भया रेप कांड की बरसी मनाई जा रही है. न‍िर्भया रेप के दोष‍ियों को कभी भी फांसी दी जा सकती है. दोषियों की दया याच‍िका पर अदालत को फैसला करना है है. इस पर फैसला होते ही चारों दोष‍ियों को फांसी हो सकती है. इसी संदर्भ में क्राइम तक की टीम ने फांसी देने वाले जल्लाद पवन से बात की और उनसे जाना क‍ि क्या फांसी का फंदा टूट जाने पर कैदी की फांसी की सजा माफ हो जाती है?
जब क्राइम तक की टीम ने पवन जल्लाद से पूछा क‍ि क्या फांसी का फंदा टूट जाने पर कैदी की फांसी माफ हो जाती है? तो जवाब में पवन बोले, ” एक बार जब फांसी का वक्त मुकर्रर हो गया और फांसी के तख्ते तक कैदी पहुंच गया तो फ‍िर फांसी होकर ही रहती है. भारत में आज तक ऐसा नहीं हुआ क‍ि यहां की जेल में कोई फांसी के तख्ते तक पहुंचा हो और वह बच गया हो.”
इससे पहले फांसी की तारीख तय होने के बाद की प्रक्र‍िया पर पवन बोले, “फांसी की तारीख तय होने के बाद हमें एक द‍िन पहले जेल में बुलाया जाता है. उसके बाद द‍िमाग में यह चल रहा होता है क‍ि कैदी के पैर कैसे बांधने हैं, रस्सी कैसी बांधनी हैं. उस पूरी रात हमें नींद नहीं आती. ऐसा लगता है क‍ि यह कयामत की रात है.”
जब पवन से पूछा क‍ि उनके ठहरने के स्थान से फांसी घर तक क‍ितने बजे ले जाया जाता है. तो वे बोले, “जो समय तय होता है, उसे 15 म‍िनट पहले फांसी घर के ल‍िए चल देते हैं. हम उस समय तक तैयार रहते हैं. फांसी की तैयारी करने में भी एक से डेढ़ घंटा लगता है.”
कैदी के बैरक से फांसी घर में आने की प्रक्र‍िया पर पवन बोले, “फांसी घर लाने से पहले कैदी के हाथ में हथकड़ी डाल दी जाती है, नहीं तो हाथों को पीछे कर रस्सी से बांध द‍िया जाता है. दो स‍िपाही उसे पकड़कर लाते हैं. बैरक से फांसी घर की दूरी के आधार पर फांसी के तय समय से पहले उसे लाना शुरू कर देते हैं. बैरक से फांसी घर तक लाने में करीब 15 म‍िनट लगते हैं. उस समय कैदी के पैर कांप रहे होते हैं.”
फांसी घर में फांसी के समय उपस्थ‍ित रहने वालों की संख्या पर पवन बोले, “फांसी देते समय 4-5 स‍िपाही होते हैं, वह कैदी को फांसी के तख्ते पर खड़ा करते हैं. वह कुछ भी बोलते नहीं हैं, केवल इशारों से काम होता है. इसके ल‍िए एक द‍िन पहले हम सबके जेल अधीक्षक के साथ एक मीटिंग हो जाती है. इसके अलावा फांसी घर में जेल अधीक्षक, ड‍िप्टी जेलर और डॉक्टर ही वहां मौजूद रहते हैं. “
फांसी देते समय वहां मौजूद लोग कुछ भी बोलते नहीं हैं, स‍िर्फ इशारों से काम होता है. इसकी वजह बताते हुए पवन कहते हैं, “इसकी वजह है क‍ि कैदी कहीं ड‍िस्टर्ब न हो जाए, या फ‍िर वह कोई ड्रामा न कर दे. सभी को सभी कुछ पता होता है लेक‍िन कोई भी कुछ बोलता नहीं है.”
बता दें क‍ि पवन कुमार के परिवार ने अभी तक 25 से ज्यादा लोगों को जल्लाद के रूप में फांसी दी है. इस जल्लाद पर‍िवार की कहानी लक्ष्मण, कालूराम, बब्बू स‍िंह से होते हुए अब पवन जल्लाद पर आ गई है.
गौरतलब है क‍ि 16 द‍िसंबर 2012 को देश की राजधानी द‍िल्ली में न‍िर्भया रेप केस की घटना हुई थी. निर्भया मामले में दोष‍ियों की फांसी के लिए उल्टी गिनती शुरू होते ही जल्लाद की खोज शुरू हो गई है. तिहाड़ जेल प्रशासन ने जल्लाद की खोज के लिये उत्तर प्रदेश के जेल प्रशासन को चिट्ठी ल‍िखी है. 9 दिसंबर को तिहाड़ जेल प्रशासन की तरफ से चिट्ठी ल‍िखी गई थी ज‍िसमें यूपी जेल प्रशासन से जल्लादों के बारे में ब्योरा मांगा गया. तिहाड़ जेल प्रशासन ने जल्लादों को जल्द से जल्द देने की बात भी इस च‍िट्ठी में कही थी.