Home समाचार MP : मिमिक्री करने में माहिर बैंक मैनेजर्स से करने लगा फ्रॉड

MP : मिमिक्री करने में माहिर बैंक मैनेजर्स से करने लगा फ्रॉड




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जबलपुर। खुद को कार एजेंसी का मालिक बताकर बैंकों को लाखों रुपए की चपत लगाने वाले शातिर को राज्य सायबर पुलिस ने दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया है। आरोपित गूगल से कार एजेंसी के मालिक, उसके मैनेजर और बैंक मैनेजर का मोबाइल नंबर निकालकर ठगी की वारदातों को अंजाम देते थे। शातिर और उसके साथी मिमिक्री (आवाज की नकल) करने में माहिर हैं। जिस कारण बैंक के मैनेजरों को उन पर शक नहीं होता था।

एसपी सायबर अंकित शुक्ला ने बताया कि यूनियन बैंक की मदनमहल शाखा के मैनेजर नवीन रंजन चौधरी के पास कुछ दिनों पहले एक शख्स का फोन आया। उसने खुद को बैंक का पुराना ग्राहक और कार एजेंसी का मालिक बताते हुए आरटीजीएस के माध्यम से 9 लाख 234 रुपए अपने खाते में ट्रांसफर करा लिए। इसकी जानकारी होने पर बैंक मैनेजर ने अज्ञात पर मामला दर्ज कराया था। आरोपित की गिरफ्तारी के लिए निरीक्षक विपिन ताम्रकार के नेतृत्व में एसआई श्वेता सिंह, एसआई हेमंत पाठक, आरक्षक अजीत गौतम, आरक्षक आसिफ अहमद, आरक्षक आलोक की टीम गठित की गई थी।

एक आरोपित पूर्व में हो चुका गिरफ्तार

जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि इसी तरह के मामले में हाफिजपुर गौतमबुद्घ नगर (उप्र) निवासी आदर्श कुमार गिरफ्तार हो चुका है। यह भी जानकारी मिली कि रुपए पांचाल विहार, करावल दिल्ली निवासी बबलू चौधरी (37) के अकाउंट में ट्रांसफर हुए हैं। खाते की डिटेल निकाली गई तो पता फर्जी निकला। जिस पर पुलिस का शक आरोपित पर गहरा गया। पुलिस ने तत्काल खाते में ट्रांसफर हुए रुपयों में से 5 लाख का ट्रांजेक्शन रुकवाते हुए जल्द ही उसकी लोकेशन ट्रेस कर उसे गिरफ्तार कर लिया गया। आरोपित ने बताया कि वह अपने साथी के साथ मिलकर जबलपुर समेत कई राज्यों में स्थित बैंकों के मैनेजरों को इसी तरह विश्वास में लेकर धोखाधड़ी कर चुका है। पुलिस आरोपित के साथियों की तलाश में जुटी है।

ऐसे करते थे ठगी

आरोपित बबलू चौधरी ने बताया कि वह गूगल से कार एजेंसी के मालिकों की डिटेल और मोबाइल नंबर जुटाते थे। मोबाइल नंबर मिलने के बाद वह एजेंसी के मालिक से बात कर खुद को भी कार की एजेंसी का मालिक बताते हुए कार खरीदने की बात कहते थे। रुपए ट्रांसफर करने का झांसा देकर शातिर ठग, कार मालिक से उसका अकाउंट नंबर ले लेते थे। कार एजेंसी के मालिक का अकाउंट नंबर मिलते ही आरोपित उसकी एजेंसी के मैनेजर का नंबर तलाशते थे। फिर आवाज बदलकर कार एजेंसी मालिक बनकर बात करते हुए अकाउंट में कितने रुपए हैं इसकी जानकारी जुटाते थे। रुपए के बारे में पता चलते ही आरोपित उस बैंक के मैनेजर को फोन करते थे जिसमें एजेंसी मालिक का अकाउंट रहता था। आरोपित, बैंक मैनेजर को रुपए आरटीजीएस के माध्यम से ट्रांसफर करने को कहते थे। बैंक मैनेजर भी विश्वास में रुपए ट्रांसफर कर देता था। इसके बाद जब असल कार एजेंसी मालिक को पता चलता था, तो मामले का खुलासा होता था। लेकिन तब तक वह रुपए निकाल लेते थे।