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जानिए, राजीव गांधी की बतौर प्रधानमंत्री 5 सफलता-विफलता




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शाह बानो के मामले में मुस्लिम पुरुषों को ख़ुश करने के लिए राजीव गांधी का फ़ैसला और एक बार फिर राम मंदिर के मुद्दे को उठाने का मामला न केवल बीजेपी जैसी पार्टी को जनाधार पाने का मौक़ा दिया बल्कि देश के लोगों के बीच राजीव गांधी की छवि भी बदली.

पीएम मोदी ने झारखंड के चाईबासा में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को चुनौती देते हुए कहा है कि उनमें दम है तो शेष बचे दो चरण के चुनाव अपने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के मान-सम्मान और बोफोर्स के मुद्दे पर लड़ लें. इससे पता चल जायेगा कि ‘किसके बाजुओं में कितना दम है.’

प्रधानमंत्री ने कहा कि, ‘कांग्रेस को चुनौती देता हूं, नामदार परिवार के रागदरबारियों और चेले चपाटों को चुनौती देता हूं कि आज का चरण तो पूरा हो गया है, लेकिन अभी दो चरणों का चुनाव शेष है. आपके पूर्व प्रधानमंत्री जिनके लिए आप मोटे-मोटे आंसू बहा रहे हैं, उनके मान-सम्मान पर ही अंतिम दो चरणों का चुनाव लड़ लें.’ पीएम मोदी ने कांग्रेस और उसके सहयोगियों को ललकारते हुए कहा, ‘आप में हिम्मत है तो आखिरी दो चरणों के चुनाव और दिल्ली का भी चुनाव, बोफोर्स के मुद्दे पर लड़ लें.’

हालांकि पीएम मोदी ने पांचवे चरण के मतदान से पहले ही यूपी की एक जनसभा में राजीव गांधी को लेकर कांग्रेस पर हमलावर हो गए थे. राहुल गांधी पर वार करते हुए पीएम ने कहा, ‘आपके पिताजी को आपके राग दरबारियों ने मिस्टर क्लीन बना दिया था. गाजे-बाजे के साथ मिस्टर क्लीन मिस्टर क्लीन चला था. लेकिन देखते ही देखते भ्रष्टाचारी नंबर वन के रूप में उनका जीवनकाल समाप्त हो गया.”

दरअसल, प्रधानमंत्री ने यह टिप्पणी बोफोर्स घोटाले के संदर्भ में की थी जिसमें राजीव गांधी का नाम भी शामिल किया गया था. हालांकि एक सच यह भी है कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान ही चार्जशीट में से राजीव गांधी का नाम हटाया गया और क्लीन चिट दी गई. दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में 64 करोड़ रुपए की कथित रिश्वत मामले में राजीव गांधी पर कोई आरोप साबित नहीं हो पाया.

सवाल यह उठता है कि 17वीं लोकसभा चुनाव के प्रचार में वो भी चार चरण बीत जाने के बाद पीएम मोदी को अचानक राजीव गांधी की याद क्यों आ गई. कई राजनीतिक जानकार इसे पीएम मोदी की हताशा के तौर पर देख रहे हैं. उनका कहना है कि चुनाव के आख़िरी दौर में पीएम मोदी कुछ ऐसे मुद्दे को लोगों के सामने रखना चाहते हैं जिससे 2014 के तर्ज पर एक बार फिर से कांग्रेस का भ्रष्टाचार और मोदी सरकार के नाम पर वोट पड़े.

पीएम मोदी की वजह से स्वर्गीय राजीव गांधी एक बार फिर से चर्चा में है. ऐसे में हमलोग उनके कार्यकाल की पांच विफलता और पांच उपलब्धियों पर नज़र डालते हैं.

राजीव गांधी की विफलता

– 24 मार्च 1986 को भारत सरकार और स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स के बीच 1,437 करोड़ रुपये का सौदा हुआ. इस सौदे के तहत भारतीय थल सेना को 155 एमएम की चार सौ होवित्जर तोप मिलना था. स्वीडिश रेडियो ने दावा किया कि कंपनी ने सौदे के लिए भारत के वरिष्ठ राजनीतिज्ञों और रक्षा विभाग के अधिकारियों को साठ करोड़ रुपये की रिश्वत दी है. स्वीडिश रेडियो के इस दावे के बाद भारत की राजनीति में भूचाल आ गया. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर हमला करने वालों में से सबसे आगे उन्हीं की कैबिनेट के अहम सहयोगी विश्वनाथ प्रताप सिंह थे. इसका नतीज़ा यह हुआ कि 1984 में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाले राजीव गांधी को 1989 में सत्ता गंवानी पड़ी.

– राजीव गांधी ने देश के पुरुष मुसलमानों को ख़ुश करने के लिए शाह बानो केस में अदालत के फ़ैसले को पलट दिया. ऐसे में देश के बहुसंख्यक समुदाय हिंदू नाराज़ हो गए. कहा जा सकता है कि सांप्रदायिक ताक़तों को देश में पैदा करने वाले राजीव गांधी थे. दरअसल इंदौर के मशहूर वकील मोहम्मद अहमद खान ने 43 साल तक साथ रहने के बाद 1975 में अपनी पहली बीवी शाह बानो को उसके पांच बच्चों सहित घर से निकाल दिया था. इसके बाद वे कभी-कभी अपने बच्चों की परवरिश के लिए कुछ रकम अपनी बेगम को दे दिया करते थे. लेकिन शाह बानो अपने शौहर से बाकायदा हर महीने गुजारा-भत्ता मांग रही थीं. मांग पूरी नहीं होने पर शाह बानो अदालत पहुंची. न्यायिक मजिस्ट्रेट से लेकर हाई कोर्ट ने फैसला शाह बानो के पक्ष में दिया. मोहम्मद अहमद खान ने सुप्रीम कोर्ट में फैसले को चुनौती दी लेकिन नतीज़ा उल्टा पड़ गया.

– शीर्ष अदालत ने माना कि तलाकशुदा पत्नी को अपने पूर्व पति से गुजारा-भत्ता की मांग करने का पूरा हक़ है. इसके अलावा उसने सरकार से एक बार फिर ‘समान नागरिक संहिता’ कदम उठाने की अपील की. सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से मुस्लिम शौहरों के लिए तीन तलाक देकर अपनी बेगम से पीछा छुड़ाना मुश्किल हो गया. देश के युवा प्रधानमंत्री जो नई सोच के परिचायक थे मुस्लिम वोटबैंक को लेकर लाचार हो गए और 25 फरवरी, 1986 को मुस्लिम महिला (तलाक अधिकार संरक्षण) विधेयक, 1986 को लोकसभा में पेश कर दिया. विपक्ष ने इसका जबरदस्त विरोध किया. इसके बावजूद यह राज्यसभा से पास होकर कानून बन गया. इसके जरिए तलाक के बाद गुजारा-भत्ता के लिए अदालत जाने का मुस्लिम महिलाओं का अधिकार खत्म हो गया. इस कानून में यह भी साफ कर दिया गया था कि तलाकशुदा बीवियों को उनके शौहर से केवल इद्दत (तीन महीने) तक का ही गुजारा-भत्ता मिलेगा.

– शाह बानो केस के बाद राजीव गांधी ने हिंदू समुदाय को ख़ुश करने के लिए विवादित स्थल पर शिलान्यास की इजाज़त दे दी. राम मंदिर की आधारशिला रखे जाने के बाद राजीव गांधी ने अयोध्या से ही अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की और देश में राम-राज्य लाने का वादा किया. दरअसल ये पूरा विवाद 1980 के दशक में वीएचपी की धर्मसंसद में राम मंदिर बनाने का प्रण के बाद से शुरू हुआ. दो साल बाद फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने मस्जिद का ताला खोलने का आदेश सुनाया. यानी इस फ़ैसले के बाद विवादित मस्जिद में पहले की तरह हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत तो मिल गई. जिसके बाद राजीव गांधी ने हिंदू समुदाय को ख़ुश करने के लिए अयोध्या में 10 नवंबर 1989 को राम मंदिर की आधारशिला रखी गई. कांग्रेस सरकार ने ये फैसला शाहबानों केस के बाद नाराज हिंदू वोटबैंक और भ्रष्चाचार के आरोपों से घटते जनाधार को अपनी तरफ खींचने के लिए किया था. लेकिन कांग्रेस का दांव उल्टा पड़ गया और मंदिर आंदोलन पर राजनीति के ज़रिए आडवाणी ने बीजेपी की नई राजनीतिक विचारधारा तय कर दी.

– शाह बानो के मामले में मुस्लिम पुरुषों को ख़ुश करने के लिए राजीव गांधी का फ़ैसला और एक बार फिर राम मंदिर के मुद्दे को उठाने का मामला न केवल बीजेपी जैसी पार्टी को जनाधार पाने का मौक़ा दिया बल्कि देश के लोगों के बीच राजीव गांधी की छवि भी बदली. अब तक राजीव नई सोच के पुरोधा माने जा रहे थे जो वोटबैंक की राजनीति से इतर देश के विकास के लिए काम करने वाले थे लेकिन इन दो फ़ैसलों के बाद देश में सांप्रदायिक माहोल बना और कांग्रेस पर राजनीतिक तुष्टीकरण के आरोप की शुरुआत भी हुई.

राजीव गांधी की सफलता

– राजीव गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री की निर्मम हत्या के बाद देश की सत्ता संभाली थी. पूरे देश में निराशा का माहोल था जिस वजह से अर्थव्यवस्था काफी ख़राब हालत में थी. उन्होंने न केवल इनकम और कॉर्पोरेट टैक्स घटाने का महत्वपूर्ण फ़ैसला लिया बल्कि लाइसेंस सिस्टम को भी सरल किया. वित्तीय वर्ष 1987-88 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बतौर वित्त मंत्री बजट भाषण पेश करते हुए संसद में कॉर्पोरेट टैक्स लगाने की सिफारिश की थी. विभिन्न टैक्सों के अलावा कॉर्पोरेट सेक्टर के लिए अलग से एक विशिष्ट टैक्स लांच करने का फ़ैसला पहली बार हुआ था. दरअसल उनकी कैबिनेट के मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इस्तीफा दे दिया था इस वजह से राजीव गांधी ने बतौर वित्त मंत्री बजट पेश किया.

– आज भारत में सबसे अधिक इंटरनेट का प्रयोग किया जाता है लेकिन यह संभव इसलिए हो पा रहा है क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इसके लिए काम किया. देश में कंप्यूटर क्रांति लाने का श्रेय राजीव गांधी को दिया जाता है. उन्होंने ना सिर्फ कंप्यूटर को भारतीय घर तक लाने का काम किया बल्कि भारत में इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी को आगे ले जाने में अहम रोल निभाया. राजीव गांधी के वक्त ही नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेंटर की स्थापना भी हुई थी. देश की दो बड़ी टेलीकॉम कंपनी एमटीएनएल और वीएसएनल की शुरुआत उनके कार्यकाल के दौरान ही हुई. उस समय कंप्यूटर्स महंगे होते थे, इसलिए सरकार ने ऐसेंबल किए हुए कंप्यूटर्स का आयात करना शुरू किया जिसमें मदरबोर्ड और प्रोसेसर थे. इस वजह से कंप्यूटर्स की कीमतें कम होनी शुरू हुई अन्यथा इससे पहले तक कंप्यूटर्स सिर्फ चुनिंदा संस्थानों में इंस्टॉल होते थे.

– राजीव गांधी ने साल 1988 में चीन की यात्रा कर उस देश के साथ संबंध सामान्य करने की शुरुआत की. दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर चल रहे विवाद को ख़त्म करने के लिए राजीन गांधी के कार्यकाल में ज्वाइंट वर्किंग कमेटी बनाई गई. इस कमेटी का मकसद दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करना था. 1954 के बाद इस तरह की यह पहली यात्रा थी. सीमा विवादों के लिए चीन के साथ मिलकर बनाई गई ज्वाइंट वर्किंग कमेटी शांति की दिशा में एक ठोस कदम थी.

– राजीव गांधी ने शक्ति का विकेंद्रीकरण करने के लिए पंचायती राज की शुरुआत की और शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और विभिन्न क्षेत्रों के विकास के लिए तकनीक के इस्तेमाल पर जोर दिया. कांग्रेस ने 1989 में एक प्रस्ताव पास कराकर पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिलाने की दिशा में क़दम आगे बढ़ाया. जो 1990 के दशक में जमीन पर संभव हो पाया. सत्ता के विकेंद्रीकरण के अलावा राजीव ने सरकारी कर्मचारियों के लिए 1989 में 5 दिन काम का प्रावधान भी लागू किया. ग्रामीण बच्चों के लिए प्रसिद्ध नवोदय विद्यालयों के शुभारंभ का श्रेय भी राजीव गांधी को जाता है.

– राजीव गांधी ने पोलियो को खत्म करने के लिए अभियान शुरु किया, डॉ कूरियन के साथ मिलकर देश को दुग्ध उत्पादन में विश्व का नंबर एक देश बनाया. मतदान उम्र सीमा को 21 से घटाकर 18 साल करने का फ़ैसला भी राजीव गांधी का ही था. इतना ही नहीं ईवीएम मशीनों को चुनावों में शामिल करने का प्रयास भी उसी दौर में शुरू हुआ.

यानी कुल मिलाकर देखा जाए तो राजीव गांधी ने अस्सी के दशक के मध्य में भारत में विकास की प्रक्रिया को गति देने के लिए निजीकरण, उदारीकरण, मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था, लोकांत्रीकरण, अविनियमन यानी डिरेग्युलेशन, तकनीक, उद्यमिता, इनोवेशन आदि पर जोर दिया, जिसके परिणाम आज हमारे सामने हैं.