रायपुर । एम्स, मेडिकल कॉलेज और सैकडों पीएचसी, सीएचसी की बड़ी-बड़ी बिल्डिंग, फिर भी स्वास्थ्य सेवाएं अगर वेंटीलेटर पर हैं तो आम जनता की चिंता बढ़ना लाजिमी है। राज्य की बड़ी आबादी के पास इतनी आर्थिक कूबत नहीं कि निजी अस्पतालों में इलाज का बोझ उठा सके।
गंभीर बीमारियों में सरकारी मदद के बिना उबर पाना गरीबों के लिए आसान कहां। योजनाएं बनती हैं लेकिन लाभ कितना हो पाता है, इसकी पोल जमीनी रिपोर्ट में खुलती रही है। स्वास्थ्य बीमा जैसी योजनाएं राहत तो लेकर आईं लेकिन कंपनियों पर लूट के आरोप भी चस्पा होते रहे।
अब भारत सरकार ने आयुष्मान भारत योजना की शुरूआत की है लेकिन यह योजना भी छत्तीसगढ़ में धरातल पर उतरने से पहले ही विवादों में आ गई। निजी चिकित्सकों और चिकित्सालयों ने योजना को खारिज कर दिया। राज्य में नवगठित कांग्रेस सरकार भी इस योजना के बदले दूसरी महत्वाकांक्षी योजना लाने का ताना-बाना बुन रही हैं।
पिछले दिनों राज्य के दौरे पर आए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ समेत तीन राज्यों में कांग्रेस सरकार की नई स्वास्थ्य नीति की पुरजोर वकालत के साथ ही महत्वपूर्ण बात यह भी कही कि हेल्थ सेक्टर में बजट पर्याप्त होना चाहिए।
विसंगति यह भी कि छत्तीसगढ़ सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष में स्वास्थ्य का बजट घटा दिया है। स्वास्थ्य सेवाएं पहले से ही बदहाल हैं। बड़ा मुद्दा यह कि अब सेहत पर सियासत में आम लोगों का क्या होगा….।।।
छह मेडिकल कॉलेजों को जरुरत पूरी करने में लगेंगे 22 साल
राज्य में अभी छह सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं। हर वर्ष वहां से करीब 11 सौ डॉक्टर बन रहे हैं। ऐसे में डब्ल्यूएचओ के मापदंड के अनुसार डॉक्टरों की जरूरत पूरी करने में 22 वर्ष लग जाएंगे, लेकिन यह भी सच्चाई है कि यहां से पढ़ने के बाद ज्यादातर डॉक्टर निजी सेक्टर या दूसरे राज्यों में चले जाते हैं।
हर साल औसतन 50 लाख मरीज हर साल औसतन 50 लाख मरीज प्रदेश के अस्पतालों में पंजीकृत (ओपोडी रजिस्ट्रेशन) होते हैं। इनमें लगभग 41 लाख और करीब 12 लाख पुराने मरीज होते हैं। यह संख्या धीरे-धीरे बढ़ती जा रह है।
भवन और उपकरण लेकिन चलाने वाले नहीं
राज्य में अस्पताल के नाम पर बड़े पैमाने पर भवन बना दिए गए हैं। वहां उपकरण भी उपलब्ध करा दिया गया है, लेकिन डॉक्टर और तकनीकी स्टॉफ नहीं है। इसका सबसे ज्यादा बुरा असर ग्रामीण क्षेत्रों पर पड़ रहा है। आदिवासी क्षेत्रों से आज भी लोग बैगा गुनिया के पास जाते हैं।
बस्तर व सरगुजा संभाग में स्थिति दयनीय
बस्तर और सरगुजा संभाग की स्थिति सबसे खराब है। यहां पर डॉक्टरों के सेटअप के ही पद नहीं भरे जा सके हैं। डब्लूएचओ के मानक के अनुसार डॉक्टरों की उपलब्धता तो दूर की बात है। बस्तर संभाग में विशेषज्ञ डॉक्टरों के जहां 95 फीसदी पद खाली हैं, वहीं चिकित्सा अधिकारियों के 56 फीसदी पद रिक्त हैं। वहीं इन दोनों संभागों में दंत चिकित्सकों के कुल स्वीकृत 25 में से 24 पद यानी 96 फीसदी पद खाली हैं।
डेंटल में तो सबसे बुरा हाल
प्रदेश में डेंटल डॉक्टरों की भी भारी कमी है। यहां डेंटल की 91 फीसदी डॉक्टरों के पद खाली हैं। राज्य में डेंटल के कुल 112 पद स्वीकृत हैं, इनमें से केवल 10 पर ही दंत चिकित्सक पदस्थ हैं। शेष 102 पद खाली हैं। सबसे बुरा हाल बस्तर का है। यहां डेंटल के एक भी डॉक्टर पदस्थ नहीं है। बस्तर संभाग के 14 में से 14 पद और सरगुजा में 11 में से 10 पद खाली पड़े हैं, जबकि रायपुर संभाग में 69 में से 63 पद और बिलासपुर संभाग में 18 में से 15 पद खाली हैं।