कई गंभीर रोगों की रोकथाम में मददगार ‘कड़कनाथ’
एक समय अस्तित्व का संकट झेल रहा था लेकिन
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और अन्य संस्थानों की
मदद से अब यह देश के कोने कोने में ‘बांग’ दे रहा है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता से भरपूर कड़कनाथ प्रजाति का
मुर्गा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात के कुछ आदिवासी
क्षेत्रों में पाया जाता है। यौवन शक्ति बढ़ाने में कारगर होने के
कारण लोगों में इसकी भारी मांग से पिछले वर्षों के दौरान
इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया जिससे यह
प्रजाति विलुप्त होने के कागार पर पहुंच गयी थी।
समय रहते भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के हस्तक्षेप से
अब यह न केवल तीन राज्यों बल्कि पूरे देश में किसानों की
आय बढ़ाने में बहुत मददगार साबित हो रहा है।
उप महानिदेशक (कृषि विस्तार) ए. के. सिंह ने
बताया कि सिर से नख तक बिल्कुल काले रंग का
देशी कड़कनाथ में जलवायु परिवर्तन के इस दौर में
भी अत्यधिक गर्मी और सर्दी सहने की क्षमता है और
यह विपरीत परिस्थिति में भी जीवित रहता है।
इसका न केवल खून काला होता है बल्कि इसका
मांस भी काला है जो बेहद नर्म और स्वादिष्ट होता है।
इसके मांस में प्रोटीन की मात्रा बहुत अधिक होती है
और हृदय रोग के लिए घातक माने जाने वाले कोलेस्ट्रोल की
मात्रा इसमें बहुत कम होती है। इसमें नाम मात्र की वसा है।
डॉ. सिंह ने बताया कि प्रोटीन कोशिका का एक महत्वपूर्ण
घटक है जो शरीर के ऊतकों के निर्माण और मरम्मत में
मददगार है। एंजाइम, हार्मोन और शरीर के अन्य रसायनों के
निर्माण में प्रोटीन का उपयोग होता है। प्रोटीन हड्डियों,
मांसपेशियों, त्वचा और रक्त के निर्माण में भी महत्वपूर्ण
भूमिका निभाता है। इससे शरीर में हानिकारक चर्बी और
कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम होती है। उन्होंने बताया कि
कड़कनाथ के मांस में पाया जाने वाला स्टीयरिक एसिड
खराब कोलेस्ट्रोल को कम करने में मददगार है।
इसमें पाया जाने वाला ओलिक एसिड रक्तचाप और
कोलेस्ट्रोल कम करने के साथ ही टाइप टू मधुमेह और
कैंसर प्रतिरोधक है।
डॉ. सिंह ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद
, कृषि विज्ञान केन्द्र तथा राज्यों के सहयोग से कड़कनाथ
हेचरी की स्थापना की गयी है जहां सालाना 139000 चूजे
तैयार हो रहे हैं।
कई राज्यों में इन चूजों को पाला जाता है।
इन चूजों को 20 राज्यों के 117 जिलों में
पाला जाता है। इन राज्यों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़,
राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, असम,
आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, पंजाब,
हरियाणा, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, जम्मू-कश्मीर
आदि शामिल हैं। कृषि विज्ञान केन्द्र के माध्यम से
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दांतेवाड़ा में सालाना
एक लाख चूजे तैयार किये जा रहे हैं। इस राज्य के
कांकेड़, बलरामपुर और राजनंदगांव में भी हेचरी की
स्थापना की गयी है। मध्य प्रदेश के बुरहानपुर,
ंिछदवाड़ा, झाबुआ, धार और ग्वालियर में भी
इस प्रकार के केन्द्र हैं। कड़कनाथ का चूजा छह
माह में वयस्क हो जाता है और मुर्गी अंडा देने लगती है।
आम अंडों का मूल्य दो से तीन रुपये और सामान्य मुर्गे का मांस का मूल्य 150 रुपये
किलोग्राम मुश्किल से मिलता है। कड़कनाथ का मूल नाम
कालामासी है जिसका अर्थ काले मांस वाला मुर्गा है।
इसकी तीन किस्मों में जेट ब्लैक, पेनसिल्ड और
गोल्डन कड़कनाथ शामिल हैं। कृषि विस्तार
उप महानिदेशक ने बताया कि कड़कनाथ के प्रति
लोगों में भारी जागरुकता आयी है जिसके कारण देश के
विभिन्न हिस्सों से इसके चूजे की भारी मांग आ रही है।
कई स्थानों पर कड़कनाथ के पालन से गरीबों की
अर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुयी है और वे व्यावसायिक तौर पर
वैज्ञानिक ढंग से इसका पालन कर रहे हैं।