सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को व्यवस्था दी कि भारतीय रिजर्व बैंक के नियमन के तहत आने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) का नियमन राज्य सरकारों के कानून के जरिये नहीं हो सकता है.
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने कहा कि एनबीएफसी देश की वित्तीय सेहत के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इनका नियंत्रण रिजर्व बैंक के पास रहता है. पीठ ने कहा, ‘‘ऐसे में यह कहना कि इतने महत्वपूर्ण मामले में रिजर्व बैंक की कोई भूमिका नहीं है, केंद्रीय बैंक के पास मौजूद सांविधिक नियंत्रण को नुकसान पहुंचाने जैसा होगा.’’
पीठ ने कहा, ‘‘यह शायद सही है कि कई बार एनबीएफसी द्वारा दिए जाने वाले कर्ज के ब्याज पर रिजर्व बैंक का नियंत्रण नहीं होता. लेकिन ऐसा नहीं है कि केंद्रीय बैंक के पास इसमें दखल देने का अधिकार नहीं है.’’
क्या है मामला
रिजर्व बैंक इस सवाल की समीक्षा कर रहा था कि क्या रिजर्व बैंक के नियमन के तहत आने वाले एनबीएफसी का केरल के साहूकर अधिनियम, 1958 और गुजरात साहूकार कानून, 2011 के तहत भी नियमन किया जा सकता है? शीर्ष न्यायालय ने कहा कि सोच-विचार के बाद यह राय बनती है कि केरल के कानून और गुजरात के कानून को रिजर्व बैंक अधिनियम के तहत पंजीकृत और केंद्रीय बैंक के नियमन वाले एनबीएफसी पर लागू नहीं किया जा सकता.