Home छत्तीसगढ़ छत्तीसगढ़: मथुरा की तरह जांजगीर में भी खेली जाती है लट्ठमार होली

छत्तीसगढ़: मथुरा की तरह जांजगीर में भी खेली जाती है लट्ठमार होली




IMG-20240704-WA0019
IMG-20220701-WA0004
WhatsApp-Image-2022-08-01-at-12.15.40-PM
1658178730682
WhatsApp-Image-2024-08-18-at-1.51.50-PM
WhatsApp-Image-2024-08-18-at-1.51.48-PM

छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले से 45 किलोमीटर दूर बसे एक छोटे से गांव पंतोरा में होली के पांच दिन बाद रंग पंचमी के अवसर पर पिछले 200 सालों से गांव में लट्ठमार होली खेलने की परंपरा चली आ रही है. ग्राम पंतोरा के ग्रामीणों के लिए इस लट्ठमार होली का विशेष महत्व है. दरअसल ग्रामीणों की मान्यता है कि रंग पंचमी के दिन लट्ठमार होली खेलने से उनके गांव में आने वाली महामारी और बीमारी दूर होती है.

रंग पंचमी के एक दिन पूर्व संध्या गांव से दूर कोरबा जिले के पहांड़ियों में स्थित मां मड़वारानी मंदिर के पहाड़ से पंतोरा ग्राम के ग्रामीण बांस की लाठियां लाकर मां भवानी के मंदिर में बैगा के पास पूजा कर अभिमंत्रित करने के लिए छोड़ देते है. फिर पूरा का पूरा गांव इसी लाठी से दूसरे दिन लट्ठमार होली की शुरूवात करता है. होली के पांच दिन बाद रंग पंचमी के अवसर पर ग्राम पंतोरा के भवानी मंदिर में गांव के लोग एकत्रित होकर इस लट्ठमार होली की शुरूवात करते है.

पंतोरा गांव के ग्रामीणों का कहना है कि गांव में स्थित मां भवानी मन्दिर के बैगा द्धारा गांव के नौ कुंवारी कन्याओं को पूजा कर अभिमंत्रित की हुई लाठियां थमाई जाती है. फिर कुंवारी कन्याएं और महिलाएं घूम-घूमकर पुरूषों पर लाठियां बरासाती है. इस मौके पर गांव से गुजरने वाले हर शख्स को लाठियों की मार झेलनी पड़ती है. इस गांव में यह परम्परा वर्षों से चली आ रही है.

गांव के मंदिर से लट्ठमार होली की शुरूआत गांव की महिलाएं एंव युवतियां हांथों में लाठी लेकर करती है और लोगों को पीटने के लिए गांव की गलियों में निकल पड़ती है. महिलाओं और युवतियां के हांथों पिटने वाले लोग परम्परा की वजह से नाराज भी नहीं होते है. इस होली की सबसे खास बात यह है कि इस दिन लाठी से मार खाने के दौरान अगर किसी को चोट लग भी जाती है या खून निकल जाता है तो दर्द नहीं होता और वह रातों रात ठीक भी हो जाता है.

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here